दौसा शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। खासतौर पर राजेश पायलट ने तो इस जिले को कांग्रेस का अभेद्य किला बना दिया था। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव से यहां भाजपा का कब्जा है और इस बार भाजपा हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरी है। वहीं कांग्रेस पार्टी अपने गढ़ को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। इस लोकसभा सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था। उस समय कांग्रेस के राज बहादुर तो अगले चुनाव में कांग्रेस के ही जीडी सोमानी चुने गए। फिर 1962 में स्वतंत्र पार्टी के पृथ्वीराज और 67 के चुनाव में इसी पार्टी के आरसी गणपत सांसद चुने गए।
1968 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार इस सीट को कब्जाई और नवल किशोर शर्मा लगातार दो चुनाव जीते। 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के नाथू सिंह गुर्जर यहां से चुने गए थे, लेकिन 80 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा को विजयश्री मिली। 1984 में राजेश पायलट ने पहली बार यहां से पर्चा भरा और चुनाव जीत गए, लेकिन 89 के चुनाव में भाजपा के नाथू सिंह गुर्जर ने उन्हें पटखनी दे दी। इसके बाद 1991 में हुए चुनाव में यहां से कांग्रेस के राजेश पायलट फिर चुने गए। वह लगातार 91, 96, 98 और 99 के चुनाव जीते। इस तरह राजेश पायलट इस सीट से पांच बार सांसद रहे।
फिर 2000 में हुए उपचुनाव में रामा पायलट यहां से सांसद बनी और 2004 में सचिन पायलट ने यहां से नेतृत्व किया। चूंकि 2009 के चुनाव से पहले सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हो गए, वहीं यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। ऐसे में यह सीट स्वतंत्र उम्मीदवार किरोड़ी लाल मीणा ने जीत ली। परिसीमन के बाद दौसा लोकसभा क्षेत्र का गठन जयपुर जिले की दो, अलवर की एक और दौसा जिले की पांच विधानसभा सीटों को मिलाकर किया गया है। इनमें 5 विधायक भाजपा के ही है। वहीं बाकी तीन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।
मीणा और मीणा में महा मुकाबला
मरुधरा की ये लोकसभा सीट कई मायनों में अहम है, क्योंकि यहां लड़ाई सियासत से ज्यादा अहम की होती रही है। दौसा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में मीणा और गुर्जर वोटों का असर है। दोनों परस्पर विरोधी माने जाते हैं। माना जाता रहा है कि राजस्थान में गुर्जर समुदाय भाजपा के लिए और मीणा समुदाय कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता है। दौसा लोकसभा सीट से भाजपा ने जहां कन्हैयालाल मीणा को अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने दौसा विधायक मुरारीलाल मीणा को टिकट दिया है। दोनों प्रमुख दलों के ये प्रत्याशी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे दोनों राजनीति में नए हैं। क्योंकि दोनों ही नेता चार-चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं।
जब जब्त हो गई भाजपा-कांग्रेस की जमानत
दौसा लोकसभा सीट की सियासत बड़ी पहेली है. इस सीट को कांग्रेस और भाजपा भले ही अपना मजबूत गढ़ बता रही हैं, लेकिन परिसीमन के बाद पहली बार 2009 में हुए चुनाव में यहां के मतदाताओं ने न केवल यहाँ के प्रत्याशियों बल्कि पूरे देश को चौंका दिया था। उस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़े किरोड़ी लाल मीणा जीत गए थे। उससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह थी कि जम्मू-कश्मीर से चुनाव लड़ने आए एक अनजान व्यक्ति कमर रब्बानी चेची को भी करीब पौने तीन लाख वोट मिले थे।
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
लोकसभा चुनाव में दौसा लोकसभा सीट प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है। बीजेपी के बड़े नेता यहां दौर कर रहे हैं। बीते दिनों यहां यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लालसोट में भाजपा के कन्हैया लाल के पक्ष में एक जनसभा की थी। वहीं बुधवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल भी सिकराय में एक जनसभा करके कन्हैया लाल के पक्ष में वोट अपील करने पहुंचे थे। दो प्रांत प्रमुखों के बाद अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आज रोड शो किया।
उधर, कांग्रेस ने भी मुरारी लाल मीणा के पक्ष में चुनाव जीतने के लिए सचिन पायलट को यहां की जिम्मेदारी दी है। सचिन पायलट 2004 में 26 वर्ष की आयु में इस सीट से निर्वाचित होकर संसद के सबसे कम उम्र के सदस्य बने थे। अब देखना यह है कि सचिन पायलट अपनी इस सीट पर मुरारीलाल मीणा के पक्ष में माहौल बनाते हुए भाजपा और उसके शीर्ष नेताओं को कितनी चुनौती दे पाते हैं।