राजसमंद (Rajsamand) नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने विधानसभा में नियम 295 के तहत उठाया शिक्षा जगत का अहम मुद्दा नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र के विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने सोलहवीं राजस्थान विधानसभा के चतुर्थ सत्र में नियम 295 के तहत प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण और गहरी समस्या को उठाया है। उठाए गए मुद्दे में उन्होंने शिक्षकों को शिक्षण के अलावा अन्य सौंपे गए कार्यों से मुक्त करने एवं बिना पुख्ता योजना के शिक्षण संस्थाओं के अनावश्यक विस्तार एवं क्रमोन्नयन पर भी प्रश्न उठाए हैं।
मेवाड़ ने अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है कि शिक्षा व्यवस्था में कई दशकों से योजनाएँ बनाई जाती रही हैं, फिर भी हम मूल लक्ष्य ‘गुणवत्तापूर्ण और सुलभ शिक्षा’ को प्राप्त नहीं कर पाए हैं। यह कोई हालिया असफलता नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही गहरी प्रणालीगत समस्या है।उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि आज के समय में शिक्षक का कार्य केवल और केवल सिखाना होना चाहिए, लेकिन उन्हें विभिन्न प्रशासनिक और गैर-शिक्षण गतिविधियों में लगा दिया गया है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने उल्लेख किया है कि दशकों से शिक्षा के लिए अनेक योजनाएं बनी है। क्या हम ईमानदारी से कह सकते हैं कि शिक्षा के जो लक्ष्य थे, उनपर पहुँच पाये हैं? समझा जाता है की अध्यापक सिर्फ़ सिखाते हैं लेकिन दशकों से चली आ रही नीति कुछ और ही है। क़रीब 17 कार्य है जो शिक्षा प्रदान करने से जुड़े हुए नहीं होकर, शिक्षकों के भरोसे छोड़े गए हैं – भले वह अन्य शिक्षा संबंधित योजनाओं के तहत हो या प्रशासनिक कार्य।
विधायक मेवाड़ ने लिखा है कि दुनिया भर में शिक्षकों की ज़िम्मेदारी को महत्ता दी गई है, भारत देश में हम उन्हें आज की शिक्षा प्रदान करने वाले गुरु भी कहते हैं लेकिन यह तो कभी नहीं हुआ होगा कि एक गुरु को प्रशासनिक या अन्य कार्य में लगाया गया हो? कैसी सरकार हुई होगी जिसने ऐसे नियम बनाये? मौखिक रूप से ज़ोर देना और उसे अमल करने में ज़मीन आसमान का अंतर है।
उन्होंने लिखा कि इन परिस्थितियों में हम कैसे आशा रख सकते हैं कि शिक्षा के समर्पित अध्यापक सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में जुट जाएँगे। जो समर्पित है वे अन्य कार्यों से निराश ज़रूर होंगे, बाक़ी वे प्रशासनिक कार्य में ही रहे तो समर्पित शिक्षक पाठशालाओं में लग सकें। निराधार पाठशालाओं को बढ़ाने और क्रमोन्नत करने से कई वर्षों से अध्यापकों की कमी चली आ रही है।
विधायक मेवाड़ द्वारा उठाए गए मुद्दे से स्पष्ट है कि जब तक शिक्षकों को पूरी तरह से शिक्षण कार्य के लिए समर्पित नहीं किया जाएगा और उन्हें गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया जाएगा, तब तक सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की कोई ठोस उम्मीद नहीं की जा सकती।
मेवाड़ ने विशेष रूप से यह बताया कि बिना उचित विचार-विमर्श, प्रभावी योजना के स्कूलों के विस्तार का परिणाम यह है कि नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र में लगभग 25% शिक्षकों के पद रिक्त हैं, और यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है। विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने इस विषय पर स्पष्ट अपील की है कि शिक्षा नीति की गंभीर और व्यापक समीक्षा की जाए तथा शिक्षकों को केवल शिक्षण कार्य तक सीमित रखा जाए, साथ ही बिना प्रभावी कार्ययोजना के अनावश्यक विस्तार और क्रमोन्नयन न हो।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत