मंडार। आधुनिकता के चकाचौंध में होली पर्व पर रंगों से लोगों का मोह जरुर भंग होता जा रहा हैं। लेकिन मारवाड़-गोडवाड़ की धरती पर कई लोक लुभावनी परम्पराएं आज भी संस्कृति का जीवंत परिचय देती नजर आती हैं। होलिका दहन के अगले दिन मनाये जाने वाले ढूंढोत्सव पर नोनिहालों को परिवार के लोग दूल्हा बनाते हैं।
होली पर्व से करीब पांच दिन पूर्व से ही शादी समारोह जैसा ही आयोजन किया जाता हैं। गीत गाने वाली महिलाओं को गुड व पतासे और उपहार भी देने का रिवाज होता हैं। वहीँ धुलण्डी के दिन बच्चे व माता पिता के लिए ननिहाल पक्ष की और से नये कपडे, आभूषण व गुड व पतासे लाया जाता हैं। और अन्य रिश्तेदारों और मित्रगण भी बच्चे के लिए उपहार लाते हैं
नवजात की निकलती बारात
ढूंढोत्सव की शाम को नवजात दुल्हे की बारात भी निकाली जाती हैं। बारात में परिवार के लोग व आस. पास के लोग मिलकर ढोल- थाली बजाते हुए होलिका दहन स्थल पर जाकर नवजात को फेरे लगाकर होलिका की भस्म को माथे पर टीका लगवाया जाता हैं। और अमन चैन खुशहाली की कामना करते हैं।
महिलाएं भी गाती फाग
ग्रामीण अंचलों में होली पर्व पर महिलाएं भी एक साथ झुण्ड बनाकर नवजात बच्चे की माता को फाल्गुन के गीत सुनाती हैं। अधिकतर विवाह में गाये जाने वाले जैसे ही गीत होते हैं। लेकिन इन गीतों में बोल सभी होली के होते हैं। और होली पर्व पर महिलाएं लूर नृत्य भी करती हैं।