देशभर में सिकल सेल (Sickle Cell) रोग के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, और अकेले महाराष्ट्र से इस बीमारी के 15% से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। मुंबई स्थित सैफी अस्पताल के नवजात और बालरोग विशेषज्ञ डॉ. अतीक अहमद के अनुसार, इस बढ़ोतरी के पीछे कई जैविक और सामाजिक कारण हैं, विशेष रूप से कुछ समुदायों में प्रचलित रक्त संबंधी विवाह की परंपरा।
सिकल सेल रोग क्या है?
सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोल आकार में न होकर अर्धचंद्राकार (सिकल) आकार की हो जाती हैं। ऐसी कोशिकाएं रक्त वाहिनियों में आसानी से प्रवाहित नहीं हो पातीं, जिससे मस्तिष्क, फेफड़े, गुर्दे, आंखें और तिल्ली जैसे महत्वपूर्ण अंगों में रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है और अंग विकृति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
रक्त संबंधी विवाह और अनुवांशिकता
यह रोग विशेषकर आदिवासी समुदायों में अधिक देखने को मिलता है। डॉ. अहमद बताते हैं कि कुछ समाजों में सगोत्र विवाह अधिक होते हैं। ऐसी स्थिति में दोनों माता-पिता के सिकल सेल जीन के वाहक होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि दोनों अभिभावक वाहक हैं, तो उनके बच्चों में यह बीमारी पूर्ण रूप से (होमोजायगस रूप में) विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
मलेरिया से बचाव से उत्पन्न होने वाला जीन?
यह तथ्य आश्चर्यजनक है कि सिकल सेल जीन की उत्पत्ति मूलतः मलेरिया से रक्षा के लिए हुई थी, विशेष रूप से प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ। हालांकि जब यह जीन दोनों अभिभावकों से संपूर्ण रूप में संतान में आता है, तब यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है।
लक्षण और जटिलताएं
यह बीमारी सामान्यतः 6 महीने की उम्र के बाद दिखाई देती है, जब फीटल हीमोग्लोबिन का स्तर गिरने लगता है।
प्रारंभिक लक्षणों में –
• हाथ-पैरों में सूजन और दर्द (डैक्टिलाइटिस)
• त्वचा का पीला पड़ना
• वजन बढ़ने में रुकावट
• अत्यधिक रोना – शामिल हैं।
यह रोग निम्नलिखित गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है:
• मस्तिष्क: स्ट्रोक और मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बाधित होना
• फेफड़े: एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम
• गुर्दे: पैपिलरी नेक्रोसिस
• आंखें: रेटिनल आर्टरी में अवरोध
• प्लीहा: अचानक प्लीहा का बढ़ना और शॉक की स्थिति
उपचार और रोकथाम के उपाय
हायड्रॉक्सीयूरिया एक FDA-स्वीकृत दवा है, जो गर्भकालीन अवस्था में फीटल हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाती है। यह दवा सिकल सेल रोग से उत्पन्न तीव्र दर्द, बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता और अन्य जटिलताओं को कम करती है।
यदि किसी रोगी को HLA मेल खाने वाला भाई-बहन हो, तो कुछ चुनिंदा मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के ज़रिए इस बीमारी को स्थायी रूप से ठीक किया जा सकता है, खासकर यदि यह अंगों को नुकसान पहुँचाने से पहले किया जाए।
सिकल सेल रोगियों में तिल्ली ठीक से काम नहीं करती, इसलिए उन्हें प्न्युमोकोकस, मेनिंगोकोकस जैसे बैक्टीरिया से सुरक्षा के लिए टीकाकरण अत्यंत आवश्यक होता है।