
भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला (Kalpana Chawla) की जयंती पर सोमवार को देशभर में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उनके अदम्य साहस और उपलब्धियों को याद करते हुए कहा, “एक बेटी जिसने सितारों से आगे सपने देखने का साहस किया, उनकी प्रेरणादायक यात्रा आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रोत्साहित करती है।”
हरियाणा से अंतरिक्ष तक का सफर
हरियाणा के करनाल में 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना चावला ने भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया और फिर अमेरिका जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। टेक्सास विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री (1984) और कोलोराडो विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट (1988) करने के बाद, उन्होंने 1994 में नासा में प्रवेश किया।
अंतरिक्ष में ऐतिहासिक उड़ानें
कल्पना चावला ने 1997 में पहली बार अंतरिक्ष यात्रा की, जब वह STS-87 कोलंबिया मिशन में मिशन स्पेशलिस्ट और रोबोटिक आर्म ऑपरेटर बनीं। इसके बाद 2003 में उन्होंने STS-107 कोलंबिया मिशन में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने कुल 30 दिन, 14 घंटे और 54 मिनट अंतरिक्ष में बिताए।
एक प्रेरणादायक विरासत
कल्पना चावला का जीवन जिज्ञासा, संकल्प और मेहनत का प्रतीक है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “उनकी साहस, समर्पण और जुनून की विरासत लाखों लोगों को सीमाओं से परे सपने देखने और सितारों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करती है।”
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “कल्पना चावला की उपलब्धियां महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की सशक्त मिसाल हैं। उनका योगदान भारत की अंतरिक्ष यात्रा में महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है।”
गुजरात साइंस एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल के वैज्ञानिक डॉ. नरोत्तम साहू ने कहा, “करनाल से लेकर अंतरिक्ष तक उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि अगर जिज्ञासा और मेहनत हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।”
अंतिम मिशन और सम्मान
1 फरवरी 2003 को, जब स्पेस शटल कोलंबिया पृथ्वी पर लौट रही थी, तो लैंडिंग से 16 मिनट पहले वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई और कल्पना चावला सहित सभी सात अंतरिक्ष यात्रियों का निधन हो गया। मरणोपरांत उन्हें कांग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर और नासा स्पेस फ्लाइट मेडल से सम्मानित किया गया।
कल्पना चावला का सपना और उनकी उपलब्धियां आज भी लाखों युवा वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष प्रेमियों को प्रेरित करती हैं। उनकी जयंती पर देश ने उन्हें गर्व और सम्मान के साथ याद किया।