Barmer: पद्मश्री मगराज जैन मूर्ति अनावरण एवं बालिका छात्रावास शिलान्यास कार्यक्रम सम्पन्न

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बाड़मेर (Barmer) अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने देश और समाज के लिए सभी जीते हैं, लेकिन इन सबसे ऊपर उठकर, सभी को अपना मानकर, जाति-धर्म के भेद मिटाकर मानव समाज की सेवा करने वाला ही सच्चा सेवक होता है। पद्मश्री मगराज जैन ने सही मायनों में इन संकल्पों को जीकर एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह बात आचार्य श्री जिनमणिप्रमसूरीश्वरजी म.सा. ने पद्मश्री मगराज जैन मूर्ति अनावरण एवं बालिका छात्रावास शिलान्यास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।उक्त कार्यक्रम श्योर संस्था के माध्यम से पद्मश्री मगराज जैन जी के परिवार द्वारा श्री सत्य साई अंध एवं मूक-बधिर विद्यालय, सोमाणियों की ढ़ाणी, गेहूं रोड़, बाड़मेर में आयोजित किया गया।आचार्य जिनमणिप्रमसूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि मगराज जी का जीवन अभावों, संघर्षों और उतार-चढ़ावों से भरा रहा। मनुष्य अक्सर अभावों से टूट जाता है, लेकिन मगराज जी ने जीवन के इन्हीं अभावों और संघर्षों को अपनी शक्ति बनाकर मानवसेवा का प्रेरक और जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आज अधिकांश विद्यालय व्यवसायिक केंद्र बनते जा रहे हैं, लेकिन मगराज जी ने उन बच्चों के लिए, जो देख नहीं सकते, सुन या बोल नहीं सकते और जो समाज की मुख्यधारा से वंचित हैं कृ उनके जीवन की बेहतरी के लिए ऐसी नींव रखी, जो आज सैकड़ों दिव्यांग बच्चों के जीवन को संबल दे रही है।इस अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प.पू. बहिन म.सा. डॉ. विद्युतप्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा कि उनका मगराज जी से लगभग चार दशक का संबंध रहा है। इस दौरान उन्होंने मगराज जी के कार्यों को निकट से देखा और समझा। उन्होंने कहा कि सामान्य गृहस्थ जीवन और अभावों के बीच रहकर इतनी ऊँचाई तक पहुँचना सुनने में सहज लगता है, परंतु इसके पीछे की तपस्या एक गहरी प्रेरणा है। साध्वी जी ने कहा कि “बाग में रहकर कोई भी फूल खिल सकता है, लेकिन जो जंगल में रहकर खिलता है और अपनी सुगंध फैलाता है, वही सच्चे अर्थों में जीवट व्यक्तित्व का प्रतीक होता है।”प.पू. बहिन म.सा. डॉ. श्री विद्युतप्रभाश्रीजी म.सा. ने कहा कि प्रतिदिन हजारों लोग जन्म लेते हैं, परंतु वे विरले ही होते हैं जो अपने जन्म को सार्थक बनाते हैं। मगराज जी ऐसी ही महान विभूति हैं जिन्होंने संघर्ष और अभावों के बीच रहकर अपने संकल्प, आचार, विचार और व्यवहार के माध्यम से मानवता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाई और अपने जीवन को सार्थक बनाया।तीर्थंकर की संज्ञामगराज जी को तीर्थंकर की संज्ञा देते हुए साध्वी जी ने कहा कि “तीर्थंकर वही हो सकता है, जिसमें देने का भाव हो।” सही मायनों में मगराज जी ने मानव समाज के कल्याण के कार्यों के साथ अपना जीवन एक तीर्थंकर की भाँति जिया है।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तारातरा मठ के मठाधीश एवं पोकरण विधायक महंत प्रतापपूरी शास्त्री ने संघर्ष, संकल्प, साधना और सफलता की बात करते हुए कहा कि “जिस व्यक्ति के जीवन में संघर्ष होता है, वही सच्चा संकल्प ले सकता है; संकल्प से साधना और साधना से सफलता की प्रेरणा मिलती है। ”उन्होंने कहा कि मगराज जी का जीवन इसी संघर्ष, संकल्प, साधना और सफलता की यात्रा का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देता रहेगा।कर्तव्यबोध को ही धर्म की संज्ञा देते हुए स्वामी प्रतापपूरी जी ने कहा कि आज मनुष्य स्वयं के साथ बैठकर यह नहीं सोचता कि वह क्यों मनुष्य है। जब मनुष्य अपने आप से यह प्रश्न करता है, तभी उसमें कर्तव्यबोध जागृत होता है, और यही कर्तव्यबोध मानव जीवन की सार्थकता का आधार है। स्वामी जी ने कहा कि मगराज जैन ने सही मायनों में मानव जीवन जीते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को सार्थक किया है।