![स्टार बनने की राह पर युवा क्रिकेटर](https://jagruktimes.co.in/wp-content/uploads/2024/02/WhatsApp-Image-2024-02-19-at-20.02.30.jpeg)
ऑस्ट्रेलिया फ्रंटियर को पार करना निरंतर कठिन होता जा रहा है, विशेषकर आईसीसी प्रतियोगिताओं के फाइनल्स में। वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप और सीनियर (पुरुष) एकदिवसीय विश्व कप के बाद अब भारत अंडर-19 विश्व कप का फाइनल भी ऑस्ट्रेलिया से हार गया।
पिछले साल हुए सीनियर वर्ल्ड कप की तरह इस साल के जूनियर वर्ल्ड कप में भी भारत बिना हारे, अपने सभी लीग, नॉकआउट व सेमीफाइनल मैच प्रभावी ढंग से जीतते हुए फाइनल में पहुंचा था, लेकिन बेनोनी (दक्षिण अफ्रीका) में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिए गए 254 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए वह 174 रन पर सिमट गया और 79 रन से रिकॉर्ड छटी बार अंडर-19 ट्राफी उठाने से चूक गया।
बेनोनी में 11 फरवरी 2024 को अंडर-19 विश्व कप के फाइनल में रन के हिसाब से ऑस्ट्रेलिया की यह रिकॉर्ड जीत है कि इससे पहले कोलंबो (श्रीलंका) में 19 फरवरी 2006 को भारत पाकिस्तान से 38 रन से हारा था।
इनके अतिरिक्त अंडर-19 में भारत दो और फाइनल्स हारा है- 14 फरवरी 2016 को मीरपुर (बांग्लादेश) में वेस्टइंडीज से 5 विकेट से और 9 फरवरी 2020 को पॉटशेफस्ट्रूम (दक्षिण अफ्रीका) में बांग्लादेश से 3 विकेट से। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि भारत रिकॉर्ड 9 बार अंडर-19 के फाइनल्स में पहुंचा है और उसने इस ट्राफी को रिकॉर्ड पांच बार उठाया है- 2000 (मुहम्मद कैफ की कप्तानी में), 2008 (विराट कोहली), 2012 (उन्मुक्त चंद), 2018 (पृथ्वी शा) और 2022 (यश धुल)। अंडर-19 का यह मंच किसी भी क्रिकेटर के लिए भविष्य का सितारा बनने के लिए स्टेपिंग स्टोन है।
हालांकि इस मंच पर ऐसे भी क्रिकेटर जिन्होंने भविष्य के लिए बहुत उम्मीदें जगाई थीं और फिर वक्त की आंधी में अचानक गुम हो गए (जिनमें प्रमुख हैं उन्मुक्त चंद, अशोक मेनारिया, विजय जोल, संदीप शर्मा, सिद्धार्थ कौल आदि) लेकिन साथ ही ऐसे खिलाड़ियों की भी लंबी सूची है जो सीनियर स्तर पर बहुत बड़े स्टार बने हैं जैसे विराट कोहली, युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, इरफान पठान, रोहित शर्मा, रविंद्र जडेजा, चेतेश्वर पुजारा, शिखर धवन, सुरेश रैना, मुहम्मद कैफ, ऋषभ पंत, केएल राहुल, कुलदीप यादव आदि।
इस समय जो अपना लोहा मनवा रहे हैं जैसे यशस्वी जैसवाल व शुभम गिल, वह भी अंडर-19 की सफलता की ही देन हैं। इसलिए बेनोनी के फाइनल में हार के बावजूद यह प्रश्न तो बनता ही है कि इस समय कौन-से लड़के हैं जो भविष्य का सितारा बनने की दस्तक दे रहे हैं? इस अंडर-19 विश्व कप में अगर प्रभावी परफॉरमेंस के हिसाब से देखा जाये तो कुछ नाम अपने आप ही उभरकर सामने आ जाते हैं- उदय सहारन, मुशीर खान, सचिन धास, अर्शिन कुलकर्णी, सौम्य पांडे, नमन तिवारी व राज लिंबानी।
