
एम्स इस सीन से अंदाजा हो जाता है कि अपने देश में विशेषज्ञ डाक्टरों व मेडिकल सुविधाओं की कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कुल आबादी का तकरीबन दो तिहाई हिस्सा रहता है। करोड़ों लोगों के लिए आज भी हेल्थकेयर का अर्थ है कि दूरदराज के अस्पताल तक कठिन यात्रा करना। हेल्थकेयर की मांग और आपूर्ति में जो चौड़ी खाई है, उसे भरने के उद्देश्य से डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2012 में छह नए एम्स की स्थापना की और इस प्रक्रिया को नरेंद्र मोदी की सरकार ने तेज किया है।
सस्ती व भरोसेमंद हेल्थकेयर सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दुरुस्त करने के उद्देश्य से 2003 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का गठन किया था ताकि नए एम्स का निर्माण किया जा सके। फलस्वरूप एम्स (संशोधन) कानून का गठन किया गया और 2012 में भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर व ऋषिकेश में एम्स स्थापित किये गये। इस कानून के तहत एम्स को अतिरिक्त स्वायत्तता प्रदान की गई है। इन्हें केंद्र सरकार फंड करती है और वह ही वेतन, इंफ्रास्ट्रक्चर, उपकरण आदि का खर्चा वहन करती है।
जिन राज्यों में एम्स स्थित हैं या जिनमें उन्हें स्थापित करने की योजना है, उन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह भूमि, सड़क संपर्क, बिजली व पानी उपलब्ध कराएं। हाल ही में राजकोट, भटिंडा, रायबरेली, कल्याणी (बंगाल) और मंगलगिरी (आंध्रप्रदेश) में एम्स के उद्घाटन किए गए हैं। भारत में अब 20 एम्स हैं, जबकि तीन निर्माणाधीन हैं (बिहार में दरभंगा, जम्मू-कश्मीर में अवंतिपुरा, हरियाणा में माजरा)। इसके अलावा मणिपुर में एम्स की घोषणा की गई है और कर्नाटक में एक एम्स प्रस्तावित है।
एम्स की फैकल्टी व स्टाफ केंद्र सरकार के कर्मचारी होते हैं, जिन्हें सीधे विज्ञापन के माध्यम से भी नियुक्त किया जाता है और केंद्र व राज्य सरकारों से डेप्यूटेशन पर भी लिया जाता है। वेतन पैकेज 7वें वेतन आयोग के अनुसार है। 14-ए स्तर पर एक प्रोफेसर का न्यूनतम वेतन 1.7 लाख रुपए प्रतिमाह है, जबकि एडिशनल प्रोफेसर को 13-ए2$ स्तर पर 1.5 लाख रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। 13-ए1$ स्तर पर एसोसिएट प्रोफेसर को 1.4 लाख रुपए प्रति माह मिलते हैं और असिस्टेंट प्रोफेसर को 12वें स्तर पर न्यूनतम एक लाख रुपए प्रतिमाह मिलते हैं।
बहरहाल, देशभर के एम्स प्रोजेक्ट्स पर सरसरी नजर डालने से दोनों उपलब्धि व चुनौतियों की तस्वीर सामने आती है। जहां एक तरफ महत्वपूर्ण उपलब्धि देखने को मिलती है, वहीं निरंतर जारी रहने वाले मुद्दे भी हैं- जैसे मैनपॉवर की कमी, निर्माण में बहुत अधिक देरी और अपर्याप्त संसाधन। इनकी वजह से नित नए अवरोध सामने आते हैं। इस संदर्भ में दो विपरीत दृश्यों पर गौर कीजिए। एक, एम्स राजकोट दिसंबर 2021 से ऑपरेशनल है और यह अपनी क्षमता में विस्तार कर रहा है। यह अब तक 1.4 लाख से अधिक रोगियों की सेवा कर चुका है और इसमें इस महीने (यानी मार्च) से 250 बेड की व्यवस्था की जाएगी।
