अब कपड़ों के ‘रिंकल्स अच्छे हैं’

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मुंबई। साल दर साल बदल जलवायु परिवर्तन का असर अब दुिनयाभर में तेजी से दिखाए देने लगा है। वातावरण के तापमान में लगातार बढ़ती गर्मी, बेमौसम बरसात और सर्दी का अनियमित सितम वैज्ञानिकों को तो डरा रहा है, परन्तु आमजन में जागरुकता का अभी भी अभाव दिखाई दे रहा है।

अब से पहले जहां प्लास्टिक और खासकर सिंगर यूज प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बताया गया है, तो एयरकंडीशनर एवं फ्रिज भी पर्यावरण के लिए मित्रवत नहीं हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने हाल में एक और चौंकाने वाला खुलासा किया है कि कपड़ों पर जब हम इस्त्री यानि प्रेस करते हैं तो इसका हमारे जलवायु पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ता है

दो कपड़े और 200 ग्राम कार्बन

यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक जोड़ी कपड़ों पर इस्त्री करने से 200 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसलिए बिना इस्त्री किए हुए कपड़े पहनकर, कोई भी 200 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोक सकता है। डा. कलाईसेल्वी बताया कि ‘रिंकल्स अच्छे हैं’ अभियान आगामी 15 मई तक स्वच्छता पखवाड़ा के हिस्से के रूप में शुरू किया है।

ये ‘रिंकल्स अच्छे हैं’

देश के वैज्ञानिकों ने ‘रिंकल्स अच्छे हैं’ टैग लान के साथ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक अनोखी मुहिम शुरू की है। ‘रिंकल्स अच्छे है’। इस टैगलाइन के साथ इस मुहिम को नई दिल्ली स्थित वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने अपने वैज्ञानिकों और अन्य कर्मचारियों को हर सोमवार बिना इस्त्री वाले कपड़े पहनकर कार्यालय आने का आदेश दिया है।

डब्ल्यूएएच सोमवार दिया गया नाम

‘रिंकल्स अच्छे है’ टैगलाइन के साथ इस मुहिम को डब्ल्यूएएच सोमवार नाम दिया है। विचार यह है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक प्रतीकात्मक लड़ाई में लोगों को हर सोमवार को काम पर बिना इस्त्री किए कपड़े पहनने को कहा जाए। सीएसआईआर की पहली महिला महानिदेशक डा. एन कलाईसेल्वी का कहना है कि डब्ल्यूएएच सोमवार एक बड़े ऊर्जा साक्षरता अभियान का हिस्सा है। सीएसआईआर ने सोमवार को बिना इस्त्री किए कपड़े पहनकर योगदान देने का फैसला किया है।

बिजली बचाने पर जोर

इतना ही नहीं ऊर्जा बचाने की अपनी बड़ी पहल के तहत देश भर की सभी प्रयोगशालाओं में बिजली की खपत को कम करने पर भी काम किया जा रहा है। इसमें कार्यस्थल पर बिजली शुल्क में 10 प्रतिशत की कमी का प्रारंभिक लक्ष्य है। रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 में कोरोना की वजह से लागू हुए लॉकडाउन की वजह से मार्च के महीने में कार्बन उत्सर्जन में 15 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।

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