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संपादकीय : ड्रोन सौदा स्वागत योग्य, कुछ सवाल अभी अनुत्तरित

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Last updated: March 7, 2024 6:22 pm
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9 Min Read
ड्रोन सौदा स्वागत
ड्रोन सौदा स्वागत
संपादकीय : ड्रोन सौदा स्वागत योग्य, कुछ सवाल अभी अनुत्तरित 3

तकरीबन चार अरब डॉलर के हथियारबंद अमेरिकी ड्रोन के सौदे में सफलता स्वागतयोग्य है। हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय की मंजूरी के बाद यह सौदा हो ही जाएगा। इससे भारतीय सेना की ताकत और रूतबे में बढ़ोत्तरी होगी। जिन सूचनाओं को सार्वजनिक करने में कोई खतरा नहीं है, सरकार को चाहिए कि उन्हें सामने लाया जाए ताकि इन सौदों के प्रति विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनी रहे और लोगों को भी इस उपलब्धि की महत्ता समझ में आए।

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असल में व्यवहारगत तौर पर यह तय हो गया है कि भारतीय सेना को अब 31 एमक्यू-9बी मानव रहित लड़ाकू ड्रोन, उनमें लगने वाली मिसाइलें और दूसरे उपकरण जल्द ही मिल जाएंगे। यह पहला मौका होगा, जब किसी गैर नाटो देश को ये ड्रोन मिलेंगे।

यह तकरीबन आठ साल के प्रयासों का नतीजा है, जिसमें भारत द्वारा 2016 में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम पर दस्तखत कर उसका आधिकारिक सदस्य बनने की भी भूमिका अहम है, जिसके बिना यह संभव हो पाना कठिन था।

पिछले जून में प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा के दौरान बाइडेन से मुलाकात के बाद तयशुदा समझे जाने वाले इस सौदे को एक खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता की हत्या में एक भारतीय का हाथ होने का आरोप लगाकर संकट में डालने की दिखावटी कोशिश की गई।

तुरंत ही इस बहाने के साथ कि भारत सरकार इसकी जांच करने और अमेरिकी न्याय विभाग की जांच में सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है, इस व्यावसायिक हितपूर्ति पर अमेरिका ने मुहर लगाई। उसे कैसे भी हो हथियारों की बिक्री करनी ही होती है, फिर यह बेहद मोटे मुनाफे वाला चार अरब डॉलर का बड़ा सौदा है।

इससे भारतीय नौसेना को एफ-18 हॉर्नेट बेचने की राह खुलेगी। वह जता सकेगा कि भारत को वह रणनीतिक तौरपर कितना महत्व देता है। इससे चीन के खिलाफ भी उसका हित सधता है। अमेरिका और उसके साथी देश चाहते हैं भारत नाटो का सदस्य बन जाए, बेशक, इस सौदे से अमेरिका मुंह नहीं मोड़ सकता था।

तकरीबन चार अरब डॉलर के सौदे के तहत मिलने वाले 31 हाई एल्टीट्यूड लॉग एंड्योरेंस यूएवी के दो संस्करण हैं, नौसेना को 15 समुद्री संस्करण सी-गार्जियन ड्रोन मिलेंगे, जबकि सेना और भारतीय वायु सेना को आठ-आठ भूमि संस्करण स्काईगार्डियन ड्रोन दिए जायेंगे। भारतीय सेना की मानवरहित रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में यह सार्थक और प्रभावी कदम साबित होगा।

पिछले कुछ सालों में भारत ने अमेरिका से 10 सी-17 ग्लोबमास्टर, 3 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, 22 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर, पी8आई मेरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट, 15 चिनूक हैवी-लिफ्ट हेलिकॉप्टर खरीदने के साथ लॉकहीड मार्टिन से नौसेना के लिए जिन 24 एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टरों का सौदा किया था, उनकी आपूर्ति शुरू हो गए है। इसके अलावा हिंद महासागर क्षेत्र पर निगरानी के लिए अमेरिका से दो एमक्यू 9 ड्रोन लीज पर लेकर नौसैनिक हवाई स्टेशन आईएनएस रजाली पर तैनात किया गया था, पर इस साल उनकी लीज खत्म होने वाली है।

ऐसे में ये सौदा हमारे लिए अहम है, क्योंकि हेलफायर मिसाइलों से लैस ये हथियारबंद ड्रोन अपनी सामरिक और तकनीक क्षमताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं, जो किसी भी मौसम में 2155 किलो वजन के साथ अधिकतम चार हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचकर तीस से पैंतीस घंटे तक उड़ान भर सकते हैं। मतलब हर ड्रोन में आठ लेजर गाइडेड मिसाइल आसानी से फिट की जा सकती हैं।

अपने आप टेकऑफ और लैंड कर सकने वाले ये सेंसरयुक्त विमान आधुनिक रडार सिस्टम, इंफ्रारेड, लेजर, कैमरा से सज्जित होने के चलते सटीक निशाना लगाने और टोह लेने में सक्षम हैं। लेटेस्ट गाइडेड एम्युनिशन वाले इन ड्रोंस को उपग्रह की सहायता से नियंत्रित किया जा सकता है। लंबी दूरी और ज्यादा ऊंचाई तक उड़ान भरने की क्षमता इन्हें खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी रखने, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, एंटी-सरफेस वॉरफेयर और एंटी-सबमरीन वॉरफेयर में हमला करने के अलावा समुद्री डकैती से निपटने, आपदा की अग्रिम सूचना देने, खोज और सहायता, राहत पहुंचाने में भी मददगार बनाती है।

आइलैंड टेरिटरिज को मिलाकर हमारी 7517 किलोमीटर तटरेखा की सुरक्षा के लिए मौजूदा वक्त में महज दो एयरक्राफ्ट कैरियर सक्रिय हैं, आईएनएस विक्रमादित्य, आईएनएस विक्रांत। इनको मजबूत सपोर्ट चाहिए। चीन सीमा पर कई संरचनाएं निर्मित कर अपनी आक्रामकता लगातार बढ़ाते जाने के अलावा पाकिस्तान को लगातार विध्वंसक ड्रोन भी दे रहा है, वह और पाकिस्तान नाभिकीय संयंत्र रखते हैं। उनके आयुध निर्माण के कारखाने, एयर फील्ड या जंगी जहाज बेहद महत्वपूर्ण टार्गेट हैं।

समय पड़ने पर ये ड्रोंस इस तरह के हाई वैल्यू टारगेट भेदने, उन्हें तबाह करने के काम आ सकते हैं। ये टारगेट एक्विजिशन में अत्यंत उपयोगी होंगे, जो सेना की मारक क्षमता बढ़ाने और नुकसान कम करने के लिए आवश्यक हैं। टारगेट एक्विजीशन में पहले दुश्मन के लक्ष्य का सटीक चयन करते हैं फिर फैसला लेते हैं कि इस पर किस तरह के कितने ताकतवर और खर्चीले हथियार का इस्तेमाल सही होगा।

अमेरिका इस तरह के ड्रोन का इस्तेमाल तालिबान और आईएसआईएस के खिलाफ कर चुका है और दुनिया में कई देश युद्ध से लेकर पर्यावरण और मानवीय अभियानों में इन्हें सफलतापूर्वक प्रयोग कर रहे हैं, सो ये ड्रोन आजमाए हुए भी हैं।

इनके द्वारा ख़ुफि़या सूचनाएं जुटाने, टोह लेने और संभावित खतरों की अधिक प्रभावी निगरानी करने, हमलावर होने जैसी हमारी सैनिक क्षमताओं को काफी बढ़ावा मिलेगा, सेना और सरकार अपनी जरूरत के हिसाब से इनका बेहतरीन इस्तेमाल कर सकती है। अतएव यह सौदा सर्वथा स्वागतयोग्य है।

पर इसके साथ उठे कुछ प्रश्न आज तक अनुत्तरित हैं। सैन्य सौदों में कई बार राष्ट्रहेत पर्दे के पीछे गोपनीयता बरती जाती है। लेकिन जिन सूचनाओं को सार्वजनिक करने में कोई खतरा नहीं उन्हें अवश्य सामने लाना चाहिये ताकि इन सौदों के प्रति विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनी रहे, जनता भी इस उपलब्धि की महत्ता आंक सके।

सौदे को कहीं तकरीबन तीन अरब डॉलर, कहीं तीन अरब से ज्यादा तो कहीं चार अरब डॉलर का बताया जा रहा है, सरकार को आधिकारिक तौरपर बताने में क्या हिचक या आपत्ति है कि यह सौदा कुल कितने का है? ड्रोन बनाने वाली कंपनी जनरल एटॉमिक्स एरोनॉटिकल सिस्टम अमेरिका को यह किस दाम बेचती है, अमेरिका ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम जैसे देशों से यह किस भाव सौदा करता है, यह उसका मामला है।

मगर दस्तावेजों के अनुसार एक ही ड्रोन की 26 मिलियन डॉलर से लेकर 133 मिलियन डॉलर तक कई कीमतें हमारे सामने हैं। आखिर हम इसे किस भाव खरीद रहे हैं? भारत बाकी देशों की तुलना में प्रति ड्रोन 110 मिलियन डॉलर देकर इन्हें बहुत ज्यादा कीमत पर खरीद रहा है।

इस आरोप की सच्चाई क्या है? सौदा महंगा है तो क्या हम मय साजो सामान के साथ तकनीक हस्तातांतरण भी कर रहे हैं? क्या इसकी पूरी असेंबलिंग देश में होगी? 25 हजार 203 करोड़ रुपए की इस लागत में रख-रखाव, ओवरहॉल और मरम्मत भी शामिल होंगे? इस संबंध में स्पष्टीकरण जरूरी है।

इनके साथ यह भी कि क्या मेक इन इंडिया के तहत इसके कुछ पुर्जे यहां बनेंगे; क्योंकि अमेरिकी उपकरणों में इसका समावेशन एक कठिन प्रक्रिया है। भले ही सरकार या सेना यह न बताये कि इन हथियारबंद ड्रोन का निगरानी के अलावा कितना और कैसे इस्तेमाल होगा? क्योंकि बेहद महंगे होने के अलावा इन ड्रोन को चलाना काफी महंगा पड़ता है। इनके हर मिशन की लागत बहुत ज्यादा है।

चार अरब डॉलर खर्च के इन ड्रोन का इस्तेमाल पाकिस्तान से भारत में घुसपैठ कर रहे मुठ्ठीभर आतंवादियों को मारने के लिए करना असंभव की हद तक खर्चीला होगा। पर सौदे के बारे में उठते बाकी सवालों पर सरकार को चुप्पी सार्वजनिक पर तोड़नी ही चाहिये।

संजय श्रीवास्तव

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