राजसमन्द (Rajasamand) आलोक संस्थान अखिल भारतीय नववर्ष समारोह समिति और श्री राम कथा आयोजन समिति के साझे में ” राम के पथ पर एक अलौकिक अनुभव कथा यात्रा के द्वितीय दिवस पर कथा व्यास डॉ प्रदीप कुमावत ने श्रीराम के विरह और संकल्प पर अत्यंत मार्मिक भाव के साथ विवेचन किया।कथा व्यास डॉ प्रदीप कुमावत ने राम कथा में विरह और संकल्प को परिभाषित करते हुए कहा कि आज की कथा का भाग श्री राम के जीवन का वह अध्याय है जहां एक और वियोग की अग्नि धड़कती है तो दूसरी ओर धर्म के प्रति उनका संकल्प चट्टान बनकर खड़ा रहता है। विरह प्रसंग का विवेचन करते हुए कहा कि विरह केवल दूरी नहीं है वरन यह मनुष्य की आत्मा की परीक्षा है । परिवार की विरह पीड़ा में भी श्री राम ने नीति का पालन किया और राजधर्म की मर्यादा निभाने का संकल्प लिया । *राम का विरह, सीता का धैर्य, और लक्ष्मण का त्याग तीनों ने मिलकर उस युग को अमर बना दिया। “विरह से ही संकल्प की शक्ति जन्म लेती है।” जब मनुष्य अपने प्रिय से दूर होता है, तब उसका हृदय किसी उच्च लक्ष्य की ओर उठता है। यही कारण है कि श्रीराम का वनवास केवल दुख का अध्याय नहीं, बल्कि एक नई चेतना का आरंभ था जहाँ त्याग ने विजय को जन्म दिया। वनपथ की हर कठिनाई, हर प्रलोभन, हर अन्याय के सामने राम का धैर्य एक संकल्प बन गया “धर्म चाहे अकेला हो, पर मैं उसी के साथ चलूँगा।” द्वितीय दिवस की कथा के समापन में विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत झांकी “विरह से विजय तक” ने सभी को भावविभोर कर दिया। संगीत, श्लोक और संवादों के माध्यम से बताया गया कि जब संकल्प सच्चा हो, तो विरह भी साधना बन जाता है। अंतिम दृश्य में श्रीराम का वनपथ से लौटकर अयोध्या की ओर बढ़ना मानो यही संदेश दे रहा था कि हर विरह अंततः मिलन का ही मार्ग बनता है, यदि मन में संकल्प अडिग हो। समापन में उपस्थित श्रोताओं ने व्यास पीठ की महाआरती की और समूचा सभागार श्रीराम के जयकारों से गूंज उठा ।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत
