
राजसमंद (Rajsamand) जिले के आमेट तहसील मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर राछेटी ,ग्राम पंचायत के गांव चावंड खेड़ा की पहाड़ीयो पर स्थित है मां चामुंडा माताजी का बड़ा विशाल मंदिर।इस मंदिर का इतिहास भी बड़ा विविधता भरा है। ग्राम पंचायत के सरपंच प्रतिनिधि एवं पुजारी परिवार के सदस्य शिवलाल गुर्जर बताते है कि यह राजसमंद जिले का पहला चामुंडा माताजी का मंदिर है। जहां पर वर्षों से महिलाएं गर्भ गृह में प्रवेश कर माताजी की सभी प्रकार की पूजा, अर्चना, श्रृंगार आदि करती आ रही है। पूर्व में मन्दिर की स्थापना के तौर पर इसी पहाड़ी के ऊपर चारों और दीवारों थी वही बीच में एक खुले चबूतरे के ऊपर तीनो मूर्तियों की स्थापना के साथ पूजा अर्चना की जा रही थी।जिनमे 2 मूर्तियां माँ चामुंडा की है।वही एक मूर्ति खेडा देवी की है। 2007 में इसी नवरात्रों के दिनों में इसी पहाड़ी पर माता जी की आज्ञा लेकर सार्वजनिक व सर्व समाज के द्वारा आर्थिक सहयोग व सहायता के साथ में भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया तथा विधि-विधान पूर्वक इस मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्ठा करवाते हुए नई मूर्तियों की स्थापना की गई। जैसा की पुजारी परिवार बताते हैं कि करीब चार पीढ़ी पूर्व लगभग 150 वर्ष पहले चावंडखेड़ा गांव के पास में मानकदेह गांव में गुर्जर समाज के गरड़ गौत्र के द्वारा मारवाड़ से लाई गई मूर्तियो को ग़ांव के बाहर एक पहाड़ी पे स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू की थी।ग़ांव के तत्कालीन राजपरिवार माताजी के उपासक थे। लेकिन मन्दिर के पास में ही श्मशान घाट होने पर माताजी ने पुजारी को यहां से मन्दिर से मूर्तियों को हटाने और नई जगह पर पूजा अर्चना की बात सपने में आकर कही।पूजारी की बातों का ग़ांव वालो ने कोई तवज्जो नही दी।जिससे नाराज होकर माताजी स्वं साधारण महिला का रूप लेकर पाड़े पर बैठकर चावंड खेड़ा ग़ांव की तरफ निकल गई।राह में तत्कालीन गुर्जर परिवार के सूरजमल की दादी माँ खेत पर रोटी लेकर जा रही थी।रास्ते मे महिला बन पाड़े पर बैठी चामुंडा माताजी ने खाना मांगा।दादी माँ ने पास में बैठाकर दही दे दिया।महिला की सेवा भाव देखकर माताजी ने कहा कि पास के ग़ांव मांनकदेह के बाहर पहाड़ी पर जो मन्दिर में मूर्तिया है उसको वहां से हटाकर तुम्हारे ग़ांव की पहाड़ी पर स्थापित कर दो।साथ ही पूजा अर्चना भी तुम ही करना।गांवो वालो ने मांनकदेह ग़ांव जाकर श्मशान भूमि के पास मन्दिर से मूर्ति हटाकर चावंड खेड़ा कि पहाड़ी पर चबूतरा बना कर स्थापित कर दी।साथ ही जंगल में होने से एक खेड़ादेवी व एक ओर मूर्ति ग़ांव वालो की अपनी ओर से स्थापित की गई।माताजी के आदेशानुसार तभी से आज तक महिलाएं ही पूजा अर्चना करती आ रही है।मन्दिर के साथ ही हनुमानजी व अन्य देवी देवताओं के मन्दिर है।वही वर्तमान में मन्दिर की पुजारी प्यारी देवी गुर्जर है।