बाड़मेर (Barmer)थार के सुदूर गांवों से निकले बाजरे की महक अब इंटरनेशनल ब्रांड स्टोर की दस्तक देने को तैयार है। बाड़मेर के गाँव आदर्श डूंडा की उद्यमिता से जुड़ी महिलाएं एक ऐसी कहानी लिख रही हैं, जिसने हमारा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।यह कहानी है ‘जीजी बाई’ स्वयं सहायता समूह से जुड़ी दस महिलाओं की, जिन्होंने 2024 में केयर्न वेदांता के बाड़मेर उन्नति प्रोजेक्ट के तहत अपना सफर शुरू किया। शुरुआत छोटी थी, लेकिन सपना बड़ा था—“अपने पैरों पर खड़ा होना।”बाड़मेर की रेत में उगने वाला बाजरा, जो हर घर की थाली में सालों से मौजूद था, कभी किसी ने सोचा भी नहीं था कि वही बाजरा इन महिलाओं की ज़िंदगी बदल देगा। जीजी बाई समूह ने इसी बाजरे को आधार बनाकर जीरा, अजवाइन और ड्राई फ्रूट कुकीज़ बनाना शुरू किया—पूरी तरह देसी, पौष्टिक और स्वादिष्ट।शुरुआत में साधन कम थे, आत्मविश्वास भी डगमगाता था। लेकिन केयर्न वेदांता की मदद से इन महिलाओं को ओवन, मिक्सर, रेफ्रिजरेटर जैसी मशीनें मिलीं और साथ ही बेकरी ट्रेनिंग, फाइनेंशियल लिटरेसी, पैकिंग-ब्रांडिंग की बारीकियाँ भी सिखाई गईं।धीरे-धीरे उनके हाथों का स्वाद बाज़ार तक पहुँचा और जब उनके द्वारा 140 किलो से ज़्यादा कुकीज़ बिकीं तो इन महिलाओं ने ₹3 लाख से अधिक की कमाई करके सबको चौंका दिया।जिस बाड़मेर की महिलाओं को कभी गाँव की चौखट से बाहर जाना मुश्किल लगता था, आज वही महिलाओं की कुकीज़ देश के बड़े मंचों तक पहुँच चुकी हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, जयगढ़ हेरिटेज फेस्टिवल के अलावा दिल्ली में हुए इंडिया एनर्जी वीक, वेदांता दिल्ली हाफ मैराथन आदि आयोजनों में बाड़मेर की मिलेट कुकीज़ जीजी बाई के ब्रांड से जानी जाती हैं।जीजी बाई समूह की सदस्य कुंती देवी कहती हैं, “पहले हम सिर्फ घर का काम करते थे। आज हम प्रोडक्शन संभालते हैं, हिसाब-किताब रखते हैं और अपनी कमाई से घर का खर्च भी चलाते हैं। बाजरे ने हमें पहचान दे दी।”आज यह समूह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं—एक आंदोलन है, जो आसपास के गाँवों की महिलाओं को भी प्रेरित कर रहा है। वे देख रही हैं कि कैसे मिट्टी में उगने वाला एक दाना, जब सही दिशा और समर्थन मिले, तो भविष्य बदल देता है।
रिपोर्ट – ठाकराराम मेघवाल
