अलवर लोकसभा सीट राजस्थान की एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है। हरियाणा की सीमा से लगी इस सीट पर भाजपा दो बार से जीत दर्ज कर रही है। लेकिन यहां पर प्रभाव कांग्रेस का ही रहा है। अब तक यहां उपचुनाव सहित कुल 17 चुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस 11 बार जीती हैं, जबकि भाजपा केवल चार बार जीत मिली है। आजादी के बाद यहां पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था। तब से आज तक 18 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में 4 बार बीजेपी के सिर ताज सजा है तो 11 बार यह सीट कांग्रेस की झोली में गई है।
वहीं एक बार स्वतंत्र प्रत्याशी तो एक बार जनता दल और जनता पार्टी के प्रत्याशी को भी यहां से जीत मिली है। पहली बार यहां से कांग्रेस के टिकट पर शोभाराम कुमावत संसद पहुंचे थे। वह 57 के चुनाव में भी जीते, लेकिन 62 के चुनाव में यहां की जनता ने स्वतंत्र प्रत्याशी काशीराम गुप्ता को चुन लिया। फिर 67 में कांग्रेस के भोलानाथ मास्टर और 71 में हरिप्रसाद शर्मा सांसद चुने गए। 77 के चुनाव में जनता पार्टी के रामजी लाल यादव तो 80 और 84 के चुनाव में कांग्रेस के राम सिंह यादव सांसद बने।
89 के चुनाव में फिर अलवर ने जनता दल के प्रत्याशी रामजी लाल यादव को मौका दिया। यहां पहली बार बीजेपी ने 91 के चुनाव में युवरानी महेंद्र कुमारी को टिकट देकर खाता खोला। लेकिन कांग्रेस ने नवल किशोर शर्मा को टिकट देकर यह सीट फिर से अपनी झोली में डाल लिया। 98 के चुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के पास ही रही, लेकिन सांसद घासीराम यादव बने थे। 99 के चुनाव में बीजेपी के जसवंत यादव ने यह सीट झटक ली, लेकिन 2004 में कांग्रेस के करण सिंह और 2009 में जितेंद्र सिंह यहां से सांसद चुने गए।
हालांकि 2014 में महंत चांदनाथ बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते, लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस के करण सिंह यादव सांसद बने। फिर 2019 का चुनाव जीत कर महंत बालकनाथ यहां से सांसद हैं। अलवर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। वर्तमान में यहां पर पांच विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस तो तीन पर भाजपा का कब्जा है।
संगठन के सारथी भूपेंद्र के सिर सजेगा सेहरा
इस सीट से भाजपा उम्मीदवार भूपेंद्र यादव मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले हैं, लेकिन राजस्थान के अजमेर से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की, और राजस्थान से ही दो बार राज्यसभा सांसद भेजे गए। छात्र राजनीति से केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले भूपेंद्र यादव मात्र सात साल की उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भूपेंद्र यादव की पहचान भाजपा के गिने चुने रणनीतिकारों में हो चुकी है।
वह राजस्थान (2013) और झारखंड (2014) के विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के चुनाव सह-प्रभारी और गुजरात के प्रभारी थे। वह 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के प्रभारी थे। मूल रूप से संगठन एवं चुनाव प्रबंधन का कार्य देखने वाले भूपेंद्र यादव इस बार स्वयं चुनावी मैदान में हैं। अमित शाह के करीबी माने जाने वाले यादव के लिए इस सीट पर बाहरी होना जहां एक चुनौती है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर उनके लिए बड़ी मददगार साबित होगी। अब देखना यह है उनके कद एवं पार्टी के प्रभाव से स्थानीय मतदाता कितने प्रभावित होते हैं और उनके सर विजय का सेहरा सजाते हैं या नहीं।
आपसी फूट में उलझे ललित करेंगे करिश्मा
कांग्रेस ने यहां से ललित यादव को अपना लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया है। इसके बाद कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता नाराज बताए जा रहे हैं। टिकट की दावेदारी जता रहे, पूर्व सांसद डॉ। करण सिंह यादव और पूर्व विधायक संदीप यादव ने तो बगावती तेवर अपना लिए हैं। इनका आरोप है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह ने उनके टिकट कटवाया हैं। उधर, भंवर जितेंद्र सिंह का कहना है कि टिकट में उनकी कोई भूमिका नहीं है। हालांकि इन सबके बावजूद ललित यादव पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में डटे हुए हैं।
ललित यादव मुंडावर से विधायक हैं। उन्होंने पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में 50 हजार से ज्यादा वोट से जीत दर्ज की थी। अपने क्षेत्र में ललित यादव फैन फॉलोइंग अच्छी-खासी है। वहीं उनके समर्थन में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी ने रोड शो करके मतदाताओं से समर्थन मांगा है। अब देखना यह है कि केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे को कायम रखते हुए विधायक ललित यादव भाजपा के दिग्गज नेता भूपेंद्र यादव को परास्त कर पाते हैं कि नहीं।