राजस्थान के पर्यटन की राजधानी उदयपुर का एक अपना ही रुतबा है। झीलों के इस शहर में जैसे पर्यटक हमेशा आते और जाते रहते हैं। ठीक उसी प्रकार से यह शहर किसी नेता या पार्टी को भी सिर पर पर नहीं बैठाता और समय-समय पर सत्ता में फेरबदल करता रहता है। यही वजह है कि हर चुनाव में जीतने वाले प्रत्याशी की या तो पार्टी बदल जाती है या वह खुद बदल जाता है। 2014 के चुनावों के बाद से इस सीट पर भाजपा के अर्जुन लाल मीणा लगातार काबिज हैं। लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर इस महासंग्राम में मन्नालाल रावत को अपना सारथी बनाया है।
रावत पूर्व परिवहन एडिशनल कमिश्नर रहें हैं। वहीं कांग्रेस ने भी 2009 में यहां से पार्टी को जीत दिलाने वाले तथा 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे रघुवीर सिंह मीना का टिकट दिया है। उनकी जगह पर कांग्रेस ने ताराचंद मीना को अपना उम्मीदवार बनाया है। ताराचंद मीना पूर्व आईएएस और उदयपुर के कलेक्टर रहे हैं। यानी उदयपुर लोकसभा सीट पर पहली बार अफसर बनाम अफसर का मुकाबला होने वाला है। बात यदि इस लोकसभा सीट के इतिहास की करें तो उदयपुर लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1952 में हुआ था। उस समय कांग्रेस के बलवंत सिंह मेहता यहां से सांसद चुने गए थे। फिर 1957 के चुनाव हुआ तो कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशी बदलकर दीनबंधु परमार को मैदान में उतारा और विजयी हुए।
इसके बाद 1962 और 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर प्रत्याशी बदला। इन दोनों चुनावों में कांग्रेस के धुलेश्वर मीणा चुने गए थे। 1971 के चुनाव में पहली बार भारतीय जनसंघ ने यहां से खाता खोला और लालजी भाई मीणा यहां से सांसद चुने गए। फिर 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर भानु कुमार शास्त्री और 1980 के चुनाव में कांग्रेस के मोहनलाल सुखड़िया यहां से चुने गए थे। 1984 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के इंदुबाला सुखाड़िया और 1989 के चुनाव में भाजपा के गुलाब चंद कटारिया को संसद जाने का मौका मिला।
हालांकि 1991 में कांग्रेस के गिरिजा व्यास को उदयपुर से सांसद चुना गया और यहां की जनता ने उन्हें दोबारा 1996 में भी संसद भेजा। 1998 में इस सीट से बीजेपी के शांतिलाल चपलोत और 1999 में कांग्रेस के गिरिजा व्यास ने विजयश्री हासिल की। 2004 में बीजेपी ने एक बार फिर यहां से जीत दर्ज की और किरण महेश्वरी सांसद बनी, लेकिन 2009 में कांग्रेस के रघुवीर मीणा यहां से जीते। 2014 से इस सीट पर भाजपा के अर्जुन लाल मीणा काबिज हैं।
10 बार कांग्रेस तो 5 बार रहा भाजपा का कब्जा
उदयपुर लोकसभा सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। कांग्रेस ने कुल 10 बार चुनाव जीता है, जबकि भारतीय जनता पार्टी पांच बार उदयपुर सीट जीतने में सफल रही है। एक बार स्वतंत्र पार्टी को जीत मिली। एक बार जनता पार्टी और एक बार बीएलडी के प्रत्याशी ने उदयपुर सीट पर जीत हासिल की। अब तक सबसे ज्यादा वोट (वोट प्रतिशत) भारतीय लोकदल के प्रत्याशी को 1977 में मिले थे। तब बीएलडी प्रत्याशी भानु कुमार शास्त्री को 3,67,833 वोट में से 240,181(65.3%) वोट मिले थे, जो अब तक किसी भी उम्मीदवार को मिला सर्वाधिक वोट है।
वर्ष 1977 के पहले 1971 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार को सबसे ज्यादा 137968(48.6%) वोट मिले थे। वैसे संख्या के हिसाब से सर्वाधिक वोट 2019 में भाजपा के अर्जुन लाल मीणा 8,71,548(59.9%) मिले थे, जो कुल वोटिंग का 60% ही था। जीतने वाले उम्मीदवारों में से सबसे कम वोट 1957 में कांग्रेस के माणिक्य लाल वर्मा को मिले थे। तब वो 1,52,462(33%) वोट पाकर ही जीत गए थे।
भाजपा ने मन्नालाल रावत पर खेला दांव
