Rajsamand : 31 अक्टूबर से 3 नवम्बर, तक संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा हरियाणा में होगा सम्पन्न

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राजसमंद (Rajsamand) सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में 78वां वार्षिक निरंकारी संत समागम 31 अक्टूबर से 3 नवम्बर, 2025 तक होगा। जोनल इंचार्ज सुनील बाली के अनुसार इस समागम में अजमेर जोन 21 के जिला राजसमंद से कांकरोली, केलवा, नाथद्वारा,खमनोर, सेमा, दरीबा, रेलमगरा, गिलुंड, कुरज, कुंवारियां, सरदारगढ़, आमेट, देवगढ़, भीम, एवं कई अन्य गांवों के साथ साथ राजस्थान के सभी जिलों से सैकड़ों डीलक्स बसों, एवं पर्सनल छोटी गाड़ियों, ट्रेन एवं प्राइवेट बसों के माध्यम से हजारों श्रद्धालु भक्त पहुंच रहे है, राजसमंद जिले के निरंकारी भक्तों में इस समागम में जाने हेतु खासा उत्साह है। संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल, समालखा (हरियाणा) में होने वाले इस समागम में अद्भुत दिव्यता और भव्यता देखने को मिलेगी। आत्मीयता के इस उत्सव में पूरे भारत एवं देश-विदेश से असंख्य श्रद्धालु भाग लेकर आनंद का अनुभव प्राप्त करेंगे। श्रद्धा, समर्पण के साथ हज़ारों श्रद्धालुजन अपने-अपने क्षेत्रों से आकर पूर्ण तन्मयता और समर्पण भाव के साथ दिन रात सेवाओं में रत हैं; जिससे यह आयोजन अपनी अंतिम तैयारियों की ओर अग्रसर है।

यह समागम केवल एक धार्मिक या वार्षिक आयोजन नहीं, अपितु ज्ञान, प्रेम और भक्ति का ऐसा पावन संगम है, जो ब्रह्मज्ञान द्वारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सशक्त माध्यम बनता है। यहाँ श्रद्धालु न केवल आध्यात्मिक जागृति पाते हैं, बल्कि मानवता, विश्वबंधुत्व और आपसी सौहार्द की भावनाओं को भी आत्मसात करते हैं। यह आयोजन ‘आत्ममंथन’ की वह दिव्य भूमि है, जहाँ प्रत्येक साधक अपने अंतर्मन में झाँकने, आत्मचिंतन करने और आत्मिक चेतना को जागृत करने की प्रेरणा प्राप्त करता है।

यह सम्पूर्ण आयोजन सतगुरु माता जी की दिव्य प्रेरणा और आशीर्वाद से संचालित हो रहा है। सतगुरु की यही मंगलकामना रहती है कि हर श्रद्धालु इस समागम में प्रेम, सम्मान और समुचित सुविधा का अनुभव करते हुए आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण हो। संत निरंकारी मंडल के सचिव श्री जोगिंदर सुखीजा के अनुसार एक समय पर जो स्थल केवल एक सामान्य मैदान था, वह अब संतो की कर्मठ सेवा भावना के कारण एक भव्य शामियानों की सुंदर नगरी में परिवर्तित हो चुका है। यह दिव्य वातावरण प्रत्येक आगंतुक को अपनी ओर आकर्षित करता है।

समागम स्थल को एक दिव्य नगरी का रूप दिया गया है। विशाल पंडालों में भक्तों के लिए सुव्यवस्थित बैठने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। समागम मंच पर हो रहे प्रेरणादायक प्रवचन, भावपूर्ण भजन और विचारों को समूचे परिसर में और अधिक प्रभावी रूप से दर्शाने हेतु समूचे परिसर में अत्याधुनिक एल.ई.डी. स्क्रीन स्थापित की जा रही हैं, जिससे दूरस्थ स्थानों पर बैठे श्रद्धालु भी उसी भाव, ऊर्जा और अनुभूति से सत्संग का लाभ प्राप्त कर सकें। पूरे समागम परिसर को चार प्रमुख खंडों में विभाजित किया गया है, जिससे संचालन, आवागमन और सुविधाओं का समुचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।

पिछले वर्षों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, इस वर्ष भी मुंबई के श्रद्धालु भक्तों द्वारा निर्मित मुख्य स्वागत द्वार अपनी कलात्मक भव्यता के साथ समागम की आध्यात्मिक रूपरेखा का प्रतिबिंब बनकर उभरा है। यह द्वार न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि समर्पण, सेवा और सृजनशीलता का सजीव उदाहरण भी है। जैसे-जैसे समागम में श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह स्वागत द्वार भी अपने स्वरूप, विेस्तार और गरिमा में और अधिक भव्यता धारण करता जा रहा है, मानो यह समस्त मानवता को प्रेम, अपनत्व और समभाव से आमंत्रित करने हेतु तत्पर हो।

इस पावन संत समागम में हर सज्जन महात्मा एवं श्रद्धालु भक्त का सादर आमंत्रण है। आइए, इस आत्मिक मिलन और भक्ति के महासंगम का हिस्सा बनें, सतगुरु के दिव्य दर्शन करें, उनके अमृतमय प्रवचनों का लाभ प्राप्त करें, और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की इस अनुपम यात्रा में सहभागी बनकर जीवन को धन्य करें। निसंदेह यह संत समागम केवल एक आयोजन नहीं बल्कि आत्म मंथन, आत्मबोध और आंतरिक शुद्धि का अवसर है।

रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत

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