कभी कांग्रेस की गढ़ रही झुंझुनूं लोकसभा सीट पर पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा का भगवा बड़े ही शान से लहरा रहा है। वैसे तो इस सीट पर ओला परिवार का वर्चस्व रहा है। यह भी एक कारण है जिससे कांग्रेस को इस बार झुंझुनू लोकसभा सीट पर अपनी जीत की उम्मीद दिख रही है। वहीं भाजपा प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी पर यहां से जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद में है। झुंझुनू लोकसभा सीट का निर्धारण 1948 में ही तत्कालीन लोकसभा निर्धारण कमेटी ने कर दिया था।
हालांकि पहला चुनाव देश में हुए पहले आम चुनावों के साथ 1952 में हुआ। उस समय कांग्रेस के राधेश्याम मोरारका जीत कर संसद पहुंचे थे। मोराका ने 1957 और 1962 के चुनाव में जीत दर्ज करते हुए हैट्रिक लगाई। 1967 के चुनाव में यहां से स्वतंत्र पार्टी के आरके बिरला व 1971 के चुनाव में कांग्रेस के शिवनाथ सिंह ने यहाँ से जीत दर्ज की।
1977 में जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस को हार मिली और कन्हैया लाल यहां से निर्वाचित हुए। 1980 में जनता पार्टी के ही टिकट पर भीम सिंह चुने गए। लेकिन जब 1984 में चुनाव हुआ तो यह सीट कांग्रेस के मोहम्मद अयूब खान ने जीत ली. 1989 में जगदीप धनखड़ जनता दल के टिकट पर जीते। लेकिन 1991 में मोहम्मद अयूब खान की वापसी हुई। उसके बाद 1996 से लेकर 2009 तक के हुए सभी पांच चुनावों कांग्रेस के शीशराम ओला सर पर जीत का सेहरा सजता रहा।
दो बार से भाजपा का सांसद
2014 में चली देशव्यापी मोदी लहर में यह सीट भी भाजपा की झोली में आ गई। 2014 में यहां से बीजेपी के संतोष अहलावत ने जीत दर्ज की तो 2019 में बीजेपी के ही नरेंद्र कुमार विजयी हुए। बीजेपी इस बार के चुनाव में यहां जीत का हैट्रिक लगाने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि भाजपा के लिए अपना यह नया किला बचाए रखना इतना आसान नहीं है, क्योंकि आठ विधानसभा वाली इस लोकसभा क्षेत्र में पिलानी, सूरजगढ़, झुंझुनू, मांडवा, उदयपुरवाटी और फतेहपुर में कांग्रेस पार्टी के ही विधायक हैं। वहीं बीजेपी के पास यहां की केवल दो विधानसभा सीटें नवलगढ़ और खेतड़ी है।
ओला से कांग्रेस को जीत का आसरा
कांग्रेस ने झुंझुनू लोकसभा सीट पर अपने सबसे विश्वस्त और दिग्गज झुंझुनूं विधायक बृजेन्द्र सिंह ओला को 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी रहे श्रवण कुमार का टिकट काटकर अपना उम्मीदवार बनाया है। ओला को उम्मीदवार बनाने के पीछे उनका पारिवारिक इतिहास भी कारण रहा है। उनके दिवंगत पिता शीशराम ओला ने इस सीट से 1996 से लेकर 2009 तक पांच बार सांसद व केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। जबकि बृजेंद्र की पत्नी राजबाला ओला भी 2014 में यहां लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं। हालांकि उन्हें भाजपा के संतोष अहलावत से 2,33,834 वोटों से हार झेलनी पड़ी थी। वहीं गहलोत सरकार में परिवहन और सड़क सुरक्षा राज्यमंत्री रहे बृजेंद्र ओला विगत चार विधानसभा चुनावों से झुंझुनू विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हो रहे हैं।
फोटो : बृजेंद्र ओला
शुभकरण लगाएंगे भाजपा की हैट्रिक
प्रधानमंत्री मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए जी जान से जुटी भाजपा इस सीट से भी तीसरी बार जीत दर्ज करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है। विगत लोकसभा चुनावों की परंपरा को कायम रखते हुए भाजपा ने इस बार भी अपने वर्तमान सांसद नरेंद्र कुमार को टिकट न देते हुए अपने पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी को मैदान में उतारा है।
चौधरी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उदयपुरवाटी से भाजपा प्रत्याशी थे, लेकिन उन्हें नजदीकी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि वे इस बार प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की लहर के सहारे अपने जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं क्षेत्र के पिछड़ेपन के लिए ओला परिवार को बताते हुए अपनी स्थिति को मजबूत बता रहे हैं। अब देखना यह है कि इस सीट पर वे भाजपा को तीसरी बार विजय श्री दिला पाते हैं कि नहीं।
फोटो : शुभकरण चौधरी
देश को दिए कई ‘बिजनेस टाइकून’
झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र ने देश को कई बिज़नेस टाइकून दिए. देश के बड़े सेठ साहूकार घनश्यामदास बिड़ला, जुगल किशोर बिड़ला पिलानी से थे, तो डालमिया चिड़ावा से, मफतलाल झुंझुनूं से तो सिंघानिया सिंघाना से. मोरारका और पोद्दार नवलगढ़ से तो गोयनका मुकुंदगढ़ से. परसरामपुरिया परसरामपुर से. पीरामल परिवार भी झुंझुनूं से है।
इन परिवारों की औद्योगिक सफलता की कहानियां सर्वविदित हैं। कहते हैं कि झुंझुनूं से निकले झूठ, भरूंट और रंगरूट का मुकाबला कोई नहीं कर सकता! आज भी देश के कई महानगरों में अग्रणी माने जाने वाले उद्योगपतियों में एक दो नाम झुंझुनूं के किसी लाल का तो रहता ही है। इतना ही नहीं भारतीय सेना में भी झूंझुनूं के जवान एवं अधिकारी बड़ी संख्या में हैं।