भाजपा ने उदयपुर से वर्तमान सांसद अर्जुन लाल मीणा के स्थान पर पूर्व परिवहन अधिकारी मन्नालाल रावत को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है। उदयपुर से प्रत्याशी मन्ना लाल रावत वर्तमान में परिवहन विभाग के जॉइंट कमिश्नर हैं। लंबे समय तक परिवहन अधिकारी के पद पर काबिज रहे। अब तक प्रशासनिक अफसर इस्तीफा देकर टिकट की मांग करते है। लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी वर्तमान अधिकारी को टिकट मिला है। अब मन्नाराम रावत फिलहाल परिवहन विभाग के जॉइंट कमिश्नर हैं। मन्ना लाल रावत प्रतापगढ़ जिले के चिकलाड़ा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता गौतम लाल रावत सरपंच, भाजपा मंडल पदाधिकारी रहे हैं। गांव में ही स्कूलिंग के बाद उदयपुर शहर से ही उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। यहीं से उन्होंने आरएएस की परीक्षा दी। उदयपुर में डीटीओ, आरटीओ के पद पर रहे।
आरएसएस के वनवासी कल्याण परिषद के सक्रिय सदस्य रावत आदिवासी क्षेत्रों में ‘चिंतन’ शिविरों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उन्होंने मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से आदिवासी मुद्दों पर पीएचडी की। रावत ने सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार पर बड़े पैमाने पर काम किया है और राज्य के आदिवासी जिलों में ईसाई मिशनरियों के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी अभियान का नेतृत्व किया है। सन् 1998 में परिवहन विभाग में अधिकारी बने। वे उदयपुर, राजसमंद सहित कई जिलों में परिवहन अधिकारी रहे। इसके बाद क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी के रूप में सेवा दी। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हैं और संघ के जुड़े कार्यक्रम में भी सक्रिय रूप से नजर आते रहे है। इस कार्यक्रमों में बौद्धिक भाषण भी देते सुनाई दिए हैं। कई मौकों पर मन्नालाल रावत आदिवासी क्षेत्र में भारत आदिवासी पार्टी और भारतीय ट्राइबल पार्टी से सोशल मीडिया पर शाब्दिक जंग करते हुए भी दिखे गए। माना जा रहा है कि संघ से जुड़े होने के कारण उन्हें यह टिकट मिला।
उदयपुर के कलेक्टर रहे मीना अब सांसद बनने की तैयारी में
कांग्रेस उम्मीदवार ताराचंद मीना एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं। वह राज्य सिविल सेवा से पदोन्नत 2011 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। मीना ने रिटायरमेंट से पहले ही दो महीने पहले वीआरएस ले लिया था। मीना मूल रूप से पाली जिले के मारवाड़ जंक्शन के रहने वाले हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मारवाड़ जंक्शन में हुई और उसके बाद की अधिकांश शिक्षा अजमेर में हुई। उन्होंने हिन्दी साहित्य, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की है। ताराचंद मीना जी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों में गिने जाते हैं और उन्हीं की वजह से उन्हें लोकसभा का टिकट दिया गया है।
आपको बता दें कि प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद वह 1996 में बिलाड़ा जोधपुर में अतिरिक्त कलेक्टर बने। इसके बाद बीकानेर, जालौर, सिरोही, भरतपुर, कोटा, झालावाड़, जोधपुर, जयपुर, सवाई माधोपुर में कई पदों पर रहने के बाद वह बने। अप्रैल 2021 में चित्तौड़गढ़ के कलेक्टर। इसके बाद जनवरी 2022 में उन्हें उदयपुर का कलेक्टर बनाया गया। डेढ़ साल तक कलेक्टर रहने के बाद उन्होंने टीएडी कमिश्नर सहित अन्य पदों की जिम्मेदारी भी संभाली। इस दौरान सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने उन्हें दो माह पहले एपीओ कर दिया था। इसके बाद उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन किया, जिसे सरकार ने मंजूरी दे दी। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस ने भी दन पर विश्वास जताते हुए उदयपुर से अपना उम्मीदवार बनाया है।