Delhi NCR से Stray Dogs हटेंगे, मगर 10 लाख कुत्तों को कहाँ रखा जाएगा?

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Delhi NCR से Stray Dogs हटेंगे, मगर 10 लाख कुत्तों को कहाँ रखा जाएगा?

Delhi NCR में आवासीय इलाकों से सभी आवारा कुत्तों (Stray Dogs) को हटाकर शेल्टर होम्स में रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने बड़ी बहस छेड़ दी है। पशुप्रेमी इस फैसले को “अमानवीय” बता रहे हैं, जबकि कई लोग इसे बच्चों और बुजुर्गों पर बढ़ते कुत्तों के हमलों को रोकने के लिए ज़रूरी कदम मान रहे हैं। लेकिन सबसे अहम सवाल है—क्या यह आदेश वाकई लागू हो पाएगा?

लाखों कुत्तों को शेल्टर में रखने की चुनौती

दिल्ली में अंतिम बार 2009 में हुए डॉग सर्वे के अनुसार यहाँ करीब 5.6 लाख आवारा कुत्ते थे। अब अनुमान है कि यह संख्या 10 लाख के आसपास पहुँच चुकी है। यदि हर शेल्टर में 500 कुत्ते रखे जाएँ, तो 2,000 शेल्टर की आवश्यकता होगी, जबकि वर्तमान में नगर निगम के पास केवल 20 एनिमल कंट्रोल सेंटर हैं। ये भी मुख्यतः नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को अस्थायी रूप से रखने के लिए बनाए गए हैं, न कि स्थायी निवास के लिए।

जगह, बजट और संसाधनों की कमी

सुप्रीम कोर्ट ने आठ हफ्ते में प्रगति रिपोर्ट माँगी है, लेकिन शेल्टर निर्माण के लिए न तो पर्याप्त जगह आसानी से मिल पाएगी, न ही फंड। एमसीडी का कहना है कि ज़मीन आवंटन और निर्माण में समय लगेगा। वर्तमान में प्रत्येक ज़ोन में केवल 2-3 डॉग कैचिंग वैन हैं, जबकि प्रशिक्षित स्टाफ की भी भारी कमी है।

भोजन और देखभाल का खर्च

लाखों कुत्तों को रोज़ाना खिलाने, चिकित्सा सुविधा देने और निगरानी के लिए करोड़ों रुपये का वार्षिक बजट चाहिए। इसके साथ ही एंबुलेंस, पशु चिकित्सक, सीसीटीवी, और स्टाफ का वेतन भी खर्च को और बढ़ा देगा।

कुत्तों के हमले और रेबीज़ के आंकड़े

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अब तक 26,000 से अधिक डॉग बाइट के मामले सामने आ चुके हैं और 49 लोग रेबीज़ से प्रभावित हुए हैं। जनवरी से जून तक 65,000 कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया गया है। कोर्ट का कहना है कि यह फैसला पूरी तरह जनहित में है और सड़कों को आवारा कुत्तों से “पूरी तरह मुक्त” करना ज़रूरी है।

पशु अधिकार समूहों का विरोध

पशु अधिकार संगठनों का तर्क है कि लाखों कुत्तों को जबरन हटाना न सिर्फ क्रूर है, बल्कि व्यावहारिक रूप से असंभव भी। उनका कहना है कि शेल्टर निर्माण की लागत और समय के कारण यह योजना सफल नहीं होगी, और विस्थापित कुत्ते फिर अपने पुराने इलाकों में लौट आते हैं। इन संगठनों के अनुसार, समाधान केवल व्यापक और निरंतर नसबंदी अभियान ही है, जिससे कुत्तों की संख्या और बीमारियों पर काबू पाया जा सके।

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