राजस्थान : मोरथला में अवैध खनन ने निगली दस लाख की नाड़ी

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समीपवर्ती मोरथला ग्राम पंचायत में अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। लुंजपुंज हो चुकी प्रशासनिक व्यवस्था के चलते गांव की मिटटी, पत्थर अवैध खनन का शिकार है। अवैध खनन के काले कारोबार के चलते गांव का वातावरण भी प्रदूषित हो चला है।

नरेगा के तहत बनाई गई नाड़ी पर इसका ग्रहण लग चुका है। अवैध खनन से निकली अपशिष्ट रुपी स्लेरी से दस लाख की लागत से बनाई गई नाड़ी गायब हो चुकी है। ऐसे में नरेगा के श्रमिकों की मेहनत व दस लाख की लागत की नाड़ी अवैध खनन निगल चुका है।

प्रशासन की ओर से मोरथला गांव में रात्रि चौपाल व समय-समय पर शिविर आयोजित किए गए। इसमें ग्रामीणों ने गांव में बेरोकटोक चल रहे अवैध खनन का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाया गया। चौपाल में मौजूद अधिकारियों को लिखित में अवगत करवाया गया।

अवैध खनन में लगे काले कारोबारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की गुजारिश की गई। लेकिन, आम रात्रि चौपालों व शिविरों में ग्रामीणों को आश्वासन की पुडिय़ा थमा दी गई। नतीजतन,गांव में धड़ल्ले से खनन जारी है।

मिट्टी का अवैध दोहन

क्षेत्र में मिटटी खनन जोरों पर है। जेसीबी, पोकलेंड मशीन की मदद से मिट्टी का खनन किया जा रहा है। खुलेआम चल रहे मिटटी खनन से क्षेत्र का भूमिगत संतुलन गड़बड़ा गया है। पंचायत कार्यालय के आगे चल रहे खनन से खाईयां बन चुकी है।

खनन कर निकाली गई मिट्टी को ट्रेक्टर-ट्रॉलियों व डम्परों में भरकर ले जाया जा रहा है। प्रशासन की नाक के नीचे चल रहे कारोबार पर लगाम लगाने की जेहमत अभी तक नहीं उठाई गई है।

सुरसा की तरह मुंह बढ़ा रहा अवैध खनन

सर्वोच्च न्यायालय की ओर से अवैध खनन पर पूरी तरह से बैन किया जा चुका है। लेकिन, शहर व आसपास के क्षेत्र के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश बैमानी है। जिसके चलते अंचल में अवैध खनन का कारोबार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा है। इसी की बानगी समीपवर्ती मोरथला गांव में देखने को मिल रही है।

समूचे गांव की भूमि अवैध खननकर्ताओं के निशाने पर है। जेसीबी व अन्य संसाधनों की मदद से खनन जारी है। खनन से निकली सामग्री को ट्रेक्टर-ट्रॉलियों व डम्परों में भर ले जाया जा रहा है। अवैध खनन से निकले अनुपयोगी मटेरियल, स्लेरी का निस्तारण क्षेत्र में ही किया जा रहा है।

इसी के तहत ग्राम पंचायत द्वारा वर्ष 2012-13 में दस लाख की लागत से बनाई गई नाड़ी को अवैध खनन निगल चुका हैं। मलबा भरने से गायब हुई नाड़ी जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक कारिंदों की लापरवाही का प्रमाण बनी हुई है।

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