रत्नागिरी -सिंधुदुर्ग निर्वाचन क्षेत्र : शिवाजी के गढ़ में किसकी होगी जय

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मुंबई। महाराष्ट्र की चर्चित सीटों में से एक रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग निर्वाचन क्षेत्र 2009 में अस्तित्व में आया। यहां कांग्रेस के नीलेश राणे पहले सांसद बने। इसके बाद दूसरे चुनाव 2014 और तीसरे चुनाव 2019 में शिवसेना के विनायक राऊत ने जीत दर्ज की। 2009 से पहले यह रत्नागिरी लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। 2008 में हुए परिसीमन के बाद इसका नाम रत्नागिरी सिंधुदुर्ग हो गया। सिंधुदुर्ग को महाराजा शिवाजी ने 1664 में बनवाया था। करीब 50 एकड़ में बने इस किले में 42 बुर्ज हैं। किले की दीवारें 9।2 मीटर (30 फीट से ज्यादा) ऊंची जबकि चार किलोमीटर लंबी है।

सिंधुदुर्ग को महाराष्ट्र के सबसे ज्यादा किलों वाले शहर के रूप में जाना जाता है। यहां 37 किले हैं जो समुद्र, जमीन और पहाड़ी की चोटी पर बने हुए हैं। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र का ये इलाका समुद्र किनारे बसा है। शिवाजी महाराज के गौरवशाली इतिहास के साथ ही पौराणिक महत्व भी है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने वनवास का 13वां साल इसी क्षेत्र में बिताया था।

इसके साथ ही रत्नागिरी का स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान रहा है। वीर सावरकर और म्यांमार के अंतिम राजा थिबू को कैद कर यहीं रखा गया था। इसके साथ ही यह क्षेत्र महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की जन्मस्थली भी है। महायुति में प्रारंभिक खींचतान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को यहाँ से उम्मीदवार बनाया गया है। राणे का जहां सिंधुदुर्ग में प्रभाव है, तो राऊत का रत्नागिरि में।

हालांकि महायुति के प्रदेश सरकार में मंत्री उदय सामंत की रत्नागिरि में अच्छी खासी पैठ है। यही कारण है कि इस सीट से उदय सामंत के भाई किरण सामंत चुनाव लड़ना चाहते थे। दूसरी ओर शिवसेना उद्धव गुट ने रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग से विनायक राउत को टिकट दिया है। वह यहां के मौजूदा सांसद भी हैं। हालांकि विगत दोनों लोकसभा चुनावों में विनायक राऊत भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से सांसद बने हैं। जबकि इस बार वे भाजपा के खिलाफ हैं।

ऐसे में इस सीट का परिणाम काफी हद तक उदय और किरण सावंत के समर्थकों पर निर्भर करेगा। यदि वे गठबंधन धर्म निभाते हुए नारायण राणे के पक्ष में मतदान करते हैं, तो उनकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी। वहीं यदि विनायक राऊत को इन मतदाताओं का विश्वास मिल गया तो उनको हैट्रिक लगाने से रोकने में राणे को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। अब देखना यह है कि शिवाजी के इस गढ़ में किसको विजयश्री मिलती है।

परिसीमन से पहले चार बार सांसद रहे गीते

रत्नागिरी सिंधुदुर्ग 2009 से पहले रत्नागिरी लोकसभा क्षेत्र था। इस सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ, जिसमें कांग्रेस पार्टी के जगन्नाथ राव भोसले ने जीत दर्ज की थी। 1957 में यहां जनसंघ के प्रेमजीभाई अशर जीते। इसके बाद 1962 और 1967 में कांग्रेस के शारदा मुखर्जी ने जीत दर्ज की जबकि 1971 में शांताराम पेजे ने, 1977 और 1980 में रत्नागिरी में जनता पार्टी के बापूसाहेब परुलेकर जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे। 1984 में कांग्रेस के हुसेन दलवई, 1989 और 1991 में कांग्रेस के ही गोविंदराव निकम यहां से जीत। इसके बाद 1996, 1998, 1999 और 2004 में लगातार शिवसेना के अनंत गीते जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे।

नारायण राणे के लिए नाक का सवाल

रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग निर्वाचन क्षेत्र से महायुति के उम्मीदवार केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के लिए यह सीट सम्मान का प्रतीक बन गई है। दरअसल इस सीट से उनके पुत्र नीलेश राणे 2009 में सांसद रह चुके हैं। हालांकि मोदी लहर में शिवसेना के विनायक राऊत के समक्ष उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए शिंदे गुट की जोरदार दावेदारी को खारिज करते हुए राणे को उम्मीदवार बनाया है।

इस सीट पर मुकाबला ठाकरे बनाम राणे के बीच है, क्योंकि ठाकरे और राणे धुर विरोधी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व विपक्ष के नेता राणे को 2005 में उद्धव के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाने के लिए बालासाहेब ने निष्कासित कर दिया था। राणे बाद में मंत्री बनने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गए।

हालांकि, मुख्यमंत्री या महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बनने का उनका सपना कभी पूरा नहीं हुआ और उन्होंने 2017 में कांग्रेस छोड़ महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष की स्थापना की, जिसका बाद में भाजपा में विलय कर दिया और राज्यसभा सदस्य और कैबिनेट मंत्री बने। ऐसे में अपने मान-सम्मान और रुतबे को कायम रखने के लिए राणे को यह सीट जीतना बहुत जरूरी हो गया है।

राऊत के पास हैट्रिक का मौका

महाविकास आघाड़ी की ओर से रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता तथा वर्तमान सांसद विनायक राऊत एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं। राऊत की गिनती शिवसेना के अनुभवी एवं ठाकरे परिवार के करीबी नेताओं में होती है। केंद्र सरकार में उनका नाम शिवसेना कोटे से मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने को लेकर भी चल रहा था।

2019 के लोकसभा चुनाव में विनायक राऊत ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष के उम्मीदवार निलेश नारायण राणे को हराकर संसद पहुंचे हैं। तब एनडीए का हिस्सा रही शिवसेना के विनायक राऊत ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष के नीलेश नारायण राणे को 1,78,322 वोटों से हराया था। विनायक राऊत को 458,022 वोट जबकि निलेश राणे को 2,79,700 वोट मिले थे।

कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नवीनचंद्र बांदिवडेकर 63299 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष को निलेश राणे के पिता नारायण ने बनाया था। इससे पहले 2014 में विनायक राऊत ने कांग्रेस पार्टी की टिकट पर उतरे निलेश राणे को 1,50,051 वोटों से शिकस्त दी थी। तब बसपा के आयरे राजेंद्र लहू 13,088 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। दो बार राणे पुत्र को हराने राऊत के पास इस बार राणे को हराकर हैट्रिक लगाने का मौका है।

अजीत कुमार राय/जागरूक टाइम्स

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