Bhilwara। केंद्र और राज्य सरकार बेसहारा, गरीब निशक्तजन तथा नेत्रहीनो के लिए कई लाभकारी योजनाएं चला रखी है लेकिन इन योजनाओं का लाभ आजादी के बाद से आज तक धरातल पर नजर नहीं आती या इसे यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी की वास्तविक हकदारों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है और सरकार के दावे खोखले साबित हो रहे है। ऐसा ही एक मामला कोटडी उपखंड में सामने आया जहां एक नेत्रहीन अकेली बेसहारा महिला को सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला और वह आज भी दयनीय हालत में एक तिरपाल की कच्ची झोपड़ी बनाकर निवास कर अपना जैसे तैसे जीवन बसर कर रही है।
घटना कोटडी उपखंड के कांटी पंचायत के देवखेडा गांव की है। यहां एक बेसहारा नेत्रहीन 50 साल की महिला माना भील गांव में तिरपाल की झोपड़ी बनाकर निवास करती है। इस महिला के परिजनों में कोई भी नहीं है माता-पिता ने बचपन में इसकी शादी कर दी थी, लेकिन नेत्रहीन होने से पति ने छोड़ दिया था। उसके बाद माता-पिता का भी निधन हो गया। तब से ही वह अकेली गांव में एक तिरपाल की झोपड़ी बनाकर निवास करती है। जब इसकी जानकारी कोटडी पंचायत समिति के प्रधान करण सिंह और कांटी के सरपंच रतन लाल बलाई को इसकी जानकारी मिली तो वह महिला से मिलने उसके यहां गए और उसकी दयनीय हालत देखकर चकित गए।
प्रधान करण सिंह ने तत्काल चद्दर बस सीमेंट कांटी सरपंच रतनलाल बलाई ने 7000 नकट उक्त वृद्ध महिला को दिए। इसके साथ ही प्रधान करण सिंह ने विकास अधिकारी और अन्य कार्मिकों को गांव में भेजने के साथ ही बेसहारा नेत्रहीन और निशक्तजन गरीब परिवारों को मिलने वाली सभी योजनाओं का लाभ उक्त महिला माना भील को उपलब्ध हो इसके लिए कार्रवाई करेंगे। मौके पर पहुंचे युवा पत्रकार दिनेश पारीक का भी मन पसीजा और उन्होंने भी अपनी ओर से कुछ आर्थिक सहायता उक्त महिला को उपलब्ध कराई। इसके साथ गांव के कुछ युवा भी अब सहायता के लिए आगे आए है।
प्रधान करण सिंह और सरपंच की इस मानवीय दृष्टिकोण को लेकर सभी जगह सराहना हो रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार जब ऐसे परिवारों और और महिलाओं के लिए योजनाएं चला रखी है तो फिर इन योजनाओं का लाभ ग्रामीण दुरुस्त तक निवास करने वाले ऐसे परिवारों व लोगों और महिलाओं को आखिर क्यों नहीं मिल रहा है ? इस घटना ने सरकार और सरकार के कार्मिकों की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं तथा कार्मिकों को भी कटघरे में ला दिया है।
रिपोर्ट – पंकज पोरवाल