इस अवसर पर प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की राजयोगिनी दीदी बहन बबीता ने कहा कि दूसरों के लिए जीवन जीना ही सच्ची महानता का परिचायक है, और मगराज जी का जीवन इसी महानता की सजीव मिसाल है। उन्होंने कहा कि मगराज जी की जीवन यात्रा केवल सेवा और समर्पण की कहानी नहीं, बल्कि मानवता के सर्वाेच्च मूल्यों की एक दर्शन यात्रा है, जो समाज को प्रेम, करुणा और निःस्वार्थ सेवा का संदेश देती है।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना लाल मोहम्मद सिद्दीकी ने कहा कि मगराज जी ने अपने जीवन में जो कार्य किए, वे केवल वही व्यक्ति कर सकता है जिसे रब ने खुद चुना हो। इस्लाम की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए मौलाना ने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक होता है जब वह दूसरों के लिए तालीम (शिक्षा) की व्यवस्था करे, नेक औलाद छोड़कर जाए और ऐसे कार्य करे जिससे दूसरों का जीवन आसान बने कृ जैसे अस्पताल बनवाना, प्याऊ स्थापित करना या समाज के हित में कार्य करना। मौलाना सिद्दीकी ने कहा कि मगराज जी ने इन सभी उद्देश्यों को अपने जीवन में निष्ठा और समर्पण के साथ पूरा किया और इस प्रकार अपने जीवन को सही मायनों में सार्थक बनाया।इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत पद्मश्री मगराज जैन की मूर्ति अनावरण तथा बालिका छात्रावास के भूमिपूजन से हुई। इस अवसर पर मगराज जैन के सुपुत्र आनंदराज जैन ने बालिका छात्रावास भवन के निर्माण हेतु ₹41 लाख के आर्थिक सहयोग की घोषणा की। वहीं श्योर संस्था की संयुक्त सचिव श्रीमती लता कच्छावाह व श्री महेन्द्र सिंह कच्छवाहा ने ₹11 लाख, मुमलाज़ अजीज़ फाउण्डेशन ने ₹5 लाख, उम्मेदमल लोढ़ा ने ₹1 लाख और मुकेश वडेरा ने ₹21 हजार रुपये के आर्थिक सहयोग की घोषणा की। इस अवसर पर विद्यालय के दिव्यांग बच्चो ने नवकार मंत्र की प्रस्तुति दी एवं अन्तराष्ट्रीय लोक कलाकार पद्मश्री अनवर खां, फकीरा खां, गफूर खां, भोपाराम ढ़ाढ़ी एवं गोकूल चौधरी ने प्रस्तुतिया दी। कार्यक्रम में सुश्री तनुश्री एवं श्रीमती रेनू जैन द्वारा निर्मित एवं संपादित पद्मश्री मगराज जैन के जीवन पर आधारित लघु फिल्म दिखाई गई। कार्यक्रम में स्वागत भाषण एवं मगराज जी की जीवनी पर संयुक्त सचिव लता कच्छवाहा द्वारा एवं कार्यक्रम की समाप्ति पर धन्यवाद श्री विष्णु शर्मा अध्यक्ष श्योर द्वारा किया गया।कार्यक्रम में बाड़मेर के पूर्व विधायक मेवाराम जैन, द्वारका दास डोसी, किशन लाल वडेरा, नविन सिंहल, मुकेश लैन, अभीषेक लोढ़ा, विक्रम सिंह चौधरी, अनिता सोनी, सुरेन्द्र मेहता, जगदीश चन्द्र मेहता, कुसुमलता, शिक्षाविद् कमलसिंह महेचा, सुशीला देवी, आनंद राज जैन, लक्ष्मण जैन, डॉ भुवनेश जैन, उम्मेदमल लोढ़ा, विष्णु शर्मा, कीशन लाल जाखड़, उमा बिहारी द्धिवेदी, छगन लाल गोयल, डॉ मोहन लाल डोसी, आदील खान, कैलाश कोटड़ीया, महेन्द्र सिंह कच्छवाहा, श्यामलाल सिंहल, डॉ एम.आर. गढ़वीर, उदाराम मेघवाल सहित सामाजिक कार्यकर्ता, संतजन तथा नगर के अनेक गणमान्य नागरिक एवं श्योर के समस्त स्टाफगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर जीतेन्द्र बोहरा ने किया।’सर्वधर्म समभाव की अनूठी मिसाल’कार्यक्रम के दौरान सर्वधर्म समभाव की ऐसी मिसाल देखने को मिली, जिसने सभी के दिलों को छू लिया। शहर में एक दिन पहले हुई तेज बरसात के कारण वह मार्ग, जिससे जैन संतों को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाना था, पूरी तरह से पानी और कीचड़ से भर गया था। संतों के आगमन में कठिनाई की आशंका से माहौल चिंताजनक हो गया।इसी बीच संस्था से जुड़े हनीफ खान, एहदी खान व ओसमान खान के लोगों ने जब यह स्थिति देखी तो बिना किसी आग्रह या निर्देश के स्वयं आगे आए। उन्होंने सेवा भावना और आपसी सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए पूरे दिन मेहनत कर रास्ते को साफ़ किया। पानी और कीचड़ हटाने के बाद उन्होंने रास्ते पर रेत और सूखा मिट्टी डालकर उसे समतल करने का प्रयास किया, ताकि जैन संतों के आगमन में कोई असुविधा न हो।शाम तक मार्ग पूरी तरह साफ़-सुथरा और सुगम बना दिया गया। जब जैन संतों का जुलूस उसी रास्ते से गुज़रा, तो उपस्थित लोगों ने उन स्वयंसेवकों के प्रयासों की सराहना की।

रिपोर्ट – ठाकराराम मेघवाल

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