इससे पूर्व में हरकू देवी गुर्जर , एजी बाई गुर्जर तथा परंपरा अनुसार गुर्जर परिवार की महिलाएं ही पूजा अर्चना करती आ रही है।वही वर्तमान में भोपा पोकर गुर्जर, गोवर्धन गुर्जर,लादू सिंह रावना,जस्सू गुर्जर, लादू गुर्जर, मांगीलाल गुर्जर, नारायण लाल गुर्जर ,पन्ना लाल गुर्जर,डालूराम,भीम सिह,पारसमल,उदय लाल गुर्जर ,भोजाराम गुर्जर, कालू सिंह रावना, हीरालाल, लादू लाल योगी, जसु योगी,शंभू रावल,उदय रावल आदि नवरात्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
चमत्कारी है मन्दिर की महिमा
जब से इस ग़ांव मे मूर्तियों की स्थापना हुई है।तभी से आसपास क्षेत्रो में चमत्कार होने लगे।मूर्तियों के साथ खेड़ा देवी जो जंगलो कि माताजी कहलाती है। इस पूरे क्षेत्र में कही पर भी हरे पेड़ नही काटे जाते। जिन लोगो ने जानबूझकर हरे पेड़ काटे लिए उन परिवारों को बड़े कष्ठों से गुजरना पड़ा है।वर्तमान में 20 वर्ष पूर्व सड़क निर्माण के समय ठेकेदार द्वारा गलती से सड़क किनारे खड़े हरे पेड़ो को काट दिया था।जिसके परिणाम स्वरूप काम करनेवाले लोग बीमार हो गए।मशीनें खराब हो गई।या जाम हो गई।ठेकेदार द्वारा माताजी के समक्ष माफी मांगने ओर ऐसी गलती नही करने की बात कहने के बाद ही उक्त सड़क बन पाई।मन्दिर के निचे की ओर एक चट्टान पर एक गड्ढे में किसी भी मौसम में ताजा पानी भरा रहता है।जो कभी खराब नही होता।इसी पानी से मन्दिर के गर्भ गृह के समस्त कार्यो को सम्पादित किया जाता है।तथा इस पानी को पीने से अनेक प्रकार की बीमारियों से निजात मिल जाती है।बताते है की मांनकदेह ग़ांव से माताजी पाड़े पर बैठकर 3 फलांग में आ गई थी। जिनके पैरों की निशानी आज भी मौजूद है।एक पर का निशान मानकदेह गांव में दूसरा पैर बीच रास्ते के एक खेत की चट्टान पर तथा तीसरे पैर का निशान चावंड खेड़ा की एक चट्टान पर आज भी नजर आ सकता है।जब माताजी मांनकदेह से रवाना हुई तो निशानी के तौर पर एक 12 फिट की चट्टान रावले के गेट पर खड़ी कर दी जो आज भी विद्यमान हैं।जिसकी पूरे ग़ांव वाले आज भी माताजी के तूप में पूजा अर्चना करते है।मंदिर के आसपास के दर्जन पर गांव के सर्व समाज के लोग मंदिर के प्रति अपनी आस्था रखते हैं तथा दोनों नवरात्रि में आसपास के गांव वाले जमीन पर ही सोते हैं। सभी गांव का सामूहिक भोजन इसी मंदिर में 9 दिन तक चलता रहता है।
मन्दिर परिसर में 50 लाख के विकास कार्य
2007 में नए मंदिर बनने के बाद तत्कालीन सिंचाई राज्य मंत्री वर्तमान विधायक सुरेंद्र सिंह राठौड़ के प्रयास तथा ग्राम पंचायत राछेटी व भामाशाहो के सहयोग से करीब 50 लाख रुपए के विकास कार्य करवाए गए। जिनमें मुख्य सड़क से मंदिर तक सीसी रोड का निर्माण, मंदिर परिसर में दो सामूहिक भवन, स्वच्छ पानी पीने के लिए टंकी निर्माण,100×50 फिट का टिन सेट का सभागार व दो पक्के कमरों का निर्माण,सुलभ शौचालय, पानी का टैंक, सुंदर गार्डन का निर्माण करवाया गया है। यह जानकारी माधवेंद्र सिंह राजपूत आमेट।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत
