बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती के उपलक्ष्य में स्थानीय तलबी रोड स्थित लुम्बनाथ महाराज के धूणे पर एक विशाल विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के सह-संयोजक विक्रमसिंह जोधा ने बताया कि संगोष्ठी के मुख्य वक्ता रामचंद्र थे, जिन्होंने कहा था कि वर्तमान समय में बाबा साहब का समग्र चिंतन समाज के समक्ष रखने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में छुआछूत और भेदभाव जैसी कुप्रथाएं जारी हैं।
यदि हम चाहते हैं कि समाज में विघटन न हो और एकता बनी रहे, तो इस विषमता को समाप्त करना होगा। रामचंद्र ने यह भी बताया कि यदि हम बाबा साहब की जीवनी को गहराई से पढ़ें, तो यह स्पष्ट होता है कि ‘अंबेडकर’ सरनेम उन्होंने अपने एक ब्राह्मण शिक्षक के सम्मान में अपनाया था। उनका पूरा नाम भीमराव रामजी अंबेडकर था, जिसमें ‘रामजी’ उनके पिता का नाम है। ये दोनों तथ्य यह सिद्ध करते हैं कि बाबा साहब भारतीय संस्कृति के पोषक थे।
ब्रह्माकुमारी संस्थान की संचालिका बीके गीताबेन ने अपने वक्तव्य में कहा था कि वर्तमान समय में हमारी कथनी और करनी में अंतर आ गया है। मंदिर भी अब जाति के अनुसार अलग-अलग बन गए हैं, जिनमें प्रवेश को लेकर भेदभाव होता है। इससे ऊपर उठने की आवश्यकता है। इस अवसर पर सनातन संस्कृति जागरण संघ के राव विक्रमसिंह आर्य, डॉ. वचनाराम काबावत और व्याख्याता मांगीलाल ने भी अपने विचार रखे थे।
संगोष्ठी में बाबूलाल, नरेन्द्र आचार्य, डॉ. श्रवण कुमार मोदी, वालाराम मौर्य, सीबीईओ गजेन्द्र देवासी, राव सांवलसिंह लोक, राजेश सैन, शंकरलाल गर्ग, अशोक जीनगर, विक्रमसिंह जोधा, ललित राज पुरोहित, फगलूराम मेघवाल, ठाकराराम बोस, शंकरलाल गेहलोत, बीजाराम सोलंकी, खीमाराम कालमा, दूदाराम व एडवोकेट दिनेश हिगड़ा सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन लुम्भनाथजी सेवा समिति के सचिव हरचंदराम बोस ने किया था।
रिपोर्ट – परबतसिंह राव