मुंबई। स्वतंत्र भारत के इतिहास में 25 जून को काला दिवस के रूप में उल्लेखित किया जाता है। 25 जून 1975 को इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रहा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह 21 महीना सबसे विवादास्पद काल था। भारत में यह तीसरा अवसर था, जब राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था।
पहली बार राष्ट्रीय आपातकाल साल 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान लगाया गया था। बाहरी युद्ध के अतिरिक्त आंतरिक अशांति के कारण साल 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
यहां तक कि समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था।
जिमी कार्टर के कहने पर हटाया आपातकाल
प्रख्यात कानूनविद फाली एस. नरीमन ने एक आर्टिकल लिखा कि ब्रूस ग्रांट के साथ वह शाम को नेहरू पार्क में घूमने जाते थे। ग्रांट ने उन्हें बताया था कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अपनी भारत यात्रा के दौरान इंदिरा गांधी से कहा था कि उन्हें कानून के रास्ते पर चलना चाहिए। तब मार्च, 1977 में इंदिरा ने चुनाव कराया था। इसका मतलब कि कार्टर ने आपातकाल के दौर को खत्म करने का आग्रह इंदिरा गांधी से किया था। ग्रांट के मुताबिक उन्हें यह बात इंदिरा गांधी ने ही बताई थी।
इंदिरा गांधी को एक साथ लगे तीन झटके
इंदिरा गांधी के लिए 12 जून, 1975 का दिन एक नहीं, तीन तरफ से मर्मांतक था। सुबह डी.पी. धर गुजर गए। दोपहर से पहले इलाहाबाद का फैसला आया, जिसे लेकर वे पहले से ही अंदर से डरी हुईं थीं। ठीक 10 बजकर 5 मिनट पर न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने अपना फैसला सुनाया। उन्होंने इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध ठहराया और उन्हें 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य बताया। शाम होते-होते गुजरात विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस हारी और विपक्ष का मोर्चा जीता।
जयप्रकाश नारायण को भी किया कैद
उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना। 25 जून 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया।
हारकर भी जीते राजनारायण
आपातकाल की जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को विजयी घोषित कर दिया था।
विरोधी दलों के नेताओं को किया गिरफ्तार
आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया। इस दौरान विपक्ष के दिग्गज नेताओं मोरारजी देसाई, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, चन्द्रशेखर और राजनाथ सिंह को भी जेल भेज दिया गया।