राजसमंद लोकसभा: राजघराने के सम्मोहन पर भाजपा को भरोसा, 4 जिलों में फैली है राजसमंद की सीट

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राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में राजसमंद सीट भौगोलिक दृष्टि से बड़ी ही महत्वपूर्ण सीट है। यह एक ऐसी सीट है, जो 4 जिलों की आठ विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई है। इस सीट के अंतर्गत आने वालीं भीम, कुंभलगढ़, राजसमंद और नाथद्वारा विधानसभा सीट राजसमंद जिले से, मेर्टा और डेगाना, नागौर जिले से, ब्यावर विधानसभा सीट अजमेर जिले से तथा जैतारण सीट पाली जिले से आती है। हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार राजसमंद एक ऐसी सीट है, जहां राजघराने का प्रभाव सबसे ज्यादा नजर आता है।

वहीं भाजपा को भी राजघराने के सम्मोहन पर पूरा भरोसा है। यही कारण है कि इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व हमेशा राजघरानों से ही प्रत्याशी उतारने के लिए प्रयासरत रहता है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2019 में जयपुर राजघराने की दीया कुमारी को यहां से टिकट दिया था। उनके विधानसभा चुनाव जीतकर उपमुख्यमंत्री बनने के बाद इस बार पार्टी ने मेवाड़ के पूर्व राजघराने पर विश्वास जताते हुए महिमा विशेश्वर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। साल 2008 के परिसीमन के दौरान अस्तित्व में आई राजस्थान की राजसमंद लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास को देखें तो यहां पहला चुनाव साल 2009 में हुआ था। उस समय कांग्रेस के गोपाल सिंह शेखावत सांसद चुने गए थे।

इसके बाद 2014 में यह सीट भाजपा की झोली में चली गई और पहले हरिओम सिंह राठौड़ और फिर 2019 में दीया कुमारी यहां से सांसद चुनी गईं। अब यहां चौथी बार चुनाव होने जा रहा है। इसमें एक तरफ बीजेपी हैट्रिक लगाने की तैयारी में है तो कांग्रेस भी भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। कांग्रेस ने यहां से पूर्व आरपीएस अधिकारी दामोदर गुर्जर को टिकट दिया है। राजसमंद लोकसभा क्षेत्र में यूं तो स्थानीय मुद्दे कई हैं लेकिन यहां पर मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार की बहु का मान रखने की बात कुछ ज्यादा हावी हैं। राजसमंद लोकसभा क्षेत्र में चुनावी लड़ाई पूर्व राजपरिवार और किसानों के बीच मुकाबले का रूप भी लेती जा रही है।

सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा

इस लोकसभा क्षेत्र में राजसमंद जिले की चार विधानसभा सीटें नाथद्वारा, राजसमंद, कुंभलगढ और भीम हैं। वहीं बाकी चार विधानसभा सीटें पाली की जैतारन, नागौर की मेरटा, डेगाना और अजमेर जिले की ब्यावर हैं। कांग्रेस के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह यह भी है कि यहां की सभी 8 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।

मेवाड़ राजघराने से है महिमा विशेश्वर सिंह

राजसमंद सीट पर बीजेपी ने महिमा विशेश्वर सिंह को टिकट दिया है। महिमा विशेश्वर सिंह नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ की पत्नी हैं। महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ नाथद्वारा विधानसभा सीट से साल 2023 में निर्वाचित हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता सीपी जोशी को हराया था। पति विश्वराज सिंह मेवाड़ को जीताने के लिए महिमा ने काफी मेहनत की थी। महिमा सिंह मेवाड़ का जन्म 22 जुलाई 1972 को जगदीश्वरी प्रसाद सिंह के घर में हुआ। उनकी पढ़ाई उत्तर प्रदेश में वाराणसी में हुई है।

वहीं, मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर स्थित सिंधिया कन्या विद्यालय से पढ़ाई की। महिमा ने कॉलेज शिक्षा लेडी श्रीराम कॉलेज दिल्ली से पूरी की। इन्होंने मनोविज्ञान में स्नातक डिग्री हासिल की। ऐसा कहा जाता है कि महिमा विशेश्वर सिंह का नाम पीएम मोदी के पसंद पर मुहर लगाया गया है। महिमा का यों तो पश्चिम बंगाल के पंचकोट पूर्व राजघराने से संबंध है, लेकिन बचपन से ही उनका नाता वाराणसी से ही रहा है। बचपन में वे अपनी माता के साथ वाराणसी में रहीं। महिमा के मामा मध्य प्रदेश की सतना सीट से सांसद रह चुके हैं। ममेरे भाई वर्तमान में एमपी की एक सीट से विधायक हैं और चाची टिहरी-गढ़वाल से सांसद हैं।

राजसमंद से टिकट दे पार्टी ने गुर्जर को भी चौंकाया

दामोदर गुर्जर आरपीएस अधिकारी रह चुके हैं। वे मूलरूप से सवाई माधोपुर के निवासी हैं। वे वर्तमान में जयपुर में देव मेडिकल कॉलेज एंड एजुकेशन ग्रुप के अध्यक्ष हैं। वे कांग्रेस के टिकट पर राजसमंद सीट से चुनाव लड़ने वाले हैं। यह निर्णय काफी चौंकाने वाला था, क्योंकि कांग्रेस ने पहले उन्हें भीलवाड़ा से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन सुदर्शन रावत ने टिकट लौटा दिया। इसके बाद पार्टी ने दामोदर गुर्जर को राजसमंद से चुनावी मैदान में उतारने का ऐलान किया। जबकि गुर्जर ने भी टोंक सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से भी दावेदारी पेश की थी।

उन्होंने प्रदेश चुनाव समिति के सदस्यों के सामने अपना पक्ष रखा था, लेकिन पार्टी ने वहां से कांग्रेस ने हरीश मीणा को प्रत्याशी बनाया है। गुर्जर जयपुर में देव मेडिकल कॉलेज एंड एज्युकेशन ग्रुप के चेयरमैन हैं, राजस्थान पुलिस में थाना प्रभारी के रूप में भी गुर्जर सेवा दे चुके है। कांग्रेस प्रत्याशी दामोदर चार भाइयों में तीसरे स्थान पर है। इनके दो भाइयों में से एक भाई श्याम लाल गुर्जर भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए है। इनके अनुज रामलाल गुर्जर राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है, वर्ष 2006-07 में मांडल उपखंड अधिकारी रहे है।

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