Barmer में Ambedkar Jayanti पर संगोष्ठी, अंबेडकर जी के योगदान पर चर्चा

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Barmer। डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti) की पूर्व संध्या पर रविवार (13 अप्रैल 2025) को स्थानीय भगवान महावीर टाउन हॉल में मधुकर जन चेतना न्यास की ओर से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विचार गोष्ठी का विषय था – “सशक्त एवं समरस राष्ट्र के निर्माण में डॉ. अंबेडकर जी का योगदान”। कार्यक्रम का उद्देश्य बाबा साहब के जीवन, उनके विचारों और समाज में उनके बहुआयामी योगदान को जन-जन तक पहुंचाना रहा।

कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता और डॉ. अंबेडकर के चित्रों के समक्ष दीप प्रज्वलन से की गई, जिसमें मुख्य अतिथि डॉ. राहुल बामणिया, अध्यक्षता कर रहे सेवानिवृत्त एमडी बी.डी. मालू तथा न्यास अध्यक्ष मनोहरलाल बंसल उपस्थित रहे। इसके बाद न्यास अध्यक्ष बंसल ने कार्यक्रम की भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए और मगराज सैन ने “संस्कृति सबकी एक चिरंतन…” गीत प्रस्तुत कर वातावरण को भावपूर्ण बना दिया। मुख्य वक्ता केसर सिंह सूर्यवंशी (विचारक, संस्कृत भारती) ने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने जीवन भर सामाजिक समता और न्याय के लिए संघर्ष किया।

उन्होंने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता को मिटाने और समरसता लाने के लिए लगातार प्रयास किए। वे हिंदू धर्म के विरोधी नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त विकृतियों के विरोधी थे। उन्होंने शिक्षा और न्याय के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। सूर्यवंशी ने ऐतिहासिक दृष्टांतों के माध्यम से बताया कि डॉ. अंबेडकर स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित थे, और उनके तीन प्रमुख विचार – गरीबों का कल्याण, व्यक्ति निर्माण, और विज्ञान-प्रौद्योगिकी का विकास – को उन्होंने अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने धारा 370 और दोहरी नागरिकता का विरोध किया था और समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वे तार्किक सोच रखते थे और किसी भी विचार को केवल तर्क के आधार पर स्वीकारते थे।

मुख्य अतिथि डॉ. राहुल बामणिया ने डॉ. अंबेडकर की विलक्षण बुद्धिमत्ता और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए काम किया। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष बी.डी. मालू ने सभी का आभार प्रकट किया और दशरथ शारदा ने मंच संचालन किया। यह संगोष्ठी न केवल डॉ. अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम बनी, बल्कि आज के समाज में उनके विचारों की प्रासंगिकता पर भी गहन चर्चा की गई।

रिपोर्ट – ठाकराराम मेघवाल

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