201 एकड़ में फैले इस एम्स में आपात सेवाओं के लिए तीन हेलीपैड्स हैं। अब एक दूसरा सीन देखिये- बदन पर सफेद लैब कोट्स व हाथों में दस्ताने पहने छात्रों का एक समूह तेज उपकरणों से मांस व खाल की ऊपरी परत उतार रहे हैं, आपस में बात करते हुए व पाठ्यपुस्तकों के पन्ने पलटते हुए। वातावरण में संरक्षण रसायनों की हल्की सी गंध भी शामिल है।
यह रामनाथपुरम मेडिकल कॉलेज व अस्पताल का एनाटोमी लैब है और ये छात्र एम्स मदुरै के हैं, जो चालू तो 2021 में हो गया था, लेकिन तमिलनाडु सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों की उधार ली गई बिल्डिंग्स में। हद तो यह है कि इस एम्स का वेबपेज भी जिम्पर, पुड्डुच्चेरी से उधार लिया गया है, जिससे छात्रों के लैब कोट्स से ही मालूम होता है कि उनका एम्स से कोई ताल्लुक है।
रामनाथपुरम थोप्पुर से 132 किमी के फासले पर है। 1,978 करोड़ रुपए की लागत वाला एम्स थोप्पुर में 222 एकड़ में बनना है। इसका उद्घाटन पांच साल पहले प्रधानमंत्री ने किया था, लेकिन वास्तु पूजा के बाद 5 मार्च 2024 को ही इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ है। एक छात्र का कहना है, “हमें नहीं मालूम कि ग्रेजुएट होने से पहले हम कैंपस देख भी पाएंगे या नहीं।
” एम्स मदुरै के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डा. एम हनुमंथ राव का कहना है कि प्रशासनिक बिल्डिंग, क्लासरूम, हॉस्टल व अस्पताल ब्लाक का कुछ हिस्सा सितंबर 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगा और अतिरिक्त विस्तार 2027 तक हो पाएगा। फिलहाल अस्थायी समाधान त्वरित चिंताओं को संबोधित कर रहे हैं, जो विशेषज्ञों के अनुसार दीर्घकालीन केयर गुणवत्ता के लिए उचित नहीं हैं। 2020 के डाटा के मुताबिक भारत में प्रति 1,000 रोगियों के लिए मात्र 0.7 डाक्टर हैं, और यह अनुपात निरंतर गड़बड़ाता जा रहा है।
जबकि डब्लूएचओ का कहना है कि 1,000 रोगियों के लिए कम से कम एक डाक्टर तो होना ही चाहिए। इसके अतिरिक्त शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में चिंताजनक अंतर है। छतीसगढ़ में प्रति 16,000 लोगों के लिए लगभग एक डाक्टर है, जबकि नई दिल्ली में 300 लोगों के लिए एक डाक्टर है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए 2012 में एम्स रायपुर की स्थापना की गई। इसकी ओपीडी में सालाना 8 लाख रोगी देखे जाते हैं, जो छत्तीसगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश से भी आते हैं।
यह 960-बेड सुपर-स्पेशलिटी हॉस्पिटल राज्य में सबसे बड़ा हेल्थकेयर सेंटर है। एम्स नागपुर को नागपुर के ही गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के प्रांगण में स्थापित किया गया है। 2020 की महामारी के दौरान यह आधुनिक हुआ, लेकिन इसमें मैनपॉवर की जबरदस्त कमी है, विशेषकर इसलिए कि केंद्रीय भारत में इसकी ख्याति निरंतर बढ़ती जा रही है यानी रोगियों की तादाद बढ़ रही है और डाक्टर व स्टाफ पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।
2012 से चालू एम्स भुवनेश्वर में भी 43 फैकल्टी वेकेंसी हैं और इसी तरह से एम्स पटना में 59 फैकल्टी की कमी है। रायबरेली व गोरखपुर के एम्स में भी 79-79 फैकल्टी कम हैं। संक्षेप में बात केवल इतनी है कि देशभर में एम्स की स्थापना सरकार के हेल्थकेयर एजेंडा का आधार है। विभिन्न एम्स प्रोजेक्ट्स को करीब से देखने पर उपलब्धियों, चुनौतियों व निरंतर संघर्षों की मिश्रित तस्वीर सामने आती है।