
भीलवाडा (Bhilwara) जिले के अकोला क्षेत्र के चांदगढ़ गांव में बनास नदी किनारे चल रहे बजरी खनन कार्य में पर्यावरणीय नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। खनन लीज की शर्तों के अनुसार 18 हजार पौधे लगाने और उनका रखरखाव करने के बजाय लीजधारक ने 70 से अधिक पेड़ों की अवैध कटाई कर पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचाई है। इस गंभीर मामले को लेकर पर्यावरणविद बाबूलाल जाजू ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। जाजू ने कहा कि बजरी खनन लीजधारक द्वारा लीज अनुबंध की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है। खनन कार्य करने वाले लीजधारक द्वारा पौधे लगाने के बजाय 70 विशालकाय पेड़ और काट दिए, जो पर्यावरण संरक्षण कानून का गंभीर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की बड़ी घटना बिना प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। जाजू ने पेड़ काटने वाले लीजधारक का बजरी खनन लीज अनुबंध तुरंत निरस्त करते हुए 51 लाख रुपए का जुर्माना वसूल कर पेड़ लगाने एवं उनकी सुरक्षा हेतु अनुबंध पर देने की मांग की। साथ ही संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई करने की भी मांग की। जाजू ने कहा कि लीज यदि निरस्त नहीं की जाए तो लिखित रूप से पंजीकृत (रजिस्टर्ड) एग्रीमेंट कर पौधे लगवाने एवं उनकी सुरक्षा संबंधी कार्य शुरू करवाया जाए। पर्यावरणविद जाजू ने यह भी कहा कि जिला प्रशासन को 18 हजार पौधे लगाने की पूर्व योजना के साथ-साथ, काटे गए पेड़ों की भरपाई हेतु विशेष रूप से समान प्रजाति के पेड़ लगाने पर ध्यान देना चाहिए। जाजू ने कहा कि संबंधित विभागीय अधिकारियों की मौन सहमति के बिना 70 पेड़ों की कटाई संभव नहीं है। उन्होंने दोषी अधिकारियों के निलंबन की भी मांग की। उन्होंने जनता से भी अपील की कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार या प्रशासन का काम नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यदि समाज सजग रहेगा, तो कोई भी ठेकेदार या अधिकारी इस प्रकार के अपराध करने की हिम्मत नहीं करेगा। इस पूरे प्रकरण को लेकर क्षेत्र में चर्चा का माहौल बना हुआ है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार खनन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की शिकायतें की थीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि दोषियों को सजा दी जाए और नदी क्षेत्र को हरियाली से फिर से आच्छादित किया जाए। चांदगढ़ में हुए इस पेड़ कटाई प्रकरण ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि प्रशासनिक लापरवाही और नियमों की अनदेखी किस प्रकार प्राकृतिक संपदा को नष्ट कर रही है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या ठोस कदम उठाता है, क्या दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।
रिपोर्ट – पंकज पोरवाल
