श्री नामदेव छीपा समाज, कांकरोली ने अपनी 250 साल पुरानी परंपरा को निभाते हुए, इस वर्ष भी श्री चारभुजा नाथ जी की भव्य सवारी का आयोजन किया। यह परंपरा छीपा समाज के गौरवशाली इतिहास और उनकी गहरी आस्था का प्रतीक है, जिसका निर्वहन पीढ़ियों से होता आ रहा है। यह आयोजन केवल एक धार्मिक शोभायात्रा नहीं, बल्कि समाज के कलात्मक और आध्यात्मिक मूल्यों का भी प्रदर्शन है।
परंपरा का इतिहास
छीपा समाज मुख्य रूप से कपड़ा रंगाई और छपाई के अपने पारंपरिक व्यवसाय के लिए जाना जाता है। राजस्थान, खासकर आकोला में छीपा समाज की छपाई कला विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह कला पीढ़ियों से समाज का हिस्सा रही है और इस परंपरा का संबंध न केवल व्यापार से, बल्कि धार्मिक आस्था से भी जुड़ा हुआ है।
शिल्प और आस्था
समाज के पारंपरिक शिल्प और धार्मिक आस्था का यह संगम ही इस परंपरा को विशेष बनाता है। शोभायात्रा में प्रदर्शित झाँकियाँ और अन्य कलात्मक सजावट समाज की कलात्मक विरासत का ही एक हिस्सा हैं।
पीढ़ियों का योगदान
इस परंपरा को बनाए रखने में समाज के बुजुर्गों और युवाओं दोनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। शोभायात्रा में सभी आयु वर्ग के लोगों की भागीदारी यह दर्शाती है कि यह परंपरा आज भी समाज के हर सदस्य के हृदय में जीवित है।
भव्य शोभायात्रा और सामाजिक संदेश
2 अक्टूबर 2025 को रावण दहन के पावन अवसर पर आयोजित इस शोभायात्रा में समाज के सदस्यों ने एकजुटता का परिचय दिया।
नेतृत्व
समाज के पदाधिकारी, मंत्री ओम प्रकाश पीलिया और अध्यक्ष कन्हैयालाल बाकलीवाल, के नेतृत्व में शोभायात्रा सफलतापूर्वक निकाली गई।
सामूहिक भागीदारी
सुरेश पीलिया, रमेश पीलिया, पवन, चंद्र प्रकाश गोठरवाल, रतन गोठरवाल, गोपाल , प्रकाश मनीष जड़िया, आशीष झाडिया, विक्रम जड़िया, शंकर बाकलीवाल, नंद लाल बाकलीवाल, प्रकाश जड़िया, नवीन तलाइच, दीपक जड़िया, सुरेश गोटरवाल, धीरज धनोपिया, सत्य प्रकाश सोपरा, कुणाल, शंभू, करण और दुष्यंत गंगवाल, धीरज सरावगी और रतन लाल धनोपिया जैसे कई सदस्यों ने इस आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। यह शोभायात्रा एक बार फिर साबित करती है कि छीपा समाज अपनी समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने के लिए प्रतिबद्ध है, और यही एकजुटता समाज को निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर करती है।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत
