
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में प्रमुख माने जाने वाले ब्रिटिश-कैनेडियन कंप्यूटर वैज्ञानिक जियोफ्री हिंटन (Geoffrey Hinton) ने एक बार फिर AI को लेकर गंभीर चिंताएं जताई हैं। ‘डायरी ऑफ ए सीईओ’ पॉडकास्ट में 16 जून को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में AI लगभग हर क्षेत्र में इंसानों से बेहतर हो सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर नौकरियों का नुकसान हो सकता है।
हिंटन ने चेतावनी दी कि अगले 30 वर्षों में AI मानवता के लिए एक “अस्तित्वगत खतरा” बन सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी कुछ पेशे ऐसे हैं जो इस तकनीकी क्रांति से सुरक्षित रह सकते हैं।
“AI को शारीरिक कार्यों में योग्य बनने में अभी काफी समय लगेगा। इस लिहाज से प्लंबर बनना एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है,” हिंटन ने कहा।
उन्होंने आगे कहा कि “सामान्य बौद्धिक कार्यों में AI इंसानों की जगह ले लेगा।” इसमें उन्होंने पैरालीगल, कॉल सेंटर जैसे कार्यों का उल्लेख किया, जो स्वचालित होने की कगार पर हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब नौकरी पाने के लिए व्यक्ति को बेहद कुशल और विशिष्ट होना पड़ेगा।
AI से जुड़े रोज़गार सृजन के दावे पर भी हिंटन ने सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि जब AI अधिकतर मानसिक कार्यों को करने में सक्षम हो जाएगा, तब इंसानों के लिए कौन-से काम बचेंगे। यह चिंता मौजूदा जॉब मार्केट के आंकड़ों से भी मेल खाती है।
AI से प्रभावित नौकरियां: डेटा से मिलती पुष्टि
सिग्नलफायर नामक वेंचर कैपिटल फर्म की मई 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, बड़ी टेक कंपनियों जैसे मेटा और गूगल में नए ग्रेजुएट्स की भर्ती में 25% की गिरावट आई है। 2024 में केवल 7% नई भर्तियाँ फ्रेश ग्रेजुएट्स से हुईं, जो पिछले साल 10% थीं। इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि AI अब कई एंट्री-लेवल ज़िम्मेदारियाँ संभाल रहा है।
हिंटन मानते हैं कि भविष्य में कुछ नौकरियों में इंसान AI के साथ मिलकर काम करेंगे, लेकिन इसके चलते एक व्यक्ति AI की मदद से 10 लोगों का काम कर पाएगा। इसका नतीजा यह होगा कि कई उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी होगी।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि शारीरिक श्रम से जुड़ी नौकरियाँ—जैसे निर्माण, प्लंबिंग और अन्य ब्लू-कालर जॉब्स—फिलहाल अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं क्योंकि उन्हें स्वचालित करना मुश्किल है। वहीं, स्वास्थ्य क्षेत्र जैसे सेक्टर में AI के साथ तालमेल बैठाना आसान हो सकता है, क्योंकि वहाँ इंसानी संवेदनाओं की ज़रूरत बनी रहती है।