उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा : फिर खिलेगा कमल या लहराएगा पंजा

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मुंबई। उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के 7 संसदीय क्षेत्रों में से एक है। 2002 में गठित भारत के परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद 2008 में यह लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। उत्तर पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में बुराड़ी, तिमारपुर, सीमापुरी (एससी), रोहतास नगर, सीलमपुर, घोंडा, बाबरपुर, गोकलपुर (एससी), मुस्तफाबाद और करावल नगर सहित 10 क्षेत्र शामिल हैं। 10 में से केवल तीन भाजपा (रोहतास नगर, घोंडा, करावल नगर) के पास हैं और बाकी सात सीटों से आम आदमी पार्टी के विधायक हैं।

2009 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के बीएल शर्मा को हराया 3 लाख से ज्यादा मतों से हराया था। इसके बाद 2014 के चुनाव में भाजपा ने यहां से भोजपुरी के सुपरस्टार मनोज तिवारी को उतारा। मनोज तिवारी ने पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए आम आदमी पार्टी के आनंद कुमार को शिकस्त दी। मनोज तिवारी को 1.5 लाख मतों से जीत मिली थी। इसके बाद 2019 के चुनाव में भी मनोज तिवारी ने जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित को शिकस्त दी।

मनोज तिवारी को 7,85,262 वोट मिले थे, जबकि शीला दीक्षित के खाते में 4,21,293 वोट आए थे। तीसरे नंबर पर आप के दिलीप पांडे थे। उनको 1,90,586 वोट मिले थे। दिल्ली में रहने वाले पूर्वी यूपी और बिहार के प्रवासी कार्यकर्ता अब इस निर्वाचन क्षेत्र में हर चुनाव का नतीजा तय करते हैं। यही कारण है कि भाजपा ने एक बार फिर से दिल्ली के एकमात्र सांसद मनोज तिवारी पर भरोसा जताया है, वहीं कांग्रेस ने उन्हें चुनौती देने के लिए पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार को चुना है। अब देखना यह है कि इस सीट पर मनोज तिवारी कमल खिलाते हैं या कन्हैया कुमार कांग्रेस का पंजा लहरा पाते हैं।

सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता

यह लोकसभा दिल्ली का सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं वाला क्षेत्र है। यहां के 20.7% वोटर मुसलमान हैं और इलाके के मतदाता सांप्रदायिक आधार पर बंटे हुए महसूस किए जा सकते हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली ही वह इलाका है, जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगे का केंद्र था, जिसमें 53 जानें चली गई थीं और 583 लोग जख्मी हुए थे। दंगे का दाग आज भी इस लोकसभा क्षेत्र में देखा जा सकता है और राजनीतिक पार्टियां भी उसपर अपने-अपने हिसाब से रोटियां सेंक लेने की उम्मीद में हैं।

हैट्रिक की तैयारी में मनोज तिवारी

उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा ने अपने दो बार के सांसद मनोज तिवारी पर फिर से भरोसा जताया है। दिल्ली के सात सांसदों में से मनोज तिवारी इकलौते सांसद हैं, जिन्हें पार्टी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने हेतु एक बार फिर से मौका दिया है। मनोज तिवारी न केवल भोजपुरी बल्कि पूर्वांचल एवं बिहार के प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं में से एक प्रमुख चेहरा हैं। मनोज तिवारी के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि एकबारगी देखने में पूरा भोजपुरिया जगत भाजपा के साथ नजर आता है। दो बार से सांसद होने एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष होने का अनुभव मनोज तिवारी के चुनाव प्रचार में भी देखने को मिला। उन्होंने पत्रकारों एवं मतदाताओं से खुलकर बात की और आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल की पिटाई वाले मामले से लेकर दिल्ली और देश से जुड़े हर मुद्दों को उठाने की कोशिश की है। वह पूरे अभियान के दौरान काफी आश्वस्त नजर आए हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर पूर्वी दिल्‍ली में मनोज तिवारी को 54 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस और आप को मिला कर 32 फीसदी वोट म‍िले थे। इस बार दोनों पार्ट‍ियां साथ लड़ रही हैं। तो सबसे बड़ी चुनौती वोट प्रतिशत में यह बड़ा अंतर पाटना ही होगा। मनोज तिवारी ने 2019 में कांग्रेस की शीला दीक्षित को 3,66,102 मतों से तो 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रो. अनंत कुमार को 1,44,084 मतों से पराजित किया था। इस बार वे अपनी रैलियों में 5 लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज करते हुए हैट्रिक लगाने का दावा कर रहे हैं।

करिश्मे की उम्मीद में कन्हैया कुमार

कांग्रेस ने सीपीआई से आए एवं जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को टिकट दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने उन्हें बिहार और पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाने के लिए टिकट दिया है। 37 वर्षीय कन्हैया कुमार अपना दूसरा लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने साल 2019 में बिहार के बेगूसराय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। लेकिन गिरिराज सिंह ने लगभग 4 लाख 20 हज़ार मतों से कन्हैया को हरा दिया। कन्हैया को क़रीब 2 लाख 68 हज़ार वोट ही मिले। हालांकि कांग्रेस को लगता है कि कन्हैया कुमार बिहार और पूर्वांचल के बहुसंख्यक मतदाताओं को लुभाने में कामयाब होंगे। यही नहीं वह अल्पसंख्यक समुदाय को भी रिझाने में सक्षम होंगे। साथ ही कन्हैया युवा और तेज तर्रार नेता भी हैं।

ऐसे में युवाओं को भी अपनी ओर करने में भी उन्हें कामयाबी मिलने की उम्मीद पार्टी कर रही है। कांग्रेस उम्मीदवार कन्हैया के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी प्रचार किया और राहुल गांधी ने भी वोट मांगा। लेकिन, जमीन पर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहां कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं का अभाव है। बुराड़ी में तो लगता ही नहीं कि चुनाव कांग्रेस लड़ रही है। यही नहीं आम आदमी पार्टी के कैडर भी तालमेल के साथ काम करते नहीं दिखे। इस क्षेत्र में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है, इसलिए वह पूरी तरह से अपनी सहयोगी के भरोसे ही नजर आ रही है। ऐसे में लगता है कि कन्हैया कुमार की जीत किसी करिश्मे के ही भरोसे है।

अजीत कुमार राय / जागरूक टाइम्स

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