
पाली (Pali) में रामलीला दिनों- दिन लोकप्रियता की और अग्रसर हो रही है। दर्शकों की संख्या भी बढ़ रही है । रामलीला के छठे दिन का मंचन दुर्गा वन्दना से आरम्भ होता है जो हनुमान के लंका प्रस्थान से रावण–अंगद संवाद तक चला।
अशोक वाटिका बैठी सीता संध्या कर रही थी, तभी वहां रावण आता है रावण को देखकर पहलेवाली राक्षसियां दूर जाती है। रावण सीता को संध्या करता देखता है । सीता संध्या कर उठती है तो रावण कहता है। हे देवी सीता! राम तो कंगाल और वनवासी है। उसके साथ कष्ट भोगने की अपेक्षा मेरी पत्नी बन जा। तूझे मैं अपनी पटरानी बना दूंगा। सीता कहती हैं राक्षसराज आर्यों के एक ही पति या पत्नी का विधान शास्त्रों में है। जब मैंने विधिवत विवाह कर राम का वरण कर दिया तो अब दुसरे पुरूष की तरफ ध्यान देना अधर्म और अमर्यादा है। यह सुनकर रावण सीता को धमका कर पांव पटकता हुआ लोट जाता है।
रावण के जाते ही सीता अपनी विरह गाथा सुनाती है “किसे सुनाऊ मैं अपनी व्यथा” यह दृश्य देखकर हनुमान और दर्शकों की आंखों में अश्रु धारा बहती है। वहां छिपे हनुमान आंसू पोंछते हुए सीता के पास आते हैं और अपना परिचय देते हैं। सीता अनजान व्यक्ति को देखकर असमंजस में पड़ जाती है। कहीं यह राक्षसी माया तो नहीं है, इसलिए वह हनुमान से कहती हैं।
हे वानरश्रेष्ठ! मैं आप पर कैसे विश्वास करूं की आप राम के दूत हैं? और मेरी खोज करने आये है ? हनुमान उसको राम की अंगुठी देते हैं जिसको देखकर सीता को विश्वास हो जाता है । सीता हनुमान को आर्शीवाद देती है कपिश्रेष्ठ आपका कल्याण हो। सीता से स्वीकृति लेकर हनुमान अशोक वाटिका को उजाड़ते है। इसकी शिकायत रावण के पास पहुंचती है तब रावण हनुमान को पकड़ने अक्षय कुमार को भेजते हैं। फ़िर अक्षय कुमार और हनुमान का जबरदस्त युद्ध होता है। उसके बाद मेघनाद व हनुमान संवाद : मेघनाद द्वारा हनुमान को बंदी बनाकर रावण के सम्मुख प्रस्तुत करना और दोनों का संवाद आकर्षण का केन्द्र रहा।
जब विभीषण को पता चलता है की राम का कोई दूत लंका में आया है तो वह अपने भाई रावण को धर्म अधर्म के बारे में बताकर सीता को सम्मान राम के पास भेजने का कहता है लेकिन रावण अहंकार में कहता है कि दुनिया में मुझे जीतने वाला कोई नहीं है। जब विभीषण ज्यादा समझाने का प्रयास करता है तो रावण कहता है तुझे राम पसंद है, तो वहीं पर चला जा तेरे जैसे लोगों की लंका में कोई जगह नहीं है। तब विभीषण अपने तीन चार साथीयों के साथ लंका छोड़कर राम के पास जाते हैं। राम और विभीषण का कुछ समय आपसी वार्तालाप होता है फिर दोनों गले मिलकर दोस्त बन जाते हैं। तब राम विभीषण को अपनी व्यथा सुनाते हैं सीता के वियोग में राम का विरह : “अश्रु झड़े सुन तेरी व्यथा ” में राम की आकुलता से विभीषण और दर्शकों के हृदय को स्पर्श किया। रावण–अंगद संवाद : दरबार का यह दृश्य पारसी थियेटर की झलक लिए हुए रहा।
आज कलाकारों का रहा योगदान
आज के मंचन में जीवराज चौहान, रोहित शर्मा, गोविंद गोयल, अंकित वैष्णव, मांगू सिंह दुदावत, परमेश्वर सिंह दूदावत, आशीष व्यास, महेंद्र बडगोती, सुरेश राठौड़, गोपाल, अर्जुन बडगोती, जगदीश, जयेश शर्मा, ज्ञानचंद राठौड़, नेमीचंद टांक, महेंद्र चौहान, संजय चौहान, जसवंत सिंह, कमलेश, महिला कलाकार रूपाली जोशी, हिमांशी जोशी, जय जोशी, डिंपल, दिव्या, कंचन दासानी, कशिश, नैहा देवड़ा, हर्षवर्धना भाटी सहित अनेक कलाकारों ने अपनी पूरी ताकत लगाकर दर्शकों से वाह वाह लूटी।
आज ये अतिथि रहे मोजूद
भीमराज भाटी (विधायक, पाली) चन्द्रप्रकाश पारीक (राजस्थानी फिल्म लेखक व निर्देशक) प्रवीण कोठारी (कार्यकारी अध्यक्ष, जिला कांग्रेस) प्रदीप हिंगड़ (पूर्व सभापति, नगर परिषद पाली) हकीम भाई (अध्यक्ष, शहर कांग्रेस) मेहबूब टी (उपाध्यक्ष, जिला कांग्रेस) मदन सिंह जागरवाल (अध्यक्ष, राजीव गांधी पंचायत राज) प्रकाश सांखला (पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष, शहर कांग्रेस) गोर्वधन देवासी (जिलाध्यक्ष, युवा कांग्रेस) नीलम बिड़ला महासचिव प्रदेश महिला कांग्रेस, डॉ. रमेश चावला (पूर्व पार्षद, पाली), मनीष राठौड़ वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी आदि। अतिथियों का इन्होंने किया स्वागत हीरालाल व्यास, एम.एम. बोडा, परमेश्वर जोशी, हरिचरण वैष्णव, गणेश परिहार, मांगीलाल तंवर, देवीलाल पंवार, प्रकाश चौधरी, देवीसिंह राजपुरोहित, सुनील रामावत, लाल चंद बिड़ला, नवीन वागोरियां, दिगम्बर व्यास, राजेंद्र सोढा आदि द्वारा दुपट्टा ओढ़ाकर स्वागत किया गया।
रिपोर्ट – घेवरचन्द आर्य
