मुंबई। वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र देश का सबसे हाई प्रोफाइल सीट है। क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी इस सीट से तीसरी बार मैदान में हैं। इस हाई प्रोफाइल सीट पर 1 जून को मतदान होगा। मोदी के यहां से चुनाव लड़ने से इस सीट पर देश ही नहीं, बल्कि विदेशी मीडिया की निगाहें हैं। 2014 के चुनाव में मोदी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था और बड़े अंतर से जीत हासिल करते हुए केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए और देश के प्रधानमंत्री बने।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। अपने सबसे बड़े नेता को सबसे बड़ी जीत का लक्ष्य बनाकर भाजपा के दिग्गज नेता प्रचार कर रहे हैं। लगातार दो बार की सत्ताधारी भाजपा जहां तीसरी जीत को बड़ा करने के लिए ‘अबकी बार,400 पार’ का नारा देकर उतरी है। वहीं, भाजपा के कद्दावर नेता इसी तर्ज पर वाराणसी सीट से पीएम मोदी को लगातार तीसरी बार संसद भेजने, सबसे बड़ी जीत का तोहफा देने के लिए काशी की प्रचार भूमि में उतर आए हैं।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, राज्यसभा में नेता सदन पीयूष गोयल समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता काशी में हैं। दर्जन भर के करीब मंत्री-मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री चुनाव प्रचार में जुटे हैं तो वहीं पार्टी ने अलग-अलग समाज-वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारी दी है। बात यदि चुनावी इतिहास की करें तो 1952 और 1957 दोनों आम चुनावों में त्रिभुवन नारायण सिंह ने जीत दर्ज की। त्रिभुवन नारायण सिंह का कद इतना बड़ा था कि उन्होंने 1957 में दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को चुनाव हराया था।
इनके अलावा जो मेन बनारस सीट थी उसे बनारस सेंट्रल कहा जाता था, वहां से रघुनाथ सिंह ने जीत दर्ज की। वो लगातार 1957 और 1962 में भी बनारस से जीत दर्ज करने में सफल रहे। 1967 के चुनाव में बनारस लोकसभा से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया-मार्क्सवादी के सत्य नारायण सिंह निर्वाचित हुए। 1971 के चुनाव में राजाराम शास्त्री बनारस से कांग्रेस का परचम फहराने में सफल रहे। 1977 में जनता पार्टी के चंद्रशेखर ने बनारस में जीत दर्ज की और देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
1980 में कांग्रेस (आई) के कमलापति त्रिपाठी को बनारस में जीत मिली। 1980 के बाद देश में अगला चुनाव समय से पहले ही हो गया। इस चुनाव में बनारस से कांग्रेस ने श्याम लाल यादव को मैदान में उतारा। अगले चुनाव यानी 1989 के चुनाव में जनता दल ने बनारस से पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री को मैदान में उतारा। इस बार कांग्रेस को बनारस से हार का मुंह देखना पड़ा। 1991 में हुए चुनावों में भाजपा ने श्रीश चंद्र दीक्षित को मैदान में उतारा, जिन्हें विजयश्री मिली।
श्रीश चंद्र दीक्षित पूर्व आईपीएस अफसर थे। 1982 से 1984 तक उत्तर प्रदेश के डीजीपी भी रहे। 1996 के चुनाव में भाजपा ने शंकर प्रसाद जायसवाल को मैदान में उतारा। शंकर प्रसाद जायसवाल बनारस के ही रहने वाले थे। विधायक रह चुके थे। साथ ही भाजपा संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके थे। 1998 में फिर चुनाव हुए। इस बार भी शंकर प्रसाद जायसवाल बनारस से भाजपा का परचम लहराने में सफल रहे। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में शंकर प्रसाद जायसवाल अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे।
कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्र ने उन्हें 57,436 वोटों के अंतर से हराया। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में 2004 में जीत दर्ज करने वाले राजेश मिश्र चौथे नंबर पर खिसक गए। यहां से भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी निर्वाचित हुए थे। इसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी ने बनारस और वडोदरा, दोनों सीटों पर चुनाव लड़ा और दोनों पर ही जीत दर्ज की। 2019 में भी मोदी जीते और अब 2024 में वो फिर से यहां से प्रत्याशी हैं।
वाराणसी संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें रोहनियां, वाराणसी नॉर्थ, वाराणसी साउथ, वाराणसी कैंट और सेवापुरी सीट शामिल हैं। इसमें सभी पांचों सीटों पर भाजपा गठबंधन को जीत मिली थी। 4 सीट भाजपा के खाते में गई थी तो एक सीट अपना दल (सोनेलाल) के पास गई थी। वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने की वजह से हाई प्रोफाइल सीट बन गई है। इस बार प्रधानमंत्री मोदी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय से है।
सबसे बड़ी जीत की तैयारी में सबसे बड़ा नेता
