नागौर लोकसभा क्षेत्र जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है। बेनीवाल और मिर्धा, दोनों जाट नेता कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं। नागौर में जाट मतदाता सर्वाधिक हैं। उसके बाद यहां मुस्लिम, राजपूत एससी और मूल ओबीसी के मतदाता भी अच्छी-खासी तादाद में हैं। नागौर निर्वाचन क्षेत्र में लाडनूं, जायल, डीडवाना, नागौर, खींवसर, मकराना, परबतसर और नवां कुल आठ विधानसभा सीटें आती हैं। नागौर लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था। उस समय स्वतंत्र उम्मीदवार जीडी गोस्वामी ने जीत दर्ज की थी।
इसके बाद 1957 में कांग्रेस के मथुरादास माथुर तो 62 के चुनाव में कांग्रेस के ही एसके डे सांसद चुने गए। 1967 में स्वतंत्र पार्टी के एनके सोमानी सांसद चुने गए। फिर 1971 से 80 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही और नाथू राम मिर्धा यहां से 1971, 1977 और 1980 में लोकसभा चुनाव जीतते रहे। 1984 में कांग्रेस के ही रामनिवास मिर्धा यहां से सांसद बने। इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर नाथूराम मिर्धा यहां से जीते, लेकिन 1991 में उन्होंने पार्टी बदल ली और 91 और 96 का चुनाव जीतते रहे। यहां पहली बार बीजेपी ने 1997 के चुनाव में खाता खोला और भानु प्रकाश मिर्धा को सांसद बनाया। लेकिन अगले साल यानी 98 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर राम रघुनाथ चौधरी जीत गए।
उन्होंने 99 के चुनाव में भी यह जीत कायम रखी। फिर 2004 में यहां से बीजेपी के टिकट पर भंवर सिंह डांगावास यहां से चुने गए। फिर 2009 में कांग्रेस के टिकट पर ज्योति मिर्धा तो 2014 में बीजेपी के सीआर चौधरी सांसद बने। फिर 2019 से यहां राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल सांसद बने। इस लोकसभा सीट में आने वाले चार विधानसभा सीटों पर इस समय कांग्रेस के विधायक हैं। वहीं एक सीट पर निर्दलीय तो एक सीट पर आरएलपी का कब्जा है। जबकि शेष दो सीटों पर बीजेपी काबिज है।
छह बार सांसद रहे नाथूराम मिर्धा
नागौर में अब तक एक उपचुनाव सहित 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में मिर्धा परिवार के नाथूराम मिर्धा साल 1971 और 1977 में कांग्रेस और साल 1980 में कांग्रेस यू उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद वह साल 1984 में अपने ही परिवार के सदस्य और कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे। इसके बाद नाथूराम मिर्धा ने साल 1989 में जनता दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और फिर जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने साल 1991 में फिर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर पांचवीं बार लोकसभा पहुंचे।
इसके बाद साल 1996 के चुनाव में वो एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप छठी बार सांसद बने। उनके निधन के बाद साल 1997 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र भानु प्रकाश मिर्धा ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यह मिर्धा परिवार की आठवीं जीत थी। इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में ज्योति मिर्धा चुनाव मैदान में उतरीं और वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल करके पहली बार लोकसभा पहुंची। मिर्धा परिवार की यह नौवीं जीत थी।
कांग्रेस की ज्योति करेंगी भाजपा का बेड़ा पार
लोकसभा चुनाव 2024 के प्रथम चरण में 19 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव में मिर्धा परिवार की सदस्य और नाथूराम मिर्धा की पोती और पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा फिर चुनाव लड़ रही हैं। यहां उनका मुकाबला पिछली लोकसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त देने वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल से है।
हालांकि ज्योति मिर्धा पिछला चुनाव कांग्रेस से लड़ा था और इस बार वह कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में आ गई और वह भाजपा प्रत्याशी के रूप में यहां से फिर चुनाव मैदान में हैं। हालांकि ज्योति मिर्धा बीते दो चुनाव हनुमान बेनीवाल की वजह से हार झेलनी पड़ी है। परन्तु बदले राजनीतिक हालात एवं प्रधानमंत्री मोदी की नाम के सहारे वे इस चुनाव में भाजपा का कमल खिलाने के लिए कृतसंकल्पित दिखाईं दे रहीं हैं।
भाजपा के बेनीवाल को अब कांग्रेस का साथ
नागौर सीट पर पिछली बार हुए चुनावों में आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था और इसके बाद चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे थे। लेकिन बाद में उन्होंने गठबंधन को तोड़ लिया और वह गत विधानसभा में खींवसर से फिर रालोपा उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए और अब उनका विपक्ष के इंडिया गठबंधन के साथ गठबंधन हुआ है।
कांग्रेस ने इसके लिए यह सीट हनुमान बेनीवाल के लिए छोड़ दी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के समर्थन से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को 1.81 लाख वोटों से पराजित किया था। वर्तमान में खींवसर से विधायक बेनीवाल लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे थे। उनका कहना था कि वे फिलहाल राज्य में रहकर किसानों की लड़ाई लड़ना चाहते थे।
दोनों पुराने प्रतिद्वंद्वी, एक-एक बार रहे नागौर सांसद
नागौर लोकसभा सीट से दोनों पुराने प्रतिद्वंदी के आमने-सामने होने से चुनावी मुकाबला बेहद रोचक हो गया है। चुनावी रैलियों के इतर भी दोनों प्रत्याशी एक दूसरे पर हमेशा हमलावर रहते हैं। ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल दोनों एक-एक बार नागौर से सांसद रह चुके हैं। दोनों की राजनीतिक अदावत किसी से छिपी नहीं है। इस बार ज्योति कमल का दामन थाम कर बीजेपी की टिकट पर चुनाव मैदान में है तो हनुमान बेनीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे। अब देखना यह है कि मतदाता किसके दावे और वादों पर यकीन करती है।