बॉलीवुड (Bollywood) में एक और नया नाम शामिल हो गया सिंगर सुधीर यदुवंशी (Sudhir Yaduvanshi) का, जिन्होंने इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बना ली है। सुधीर ने अक्षय कुमार के ‘शंभु’ गाने से लेकर धर्मा प्रोडक्शन में काम करने का सफर तय किया है। उन्होंने हाल में फिल्म ‘किल’ के लिए टाइटल ट्रैक ‘कांवा-कांवा’ गाया था, जिससे वह सुर्खियों में आ गए। सुधीर ने जागरूक टाइम्स से शेयर की बॉलीवुड में अपने सफर की कहानी:
आपकी Bollywood में शुरुआत कैसे हुई?
काम तो पहले से ही कर रहा था, लेकिन लाइव शोज करता था। मैं नॉर्थ इंडिया में ज्यादा शोज करता था, जैसे चंडीगढ़, आगरा, जयपुर, दिल्ली आदि शहरों में। इंडस्ट्री में ज्यादा ग्रोथ नहीं हो रही थी। एक दिन सोच में पड़ गया कि आगे क्या करूं? मुझे लगा कि दिल्ली में रहकर वह नहीं कर पाऊंगा, जो करना चाहता हूं। मेरे बैंड मेंबर का एक ही मकसद था, पैसा कमाना। मैं इससे संतुष्ट नहीं था। मेरा मन खुद के गाने बनाने का था या बॉलीवुड में काम करने का। मुझे फिल्मों में गाने गाकर नाम भी कमाना था। बड़े-बड़े एक्टरों के लिए सिंगिंग करनी थी। फिर मैंने दिल्ली में सब कुछ छोड़ दिया और मुंबई आ गया। मुंबई में भी 5-6 महीने बहुत तकलीफ हुई, क्योंकि काम नहीं था। एकदम से जीरो हो गया। दिल्ली में सब कुछ था, यहां कुछ भी नहीं रहा। मैंने सोचा कि मुझे जाना कहां है, करना क्या है, किससे मिलना है? आधा साल इसी में निकल गया। फिर अचानक से मेरे पास कॉल आने लगे। जिन्हें मैंने सैंपल दिए थे, वे लोग बुलाने लगे स्कैच गाने के लिए। धीरे-धीरे मैंने कुछ वेब सीरीज और कुछ फिल्मों में गाया। एक-एक सीढ़ी चढ़ना शुरू किया। अक्षय सर का शंभु गाना मिल गया। मैंने यह गाना 6 महीने पहले गाया था और मुझे पता नहीं था कि इसमें कौन आएगा। मुंबई में कहावत है कि आप काम करो और भूल जाओ। मैं काम करके भूल गया था। एक दिन अक्षय सर का गाना आ गया। फिर सुल्तान अली वेब सीरीज में कुछ लाइंस मैंने गाई थीं, वे भी आ गईं। जून में ‘किल’ मुवी में मेरा गाया आया और वह भी मुझे पता नहीं था कि मैंने इस फिल्म के लिए गाया है। जब कांवा-कांवा रिलीज होने वाला था, उसके कुछ दिन पहले ही मुझे पता चला था।
आपका शंभु गाना भी खूब चला था, उसके बाद से काम क्या बदलाव आया?
जब इंसान का एक काम पूरा हो जाता, तो उम्मीद बढ़ जाती है। मुझे भी यही लगता है कि और ज्यादा काम चाहिए। आपने एक काम कर लिया और किस्मत से अच्छा हुआ। शंभु के बाद मेरे पास 12-15 गाने अचानक से आए, जो भोलेनाथ के ऊपर थे। ऐसे ही जोनर के गाने मेरे पास आने लगे। लोग बोलते हैं कि इस सिंगर को ऐसे गाने गाना चाहिए। शुरुआत में सोनू निगम के साथ भी ऐसा ही हुआ था, उन्हें ‘सेड’ गाने ही मिलने लगे थे। जब कांवा-कांवा आया, तो टाइटल आने लगे। आपके हर एक काम से आने वाला काम डिसाइड होता है।
नए गाने कांवा कांवा के बारे कुछ बताएं, कैसा एक्सपीरियंस रहा?
पिछले 2 साल में काफी प्रोजेक्ट किए, लेकिन कांवा-कांवा पहली बार थियेटर में सुना। मेरे लिए यह गाना बहुत खास है। एक तरीके से मेरा डेब्यू है। जब मुझे यह गाना मिला था, तो शाश्वत सचदेव से मिला था। उनको मुझसे मिलकर और बात करके भी अच्छा लगा था। गाने भी सुने थे। उन्होंने मुझसे बोला था कि भाई हम मिलेंगे और कुछ करेंगे, धमाल मचाएंगे। उनको मेरी आवाज अच्छी लगी थी। एक रात मैं क्रिकेट खेल रहा था, तभी कॉल आया। मैं देख नहीं पाया। मेरे साथ सभी म्यूजिक वाले ही लोग थे, तो दूसरे के पास कॉल आया, जो शाश्वत सर का था। उन्होंने मुझे तुरंत स्टूडियो बुलाया। वहां जाकर मुझे ब्रीफ मिला और वह बोले कि यह गाना तुम्हारे ही लिए बनाया है। मैं खुश भी था और नर्वस भी। गलती होने और रिजेक्शन का डर था। लेकिन, फ्लो बनता गया और सब ओके हो गया। उसके बाद कांवा-कांवा मैंने रिलीज पर सुना।
आप बचपन से ही सिंगर बनना चाहते थे?
बचपन मैं गाया करता था, लेकिन सिंगर बनने का खयाल मन में नहीं था। मैं स्पोर्ट्स मैन या क्रिकेटर बनना चाहता था। मैं उनकी जिंदगी देखता था कि मेहनत बहुत करते हैं। उनकी लग्जरी देखता था। उनसे लोग बहुत प्यार करते हैं। मेरा परिवार तो यही चाहता था कि पढ-लिख ले और कुछ करे।
आपके परिवार में सबसे ज्यादा सपोर्ट किसने किया?
परिवार में किसी ने सपोर्ट नहीं किया। घरवाले यही बोलते थे कि इससे जीवन में तू कुछ हासिल नहीं कर पाएगा। तू जा रहा है, तो वापस नहीं आ पाएगा। अब ऐसा नहीं बोलते हैं। मम्मी भी यही बोलती थी कि मत कर रहने दे, फंस जाएगा, फिर तू इसके बिना रह नहीं पाएगा। जब उम्र बढ़ जाएगी, तो नई शुरुआत करनी पड़ेगी। फिर नौकरी करने में अच्छा नहीं लगेगा। मेरे दादाजी भी फोक सिंगर थे और पापा रामलीला में गाया करते थे, लेकिन वे लोग सिर्फ शौक के लिए गाते थे। हमारे घरों में यही बोला जाता था कि बेटा यह सब इंजॉय के लिए होता है। स्पोर्ट्स के लिए भी यही कहा जाता था। इसीलिए तो हम देश के लिए मेडल नहीं ला पा रहे हैं। वह कहावत नहीं है ‘खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नबाव’। हम इस मामले में पीछे हैं। हिंदुस्तान में लोग डरना छोड़ दें, तो शायद 2-3 मेडल से कई ज्यादा हम ला पाएंगे। अब मेरे घरवाले बहुत सपोर्ट करते हैं और बोलते हैं कि तू हमें गलत साबित कर रहा है। सुनकर अच्छा लगता है।
आगे आप और कैसे गाने गाना चाहते हैं, जो आपकी विश लिस्ट में हों?
मेरी विश लिस्ट में मैक्सिमम पावर फुल सॉन्ग्स है। टाइटल ट्रैक वाले गाने ज्यादा हैं। थोड़े से लोकगीत साउंड काने वाले हैं। जैसे तानाजी मूवी के कुछ गाने या तो बाहुबली मूवी के कुछ गाने थे। इस तरह के गानों में मिट्टी वाली वाइव भी होती है। पंजाबी, राजस्थानी फोक और मोटिवेशनल गाने भी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।
रिपोर्ट – मेघा पटैरिया