जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अरिंदम बागची ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 58वें सत्र में वैश्विक मानवाधिकार बहस के दौरान भारत पर की गई टिप्पणियों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, एक जीवंत और बहुसांस्कृतिक समाज बना हुआ है।
बागची ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की रिपोर्ट में की गई आधारहीन और निराधार टिप्पणियां जमीनी हकीकत से मेल नहीं खातीं। भारतीय जनता ने बार-बार ऐसे गलत आकलनों को खारिज किया है। भारत की विविधता और खुलेपन की गहरी समझ आवश्यक है, बजाय चुनिंदा घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के।”
उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर का उल्लेख करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यह क्षेत्र शांति और समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने उल्लेख किया कि बीते वर्ष क्षेत्र में हुए उच्च मतदान प्रतिशत वाले चुनाव, पर्यटन में वृद्धि और तीव्र विकास इसकी पुष्टि करते हैं।
बागची ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने कश्मीर शब्द का गलत संदर्भ दिया है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि रिपोर्ट में जटिल मुद्दों को सरलीकृत तरीके से प्रस्तुत किया गया है, सामान्यीकृत टिप्पणियां की गई हैं और विशेष घटनाओं को चुनकर दिखाया गया है।
हालांकि, बागची ने मणिपुर की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की टिप्पणियों का प्रत्यक्ष जवाब नहीं दिया। मणिपुर मई 2023 से दो समुदायों के बीच झड़पों के कारण अशांति और हिंसा का गवाह रहा है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क ने वैश्विक अस्थिरता और समाजों के बीच बढ़ते विभाजन की पृष्ठभूमि में कहा कि भारत का लोकतंत्र और संस्थान उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए सभी स्तरों पर सहभागिता और समावेशिता आवश्यक है।
तुर्क ने यह चिंता जताई कि “प्रतिबंधात्मक कानूनों और मानवाधिकार रक्षकों व स्वतंत्र पत्रकारों के उत्पीड़न से नागरिक स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है, विशेष रूप से कश्मीर में।” उन्होंने मणिपुर में हिंसा और विस्थापन को रोकने के लिए संवाद, शांति स्थापना और मानवाधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता देने का आह्वान किया।