
Film Review: ‘बेबी जॉन’ (Baby John) में एक छोटे लड़के की दुखभरी कहानी है, जो अपने मृत माता-पिता के ऊपर खड़ा होता है। उसके माता-पिता निर्माण कार्य में मारे गए हैं, जिनकी मौत घटिया जाली के कारण हुई। बिल्डर उसे 10 रुपये देता है और चॉकलेट खरीदने को कहता है। अगले दृश्य में, जॉन (वरुण धवन) उस बिल्डर के पार्टी में घुसकर उसके गुंडों को हराता है और बिल्डर को खिड़की से बाहर फेंककर मार डालता है। इस दृश्य में लड़का चॉकलेट का एक टुकड़ा खाते हुए शव की ओर देखता है, जो पूरी तरह से अत्ली के स्टाइल का है: सामाजिक मुद्दे, हिंसक न्याय और एक जबरदस्त इमोशनल मोमेंट।
फिल्म में इमोशन की अधिकता है, लेकिन सच्चे भावनात्मक जुड़ाव की कमी है। दृश्य जल्दबाजी में काटे जाते हैं, ताकि दर्शक उन्हें ठीक से समझ न पाएं। सामाजिक सुधार की बातें बोर करती हैं और दुःख को आसान कर दिया जाता है, ताकि यह शोर मचाने वाला पल बन जाए। लड़के के माता-पिता मारे गए, लेकिन फिल्म केवल इस बात की परवाह करती है कि दर्शक चॉकलेट खाते हुए लड़के को देखकर खुशी मना सकें।
‘बेबी जॉन’ अटल्ली की तमिल फिल्म ‘थेरी’ का हिंदी रीमेक है, जिसमें वरुण धवन मुख्य भूमिका में हैं। जॉन के रूप में धवन, जो एक शांति प्रिय कॉफी शॉप मालिक है, जल्द ही अपनी छुपी हुई पहचान ‘सत्य’ के रूप में सामने आता है। वह एक सुपरकॉप था, जिसने अपराधियों को सजा दिलवाने में माहिर था। उसकी पत्नी मीरा (कीर्ति सुरेश) और बेटी के साथ परिवार पर एक खतरनाक अपराधी नाना (जैकी श्रॉफ) की नज़र पड़ती है। श्रॉफ का प्रदर्शन असंगत और उलझा हुआ है, जिसमें वह एक हिंदी विलेन की तरह बर्ताव करते हैं।
फिल्म की अवधि 164 मिनट है, जो इस साधारण कहानी के लिए बहुत लंबी है। हालांकि धवन की उपस्थिति आकर्षक है, लेकिन वह इस भूमिका में ज्यादा प्रभावी नहीं दिखते। फिल्म में एक्शन की उम्मीद थी, लेकिन वह भी औसत ही है। कई स्टंट विशेषज्ञों के बावजूद, फिल्म में एक्शन प्रभावी नहीं है। ‘बेबी जॉन’ का संवाद लेखन भी बोझिल है और कभी भी एक स्वाभाविक हिंदी फिल्म का अहसास नहीं कराता, जबकि तमिल सिनेमा के तरीके को अपनाने की कोशिश की गई है, जो सफल नहीं हो पाई।
कुल मिलाकर, ‘बेबी जॉन’ बॉलीवुड के लिए एक कमजोर तमिल रीमेक साबित होती है, जिसमें ना तो नयापन है और ना ही वह जोश जो आज के दर्शकों को आकर्षित कर सके।