वर्तमान भारतीय राजनीति में निर्विवाद रूप में सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी लोकसभा सीट से तीसरी बार नामांकन कर चुके हैं। उनकी ऐतिहासिक जीत सुनिश्चित करने भाजपा एवं राजग गठबंधन के दिग्गज नेता पूरे दमखम के साथ वाराणसी की गलियों में जनसंपर्क कर रहे हैं। इसके साथ ही भाजपा कार्यकर्ता भी अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। इनका सामूहिक प्रयास है कि प्रधानमंत्री मोदी को सर्वाधिक वोटों से विजय दिला सकें। पिछले दोनों लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो प्रधानमंत्री मोदी के जीत का अंतर एक लाख से भी अधिक वोटों की वृद्धि हुई है। यदि इस आंकड़े को आधार बनाएं तो इस बार जीत का अंतर छह लाख के करीब हो सकता है।
हालांकि इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से यदि वोटों का स्थानांतरण होता है, तो वोटों का अंतर कम ही हो सकता है। हालांकि मोदी के कद और वाराणसी में मतदाताओं के रूझान को देखें तो ऐसी संभावना कम ही दिखाई दे रही है। बात पिछले चुनावों की करें तो 2019 के संसदीय चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट से नरेंद्र मोदी भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। मोदी के सामने समाजवादी पार्टी की ओर से शालिनी यादव मैदान में थीं तो कांग्रेस ने अजय राय को मैदान में उतारा। चुनाव एकतरफा रहा था और पीएम मोदी ने 479,505 मतों के अंतर से यह चुनाव जीत लिया था।
पीएम नरेंद्र मोदी को चुनाव में 674,664 वोट मिले थे जबकि शालिनी यादव को 195,159 वोट आए तो वहीं अजय राय के खाते में 152,548 वोट आए। वाराणसी सीट पर कुल 1,060,829 वोट पड़े थे। इससे पहले 2014 के चुनाव में भी नरेंद्र मोदी ने यहीं से चुनाव लड़ा था। वाराणसी सीट पर इस चुनाव में मोदी को 581,022 वोट मिले थे जबकि उनके सामने आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल मैदान में थे। केजरीवाल को 209,238 वोट मिले थे। मोदी ने यह चुनाव 371,784 मतों के अंतर से जीत लिया और इस जीत के बाद देश के प्रधानमंत्री भी बने।
2009 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी को जीत मिली थी। उन्होंने बसपा के उम्मीदवार और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को कड़े मुकाबले में 17,211 मतों से हराया था। चुनाव में अजय राय सपा के टिकट पर मैदान में थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। वाराणसी के मतदाताओं के लिए वाराणसी लोकसभा क्षेत्र का यह चुनाव सांसद का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री का चुनाव है। प्रधानमंत्री मोदी के सांसद बनने के बाद वाराणसी में विकास की गंगा बही है, उससे उनकी जीत को लेकर तो किसी प्रकार का संदेह नहीं है। बस पूरी दुनिया की नजर इस बात पर टिकी हुई है कि जीत का अंतर कितना रहता है।
हार की हैट्रिक लगा चुके अजय राय के बेहतर हालात
वाराणसी सीट पर हार की हैट्रिक लगा चुके अजय राय चौथी बार चुनावी मैदान में है। पीएम मोदी के खिलाफ दो बार और वाराणसी लोकसभा सीट पर तीन बार चुनाव लड़ चुके अजय राय हर बार तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार उनके ‘नंबर अच्छे’ आ सकते हैं। इसकी वजह है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन और इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हैं। अजय राय ने अपना सियासी सफर भाजपा से शुरू किया था। एबीवीपी से लेकर संघ तक से जुड़े रहे और 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे। भाजपा में रहते हुए अजय राय तीन बार विधायक रहे। इसके बाद 2009 में भाजपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया और 2012 में कांग्रेस में शामिल हो गए।
सपा से लेकर कांग्रेस में रहते हुए वाराणसी लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। अजय राय इन दिनों उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अजय राय भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन डॉ. मुरली मनोहर जोशी के उम्मीदवार बनाए जाने के चलते उन्होंने भाजपा छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और वाराणसी से चुनावी मैदान में उतर गए। 2009 में वाराणसी सीट पर भाजपा से मुरली मनोहर जोशी, सपा से अजय राय और बसपा से मुख्तार अंसारी के बीच मुकाबला हुआ था। अजय राय 123874 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। अजय राय 2014 में दूसरी बार वाराणसी से ही कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे उनका मुकाबला मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से था।
यह चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल बन गया और अजय राय इस बार भी 75,614 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे। नरेंद्र मोदी ने 371784 वोट से जीत हासिल की थी और अजय राय अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे। वहीं 2019 में अजय राय एक बार फिर से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर वाराणसी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे। इस बार भी उनका मुकाबला पीएम मोदी और सपा-बसपा की संयुक्त प्रत्याशी शालिनी यादव से हुआ। पीएम मोदी को 674,664 वोट मिले थे तो सपा की शालिनी यादव को 195,159 वोट मिले और कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 152,548 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे थे।