Rajsamand मातृकुंडिया बाँध पर आंदोलित किसानों की पुरानी समस्या के स्थायी समाधान हेतु मुख्यमंत्री को पत्र

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राजसमंद (Rajsamand) जिले की रेलमगरा तहसील स्थित राजसमंद चित्तौड़ सीमांत क्षेत्र में बने मातृकुंडिया बाँध के प्रभावित किसानों की 56 दिनों से जारी दिन–रात की धरना–आंदोलन को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता रोशनलाल टुकलिया ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को विस्तृत पत्र भेजकर उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर स्थायी समाधान निकालने की माँग की है।टुकलिया ने पत्र में उल्लेख किया है कि यह बाँध मूलतः भीलवाड़ा जिले के मेजा क्षेत्र को पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाया गया था। इसकी पेटा भूमि में जवासिया, गिलूण्ड, कुण्डिया, गुर्जनिया, कोलपुरा, धूलखेड़ा, आरनी सहित आसपास के गाँवों के किसान पीढ़ियों से खेती करते आए हैं। परंतु बाँध के पूर्ण भराव की स्थिति में इन किसानों की कृषि भूमि डूब में आ जाती है, जिससे वे फसल नहीं ले पाते और उनकी आजीविका पर गहरा असर पड़ता है। जिससे बाँध की भराव क्षमता और जलस्तर में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप किसानों की जमीन अब और अधिक समय तक डूब में रहने लगी, जिससे संकट स्थायी रूप ले बैठा।इस संबंध में किसान पिछले कई वर्षों से आंदोलन करते आ रहे हैं। हाल ही में रेलमगरा दौरे पर आई पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को भी किसानों ने ज्ञापन सौंपा था।वर्तमान में भी मातृकुंडिया बाँध के गेट पर लगातार 56 दिनों से किसान धरने पर बैठे हैं। उनकी मुख्य माँग है कि बाँध के जलस्तर को स्थायी रूप से 22 फीट की जगह 18 फीट तक सीमित कर दिया जाए, ताकि वे रबी की बुवाई समय पर कर सकें और खेत डूब से सुरक्षित रह सकें।किसानों का कहना है कि हर वर्ष यही स्थिति दोहराई जाती है और वे मजबूरी में आंदोलन का सहारा लेने को विवश होते हैं, क्योंकि खेती ही उनकी आजीविका का आधार है।टुकलिया ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से आग्रह किया है कि जल संसाधन विभाग, संभागीय आयुक्त और जिला प्रशासन को सम्मिलित कर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जाए, जो स्थल निरीक्षण कर किसानों से संवाद के माध्यम से स्थाई समाधान तलाशे। समाधान मुआवज़े की उचित व्यवस्था, नहर निर्माण से हुए नुकसान की भरपाई, या अन्य वैकल्पिक उपायों के माध्यम से निकाला जा सकता है।पूर्व में संभागीय आयुक्त की बैठक के बाद राजसमंद जिला कलक्टर अरुण कुमार हसीजा द्वारा स्थल पर पहुँचकर वार्ता की गई थी,जहाँ कुछ मांगो पर सहमति बनी परंतु कुछ माँगें राज्य स्तर से संबद्ध होने के कारण लंबित रह गईं।धरने में अब महिलाओं की भी लगातार भागीदारी बढ़ रही है, जो किसान समुदाय के बढ़ते आक्रोश का संकेत है। यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया ।टुकलिया ने कहा कि यदि सरकार और प्रशासन किसानों की न्यायोचित माँग को संवेदनशीलता से समझते हुए समयबद्ध निर्णय लेते हैं, तो वर्षों से चली आ रही इस लंबित समस्या का स्थाई अंत हो सकता है और किसान का भरोसा राज्य सरकार एवं प्रशासन पर और अधिक मजबूत होगा। ।

रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत

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