गौरतलब यह भी है कि इन लड़कों को इस मकाम तक पहुंचाने में इनके परिवारों का बड़ा योगदान व कुर्बानियां हैं, हालांकि इनकी खुद की मेहनत को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। वैसे इन युवाओं की यात्रा इनके बचपन में ही आरंभ हो गई थी, जिस दौरान इन्हें अपने घर, गृहनगर, रिश्तेदारों व दोस्तों का सुख त्यागना पड़ा और इनके क्रिकेटिंग सपनों को साकार करने के लिए इनके परिवारों को बहुत अधिक समय व पैसे का निवेश करना पड़ा है।
इनके सपनों का साकार होना अन्य सौ के लिए प्रेरणा बनेगा। कप्तान उदय सहारन मात्र 12 वर्ष के थे, जब उन्हें राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर में अपना घर छोड़कर 80 किमी दूर पंजाब के जिला फज्लिका में शिफ्ट होना पड़ा कि ट्रेनिंग की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो सकें।
उप कप्तान सौम्य पांडे और उनके पेरेंट्स को मध्य प्रदेश के सिधि जिले में भरतपुर से 40 किमी दूर रेवा में एक किराये के मकान में शिफ्ट होना पड़ा ताकि क्रिकेट अकादमी के पास ठहरा जा सके। अर्शिन कुलकर्णी ने सोलापुर से पुणे तक की 250 किमी की यात्रा तय करनी पड़ी। तेज गेंदबाज राज लिंबानी ने 550 किमी की यात्रा तय की, पाकिस्तान की सीमा के निकट अपने गांव दयापुर से बड़ोदा तक।
इन सभी यात्राओं की पृष्ठभूमि में कुर्बानी देने वाला परिवार या क्रिकेट में नाकाम पिता है, जो अपने टूटे सपनों को अपने बेटे के जरिये पूरा करने के प्रयास में है।
उदय के पिता संजीव सहारन श्रीगंगानगर के गावस्कर के नाम से विख्यात थे। अपना क्रिकेट करियर न बना सके तो बीसीसीआई की लेवल 1 कोचिंग परीक्षा पास की और अपनी अकादमी चलाने लगे। उदय के जन्म से पहले ही उन्होंने तय कर लिया था कि उनका बेटा क्रिकेटर बनेगा। इसलिए उन्हें अक्सर कठोर प्रेम का परिचय देना पड़ा।
उदय को वह अंडर-14 के मोहाली कैंप में छोड़ आये थे। बेटा अकेला वहां रहना नहीं चाहता था, लेकिन उन्होंने उसे वादा करने के बावजूद वापस नहीं बुलाया ताकि उसकी ट्रेनिंग पूरी हो सके। इसी तरह अर्शिन के बाल रोग विशेषज्ञ पिता अतुल कुलकर्णी का सोलापुर में क्लिनिक था, जिसे छोड़कर वह पुणे शिफ्ट हुए ताकि अपने बेटे के जरिये अपने क्रिकेट के सपने को पूरे कर सकें।
इनके परिवार में सभी डाक्टर हैं, अर्शिन के दादा भी क्रिकेट खेला करते थे, लेकिन कोई भी कामयाब क्रिकेटर न बन सका और अब सभी अर्शिन को सफल होता देखना चाहते हैं।
हालांकि राज लिंबानी के पिता वसंतभाई पटेल को क्रिकेट का शौक नहीं है, लेकिन दयापुर के कठिन मौसम (गर्मियों में 50 डिग्री सेल्सियस) में वह अपने बेटे को पागलों की तरह मेहनत करते हुए देखना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने उसे बड़ौदा भेज दिया।
बीड (महाराष्ट्र) में संजय धास ने अपने बेटे का नाम सचिन रखा और उसे ‘तेंदुलकर’ बनाने के लिए कर्ज लेकर छह टर्फ विकेट बनवाये ताकि वह रोजाना 1,000 से 1500 गेंद खेल सके। सरफराज खान व मुशीर खान के पिता नौशाद खान का यह जुमला तो अब सबकी जबान पर है, “मैंने पहले ही बोल दिया था कि उन्हें अच्छा बाप चाहिए या अच्छा कोच।”
सारिम अन्ना