
थार नगरी बाड़मेर (Barmer) सरकारी वातानुकूलित कमरों में बैठकर आदेश लिखने वालों ने शायद कभी मरुभूमि की प्यास महसूस ही नहीं की। यहां बूँद-बूँद पानी के लिए लोग तरसते हैं, और मनरेगा के तहत बने टांके ही गांवों की जीवनरेखा बने हुए थे। जिनसे इंसान, मवेशी और खेत सबका सहारा जुड़ा था। अब राज्य सरकार ने अचानक इन टांकों के निर्माण पर रोक लगाकर मरुभूमि के लोगों के साथ बड़ा अन्याय कर दिया है।
गांव-गांव में इस फैसले के खिलाफ नाराज़गी साफ झलक रही है। लोग कह रहे हैं कि जल जीवन मिशन के नाम पर करोड़ों के प्रोजेक्ट तो बने, लेकिन ज़मीन पर जनता की असल ज़रूरत पानी को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। पश्चिमी राजस्थान की सच्चाई वही जानता है जिसने यहां गर्मी के दिनों में सूखे कुएं और रेत उड़ाती हवाओं के बीच जिंदगी देखी हो।
इस बीच, सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने जनता की आवाज़ बनकर इस मुद्दे को मजबूती से उठाया है। उन्होंने साफ कहा है कि “टांके बंद करना मतलब बाड़मेर की सांस रोकना है।” बेनीवाल की यह आवाज़ अब मरुभूमि के हर कोने में गूंज रही है। जहां लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनका प्रतिनिधि सरकार तक उनकी पीड़ा पहुंचाकर यह अन्याय रुकवाएगा। जनता कह रही है। बेनीवाल बोल रहे हैं तो शायद अब हमारी प्यास सुनी जाएगी।
रिपोर्ट – ठाकराराम मेघवाल
