हरिद्वार। साल 2013 में 16 जून की रात केदारनाथ घाटी पर कहर बनकर गुजरी। पहाड़ के ऊपरी इलाके में मौजूद एक झील फटने से वहां पानी का ऐसा सैलाब आया कि कुछ ही मिनटों में सब कुछ तबाह हो गया। इस हादसे को 10 साल बीत चुके हैं लेकिन इसकी तबाही के निशान आज भी मौजूद हैं। ये तबाही इस बात का साफ संकेत थी कि हिमालय क्षेत्र में सब कुछ ठीक नहीं है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) कहा जाता है।
ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) वो स्थिति है, जब ग्लेशियर पिघलने से मैदानी इलाकों में पानी का बहाव ज्यादा हो जाता है और प्राकृतिक बांध या झील में पानी का स्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस कारण इसकी दीवारें टूट जातीं हैं और आसपास के इलाकों में जल प्रलय आ जाती है। इसे आसान शब्दों में झील का फटना भी कहते हैं, जिससे झील से सटे और निचले इलाके प्रभावित होते हैं।
इस दौरान पानी का बहाव इतनी तेजी से आता है कि उससे बचना नामुमकिन सा हो जाता है, जिससे ये अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाता है। बदतर होते हालात को ध्यान में रखते हुए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथारिटी ने हिंदु कुश हिमालय रीजन में ऐसी 188 ग्लेशियर झीलों को चुना है, जिनसे भारी बारिश होने की स्थिति में आने वाले समय में खतरा बढ़ने की आशंका है।
इससे करीब 1.5 करोड़ लोगों की जान को खतरा है। मालूम हो कि हिंदु कुश हिमालय का इलाका अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3,500 किमी (2,175 मील) तक फैला है। ये 1.5 करोड़ लोग वो हैं, जो इन झीलों के निचले हिस्सों में बसे हैं और भारी जल सैलाब की वजह से इनकी जान खतरे हैं।
किन झीलों पर खतरा
A-कैटेगरी की 5 झीलों में से चमोली जिले में एक और पिथौरागढ़ जिले में चार झीलें हैं। B कैटेगरी में 4 झीलों में से 1 चमोली में, 1 टिहरी में और 2 झीलें पिथौरागढ़ में मौजूद हैं। इसके बाद की C कैटेगरी की 4 झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी में मौजूद हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि दो झील सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। इनमें पहली वसुंधरा ताल और दूसरी भीलांगना है। इन झीलों का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है, जो भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा ला सकता है।