मन एक विषय से दूसरे विषय में किसकी कृपा की बदौलत जाता है? इसका उत्तर चाहिये । प्रश्न का दूसरा चरण क्या है? वह है कि मनुष्य प्राण से अलग होना क्यों नही चाहता । हर जीव, जीवित रहना क्यों चाहता है? इसका कारण यही है कि शरीर जब तक क्रियाशील है, शरीर में जबतक प्राण है तब तक मन सुख भोग कर सकता है ।
दरअसल शरीर सुख भोग नहीं करता है, सुखभोग करता है मन । जिस दशा में रहने से मनुष्य के मन में चंचलता बढ़ जाती है वह उस दशा में सुख भोग नहीं कर सकता । मनुष्य चाहता है कि उसका मन सुखभोग करे। मन सुखभोग तभी तक कर सकता है जबतक मनुष्य मे प्राण हैं । यदि प्राण नहीं हैं तो मन का सुखभोग भी नहीं होता है । इसीलिये मनुष्य प्राण से अलग होना नहीं चाहते, इसीलिए प्राण या जीवन हर जीव के लिये बहुत प्रिय है । जीवन प्यारा क्यो है इसकी सिर्फ यही वजह है ।
किन्तु मनुष्य सिर्फ खाना पाने से ही संतुष्ट नहीं होता । अगर तुम्हारे साथ किसी का व्यवहार खराब है और वह भर पेट तुम्हें पूड़ी, लड्डु खिलाता है तो तुम खुश नही हो सकते । मनुष्य की यह विशेषता है । कारण इसका यही है कि मनुष्य का मन सिर्फ देहकेन्द्रित नहीं है ।
मैं पहले कह चुका हूॅं कि मनुष्य का मन देहातीत भी है, किन्तु वह शरीर के एक विशेष बिन्दु में, खोपड़ी की एक विशेष जगह में क्रियाशील है । तो यह है मनुश्य का आदिम प्रश्न । जब मनुष्य बहुत कुुछ पाता है, जितना वह चाहता था उससे अधिक पाता है तो चिल्लाता है और चिल्लाकर अपने सुख को व्यक्त करता है ।
जब मनुष्य अपनी सर्व निम्न चाह या मांग के अनुसार भी नहीं पाता है तब वह रो-रोकर अपनी अनुभूति को व्यक्त करता है । तो आदिकाल में जब और जीव-जन्तु अपने सुख को व्यक्त करने के लिये कोई पूॅंछ हिलाता था, कोई कान हिलाता था उस के बाद के समय वचन के द्वारा उस सुख को या उस दुःख को व्यक्त करने लगे । वह जीव जब आनन्दित होता था तो आवाज करने लगता था । वही धरती पर प्रथम जैविक आवाज थी ।
मनुष्य ने समझ लिया कि और एक सत्ता है जिनकी प्रेरणा से ये सब घटनाएँ हो रही हैं । उस सत्ता से पेड़-पौधे परिचित नहीं है । परिचित होने के लिये मानसिक तथा अतिमानसिक शक्ति उनमें नहीं है । जीव-जन्तुओं में भी नहीं है । किन्तु परम पिता की कृपा से मनुष्य में वह शक्ति निहित अवस्था में है ।
उसी रोज से उसी सुप्रभात से मनुष्य के जीवन में, मनुष्य के जगत में धर्म का शुभागमन हुआ । तो मनुष्य की यह जो प्रथम जिज्ञासा थी, इस जिज्ञासा के उत्तर की खोज में आज तक मनुष्य ने जो कुछ भी किया है, वही है धर्म साधना का गुप्त मंत्र ।
मनुष्य ने समझ लिया कि यह विश्व ब्रह्माण्ड जिस द्योतना से स्पन्दित है, यह विश्व ब्रह्माण्ड जिस छंद से छन्दायित है, इस विश्व ब्रह्माण्ड में जिनके कारण आनन्दात्मक अनुभूति हो रही है वे ही मेरे – वे ही हमारे-लक्ष्य हैं । उनके सिवाय हमारे सामने और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं रह सकता तथा उनके सिवाय और किसी से मनुष्य की मुहब्बत नहीं हो सकती ।
आज के मनुष्य में भी वही प्रथम जिज्ञासा है; मगर उस प्रथम जिज्ञासा का उत्तर भी आज के मनुष्य के पास पहुँच गया है । प्राचीन काल के मनुष्य का इस उत्तर को खोजने में जितनी मेहनत करनी पड़ी, आज के मनुष्य को सिर्फ चलना है, सिर्फ आगे बढ़ना है और अवश्य ही वे लक्ष्य तक पहुॅंच जायेंगे ।
आज के मनुष्य परमपुरुष के वीर पुत्र हैं । आज के मनुष्य परमपुरुष की कृपा से धन्य हैं क्योंकि उनकी बहुत मेहनत बच गई है । आज उन्हें किस तरह से आगे बढ़ना है सिर्फ यही सीखना है । सिर्फ इतना ही नहीं, आज के मनुष्य को यह भी वरदान मिल गया कि तुम आगे बढ़ते रहो परमपुरुष तुम्हारे साथ हैं । तो मै भी आज के मनुष्य को आशा दिलाता हूॅं और आशा करता हूॅं कि मनुष्य तुम निडर बनो ।
प्रस्तुतिः दिव्यचेतनानन्द अवधूत