मुंबई। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक एक बहुसांस्कृतिक शहर के रूप में भी जाना जाता है। इस शहर को नवाबों के शहर के अलावा पूर्व का गोल्डन सिटी, शिराज-ए-हिंद और भारत के कांस्टेंटिनोपल भी कहते हैं। लखनऊ शिया इस्लाम का एक अहम केंद्र माना जाता है जहां बड़ी संख्या में शिया मुस्लिम आबादी रहती है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अहम लोकसभा सीट भी है, जहां से देश के कई शीर्ष नेता संसद पहुंचते रहे हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित, सलहज शीला कौल और देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं में से एक रहे हेमवती नंदन बहुगुणा भी इसी सीट से संसद तक पहुंचे।
1951 से 1977 के बीच विजयलक्ष्मी पंडित, श्योराजवती नेहरू, पुलिन बिहारी बनर्जी, बी।के। धवन और शीला कौल कांग्रेस के सांसद रहे, जबकि 1967 के चुनाव में आनंद नारायण मुल्ला चुनाव जीते थे। 1977 की कांग्रेस-विरोधी लहर में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के रूप में हेमवती नंदन बहुगुणा यहां से जीते, लेकिन 1980 में ही शीला कौल ने कांग्रेस की वापसी करवा दी, और 1984 में भी वही यहां से सांसद बनीं। 1989 में जनता दल के मान्धाता सिंह ने यहां कब्जा किया, लेकिन उसके बाद से यहां पिछले 33 सालों से भाजपा का कब्जा बना हुआ है। 1991 के आम चुनाव को मिलाकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां से लगातार पांच बार चुनाव जीता, और फिर 2009 में पार्टी के ही एक अन्य वरिष्ठ नेता लालजी टंडन ने बाज़ी मारी।
पिछले लोकसभा चुनाव में, यानी 2014 में यहां से भाजपा ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को टिकट दिया, जो चुनावी विजय के बाद केंद्रीय गृहमंत्री बने, उसके बाद उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की और मोदी सरकार के दुबारा बनने पर केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री बने। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह यहां से एक बार फिर से यहां से नामांकन कर चुके हैं। वहीं उनको चुनौती देने के लिए समाजवादी पार्टी के रविदास मेहरोत्रा एवं बहुजन समाज पार्टी के सरवर मलिक सहित कुल 9 और उम्मीदवार मैदान में हैं। हालांकि यहां से 41 उम्मीदवारों ने नामांकन किया था, लेकिन उनमें से 31 उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हो गए।
दो बार हारे पांच बार जीते पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी
लखनऊ लोकसभा सीट से पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी 1991 से 2009 के दौरान पांच बार सांसद रहे। इससे पहले वे अखिल भारतीय जनसंघ के टिकट 1957 एवं 1962 के लोकसभा चुनाव में भी लखनऊ सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1957 के चुनाव में उनको कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी ने 12485 तो 1962 में कांग्रेस की ही बीके धावन ने 30017 मतों से पराजित किया था। सन 1991 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के रणजीत सिंह को 1,17,303 वोटों से पराजित कर इस सीट पर पहली बार भाजपा का भगवा फहराया था।
इसके बाद तो यह सीट जैसे उनके लिए आरक्षित हो गई। इस सीट से उनके लगाव का कारण ही था कि अधिकांश लोग लखनऊ को ही उनकी जन्मभूमि के रूप में जानने लगे थे। अपनी पांचों जीत में उन्हें सबसे बड़ी चुनावी जीत 2004 के लोकसभा चुनाव में मिली, जब उन्होंने सपा उम्मीदवार डॉ। मधु गुप्ता को 2,18,375 मतों से पराजित किया। तीन-तीन बार देश के प्रधानमंत्री एवं मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दी।
रक्षा मंत्री राजनाथ बनाए रखेंगे भाजपा का राज!
भारतीय जनता पार्टी ने वर्तमान रक्षा मंत्री, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह को इस सीट से एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। लखनऊ लोकसभा सीट के पिछले तीन दशकों के इतिहास एवं राजनाथ सिंह के कद को देखते हुए हर कोई इस सीट से उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। हालांकि चुनावी उठापटक को ध्यान में रखते हुए वे राजनाथ सिंह भी अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि पिछले दोनों लोकसभा चुनावों की तुलना में इस बार जीत के अंतर को और बढ़ाया जाए।
2019 के लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह ने पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को हराया था। उन्हें 6,33,026 तो सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा को 2,85,724 तथा कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम 1,80,011 वोट मिले थे। इससे पूर्व 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से पहली बार उतरे राजनाथ सिंह को 5,61,106 वोट मिले थे। वहीं दूसरे स्थान पर रहीं कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 2,88,357 वोट मिले थे। वहीं बसपा के निखिल दूबे को महज 64,449 वोट जबकि सपा के अभिषेक मिश्रा को 56,771 वोट मिले थे।
मेहरोत्रा के नाम सबसे ज्यादा बार जेल जाने का रिकॉर्ड
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन है, लेकिन लखनऊ सीट से सपा ही लड़ेगी। इसका प्रमाण था कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सीट बंटवारे से पहले ही इस सीट से रविदास मेहरोत्रा के नाम की घोषणा कर दी थी। सपा प्रत्याशी रविदास मेहरोत्रा लखनऊ लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली लखनऊ सेंट्रल विधानसभा सीट से विधायक भी हैं। रविदास मेहरोत्रा को जब पूर्व मुख्यमंत्री ने लोकसभा प्रभारी बनाया था, तभी से अटकलों का दौर शुरू हो गया था कि पार्टी इन्हें टिकट देगी। वे सपा शासनकाल में मंत्री रह चुके हैं।
रविदास मेहरोत्रा कई अलग-अलग आंदोलन से जुड़े रहे हैं। इनके पास आंदोलन करते हुए देश में सबसे अधिक जेल जाने का रिकॉर्ड है। मेहरोत्रा 251 बार अभी तक जेल जा चुके हैं। पार्टी को मजबूती देने के लिए अखिलेश यादव ने पीडीए फार्मूले के शुरुआत की है। पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक; इन्हें साधने के लिए पार्टी की मीटिंग में बूथ लेवल पर इन्हीं समुदाय के 10-10 लोगों को जोड़ने की योजना बनाई गई है। अब देखना यह है कि अखिलेश का यह फार्मूला राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेता के समक्ष कितना कारगर सिद्ध होता है।
अजीत कुमार राय / जागरूक टाइम्स