Rajsamand : वाणी का संयम नहीं होने से टूट रहे परिवार: Pandit Shastri

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Pandit Shastri

राजसमंद (Rajsamand) गीगा खेड़ा कोटडी भीलवाड़ा के कथा मर्मज्ञ पंडित मुकेश शास्त्री ने कहा कि व्यक्ति को बोलने से पहले काफी सोच समझना चाहिए उसके बाद ही मुख से वाणी निकालना चाहिए क्योंकि इस वाणी के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था। अगर द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधा कहने से पहले सोचा होता तू महाभारत का युद्ध नहीं होता। उन्होंने कहा कि आज के समय में जो अपराध देखने को मिल रहे हैं उनके पीछे भी काफी हद तक वाणी का असंयम ही जिम्मेदार है। घर परिवार में जरा जरा सी बात पर बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देने से ही आज के समय में परिवार टूट रहे हैं और रिश्तो में मिठास की जगह खटास भरती जा रही है। उन्होंने महाभारत के युद्ध से पूर्व प्रभु श्री द्वारकाधीश के कर्ण को पांडवों की ओर होने के लिए समझाने के दौरान कर्ण की और से संकट में दुर्योधन के साथ देने के कारण उसके द्वारा दुर्योधन के प्रति मित्रता निभाने की बात बात कहने के प्रसंग पर कहा कि आपत्ति के समय अगर कोई साथ देता है तो उसे जीवन भर नहीं भूलना चाहिए। अपने दिन श्रेष्ठ आने पर उसको त्याग दो यह अनुचित है। संकट में साथ देने वाले का एहसान मानना चाहिए की बुरे समय में उन्होंने हमको निकाला। उन्होंने कहा कि जिस समय आपके जीवन में संत का प्रवेश हो जाए इस समय आप समझ लेना कि परमात्मा से मिलन का मार्ग प्रशस्त हो गया है। संत ही है जो आपके जीवन के कष्टों को दूर कर आपके मां को निर्मल बना सकते हैं। पंडित शास्त्री ने प्रभु श्री द्वारकाधीश के विदुर के यहां मेहमान बनकर जाने और विदुर की पत्नी के प्रभु प्रेम में पागल होते हुए उन्हें फलों के स्थान पर उनके छिलके परोस देने के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि प्रभु ने प्रेम से परोसे गए छिलकों को भी पूरे रस के साथ अपना आहार बनाया अर्थात प्रभु किसी वस्तु से नहीं, बल्कि सिर्फ भक्ति भाव और प्रेम से प्रसन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल की भक्ति दिखावा और आडंबर अधिक होता है भाव कम होता है। इसलिए अगर प्रभु की भक्ति करनी है तो पूरे मन से और भाव से करनी चाहिए तभी प्रभु आपकी भक्ति को स्वीकार करते हैं। भजनों से भक्तिमय हुआ माहौल कथा के दौरान प्रसंग के अनुसार बीच-बीच में कई भजनों की प्रस्तुतियां दी गई। के तहत सुख भी मुझे प्यार हैं दुख भी मुझे प्यार हैं मैं कैसे कहूं भगवान दोनों ही तुम्हारे हैं, इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले, हे आनंद आयो सा सतगुरू मा पर रंग बरसायो, बिनु सत्संग विवेक न होई,सतगुरु सा माने प्रेम प्याल़ो पायो रे, कहां छुप गए मेरे प्यारे कन्हैया यहां लाज मेरी जा रही है एवं सबसे ऊंची प्रेम सगाई, जैसे भजनों की प्रस्तुति पर श्रद्धालु भाव-विभोर होकर भक्ति करने लगे।

रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत

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