
राजसमंद (Rajsamand) पूज्यपाद तिलकायत श्री 108 श्री इन्द्रदमन जी श्री राकेश जी महाराज की आज्ञा व युवाचार्य गोस्वामी 105 श्री विशाल बावा साहब के मार्गदर्शन में श्रीनाथजी प्रभु की विशेष राग भोग व श्रृंगार से सेवा की धराई गई, श्रृंगार दर्शन में 51 वेद पाटी ब्राह्मणों द्वारा मोती महल में श्री सर्वोत्तम जी का पाठ किया गया वहीं संध्या आरती दर्शन के समय श्रीनाथ गार्ड एवं श्रीनाथ बैंड द्वारा शोभायात्रा निकाली जाएगी । उत्सव पर दर्शनार्थियों में जलेबी व दूध का महा प्रसाद वितरित किया जाएगा ।आज प्रभुचरण श्री गुसाँईजी(श्री विट्ठलनाथजी अर्थात् जगद्गुरु श्री वल्लभाचार्य महाप्रभुजी के द्वितीय आत्मज का प्राकट्य उत्सव है। इस उत्सव को जलेबी उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की नवमी को यह उत्सव स्वयं निकुंज नायक प्रभु श्रीनाथजी द्वारा प्रारम्भ किया गया था। स्वयं श्रीजी ने श्री वल्लभाचार्यजी के छोटे पुत्र गुसाँई जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में इस दिन रामदासजी और श्री कुंभनदासजी को घेरा (जलेबी) सिद्ध करने की आज्ञा की थी। उस दिन से लेकर आज तक प्रभुचरण श्री गुसाँईजी के उत्सव पर मंगला से शयन पर्यन्त घेरा की सामग्री श्रीजी आरोगते हैं । विशेषतः प्रधान गृह में ‘जलेबी के टुक’ की सामग्री श्रीजी को भोग में धरी जाती है ताकि बाल स्वरूप को आरोगने में श्रम ना हो। इसीलिए इस उत्सव को जलेबी उत्सव भी कहा जाता है । मान्यता है कि इस उत्सव से जैसे जलेबी अंदर से रसात्मक होती है वैसे ही हमारा प्रभु के प्रति आंतरिक भाव रसात्मक रहना चाहिए।जगद्गुरु श्री महाप्रभुजी के उत्सव, जन्माष्टमी और राधाष्टमी पर लगभग एक सा श्रृंगार धराया जाता है जो श्रीजी की आज्ञा से ही प्रारम्भ हुआ । परंतु भक्त और सेवक में तारतम्य ना रहे अतः श्री गुसाँईजी ने आज के शृंगार में किनारी नहीं रखी । आज मंगला में फुलेल, आंवला व चंदन से अभ्यंग कराया गया व साथ ही श्री महाप्रभुजी की पादुका जी का भी अभ्यंग किया गया, राजभोग में ठाकुरजी तथा पादुका जी के तिलक लगाकर आरती उतारी गई । केसरी साटन का चाकदार वागा, सुथन केसरी, श्रीमस्तक पर केसरी कुलेह और 5 चंद्रिका की जोड़ सहित जन्माष्टमी वत् वनमाला के श्रृंगार धराए गए । आज पूरे दिन की मुख्य सामग्री जलेबी के टुक, बूंदी व बादाम के शीरा के साथ का शाकघर की सुहाग सौंठ का प्रारम्भ भी होता है। युवाचार्य श्री विशाल बावा साहब ने इस अवसर पर समस्त पुष्टि सृष्टि को पुष्टि परंपरा के विस्तारक श्री गुसाँई जी के उत्सव की बधाई देते हुए कहा कि पुष्टिमार्ग का जीवन श्री वल्लभ के कारण है और पुष्टिमार्ग की जीवनशैली श्री गुसाँईजी के कारण है । जहाँ त्रेता में श्री राम और द्वापर में श्री कृष्ण थे, वहीं श्री वल्लभ-विट्ठल कलियुग में अवतरित हुए “बहोरी कृष्ण श्री गोकुल प्रकटे श्री विट्ठलनाथ हमारे। द्वापर वसुधा भार हर्यो हरि कलियुग जीव उद्धारे॥तब वसुदेव गृह प्रगट होय के कंसादिक रिपु मारे । अब श्री वल्लभगृह प्रकट होय के मायावाद निवारे ॥”चि. बावा साहब ने बताया कि श्री गुसाँई जी एक उदात्त धर्माचार्य एवं क्रान्तदर्शीयुगसृष्टा थे । आपश्री ने पुष्टिमार्ग को व्यापक धरातल पर प्रस्तुत किया । श्री गुसाँई जी ‘भक्तरत्नपरीक्षक’ थे । आपके समय के विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभाशाली गुणवान तथा सामर्थ्यवान व्यक्तियों को पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया। भावप्रधान निःसाधन भक्तों को भक्ति का मार्ग दिखलाया । अपनी विभिन्न लीलाओं के अनुसार विभिन्न नामों से विख्यात हुए और गौमाता व साधुओं के रक्षक होने के कारण इन्हें ‘ गोस्वामीजी ‘ कहा जाता है, आपश्री को यह उपाधि बादशाह द्वारा प्रदान की गई थी । इसके साथ ही उन्हें ‘ न्यायाधीश’ की उपाधि भी प्रदान की गई थी ।श्री गुसाँईजी ने कई ग्रंथों का लेखन किया व श्रीजी की सेवा में अष्टनिधि, अष्टछाप, अष्टयाम सेवा की स्थापना की, आपश्री उत्कृष्ट चित्रकार, कवि, गायक, संगीतज्ञ थे । उन्होंने अपनी सभी प्रतिभाएँ प्रभु की सेवा में समर्पित कर दी ऐसे आचार्य चरण श्री विट्ठलनाथ जी के प्राकट्योत्सव की सभी को मंगल बधाई ।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत
