Kubera Movie Review: निर्देशक शेखर कम्मुला की हालिया रिलीज़ “कुबेरा” (Kubera) एक ऐसा सिनेमाई अनुभव है, जो दर्शकों को सत्ता, गरीबी, लालच और नैतिकता के बीच जूझते किरदारों की गहराई में ले जाता है। फिल्म में दमदार अभिनय के साथ-साथ एक गंभीर और संवेदनशील कहानी देखने को मिलती है, जो लंबे समय तक दर्शकों के ज़हन में बनी रहती है।
क्या है कहानी ?
कहानी की शुरुआत होती है नीराज मित्रा (जिम सर्भ) से, जो एक शक्तिशाली उद्योगपति है और बंगाल की खाड़ी में छिपे तेल के भंडार को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। इसके लिए वह सरकार के उच्च अधिकारियों के साथ मिलकर एक गुप्त मिशन की योजना बनाता है। इस मिशन को अंजाम देने के लिए वह दीपक (नागार्जुन) की मदद लेता है – एक पूर्व CBI अफसर जो ईमानदारी के चलते जेल भेजा गया था। मजबूरी में दीपक इस मिशन का हिस्सा बनता है और देशभर से कुछ भिखारियों को इकट्ठा करता है, जो इस काम को चुपचाप कर सकें।
इन्हीं में से एक है देवा (धनुष) – एक सीधा-सादा, मासूम इंसान जो जानता तक नहीं कि उसे किस जाल में फंसाया जा रहा है। जब उसे सच्चाई का पता चलता है, तो वह भाग निकलता है और फिर शुरू होती है एक ज़बरदस्त दौड़ – देवा की जान की, सच्चाई की, और इंसानियत की। रास्ते में उसकी मुलाकात होती है समीरा (रश्मिका मंदाना) से, जो उसे भरोसे, उम्मीद और प्यार सिखाती है।
एक्टर्स की परफॉरमेंस
धनुष फिल्म की जान हैं। देवा के किरदार में उनका प्रदर्शन इतना गहराई से भरा हुआ है कि दर्शक उनके दुख, डर और मासूमियत से खुद को जोड़ पाते हैं। यह उनकी अब तक की सबसे संवेदनशील भूमिकाओं में से एक है। नागार्जुन ने दीपक के किरदार में जबरदस्त संतुलन दिखाया है – एक ऐसा आदमी जो सिस्टम से टूटा है लेकिन पूरी तरह बुरा नहीं हुआ। उनका आंतरिक संघर्ष और देवा के साथ के दृश्य फिल्म को इमोशनल स्तर पर ऊंचा उठाते हैं। जिम सर्भ अपने सीमित स्क्रीन टाइम में भी गहरी छाप छोड़ते हैं। एक शातिर उद्योगपति के रूप में उनका ठहराव और नजरिया कहानी को मजबूती देता है। खासकर क्लाइमेक्स में उनकी चुप स्वीकारोक्ति बेहद प्रभावशाली है।
रश्मिका मंदाना की भूमिका सीमित है, लेकिन देवा के साथ उनके दृश्य कहानी को राहत और भावनात्मक गर्माहट देते हैं।
तकनीकी पक्ष और निर्देशन
शेखर कम्मुला का निर्देशन बेहद संवेदनशील है। वे फिल्म को सामाजिक यथार्थ और मानवीय भावनाओं के बीच संतुलन के साथ रखते हैं। सिनेमैटोग्राफी, खासतौर पर क्लाइमेक्स के दृश्य, दिल को छूते हैं।
“कुबेरा” सिर्फ एक क्राइम ड्रामा नहीं, बल्कि यह एक भावनात्मक यात्रा है – जो हमें याद दिलाती है कि सत्ता और लालच के बीच भी इंसानियत की जगह है। यह फिल्म विचारोत्तेजक है, संजीदा है, और कई मायनों में जरूरी भी। धनुष और नागार्जुन के अभिनय, जिम सर्भ की सटीक उपस्थिति, और कम्मुला की सोच-समझकर बुनी गई कहानी इसे एक प्रभावशाली फिल्म बनाती है।