नए बोर्ड गेम्स हकीकत को अफसाना बना रहे हैं

Jagruk Times
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क्रांति करने के लिए क्या करना होगा? अगर उसमें सफलता मिल जाती है तो आगे की नई चुनौतियां क्या होंगीं? दक्षिण एशिया, रूस, मिस्र, अमेरिका और मंगल ग्रह में यही प्रश्न महत्वपूर्ण हो गए हैं। आखिर इनके दमनकारी शासकों के विरुद्ध विद्रोह करना है, आजादी पाने के लिए और नए स्वतंत्र लोकतंत्र में पहला चुनाव जीतने के लिए।

लेकिन पहले यह तो तय कर लो कि किस विचारधारा के तहत क्रांति लाना चाहते हो-पूंजीवाद, शोस्टॉपर, आदर्शवाद या सुप्रीमो? क्यों? चूंकि विचारधारा ही तय करेगी कि आप किन एसेट्स के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं, जिनमें शामिल हैं फंड्स, जनता का विश्वास, मीडिया का समर्थन आदि, जिनके सहारे आजादी का मार्ग तय होगा।

अरे नहीं। यह किसी क्रांतिकारी संगठन का ब्लू प्रिंट नहीं है और न ही हमारा उद्देश्य आपको भड़काना है बल्कि यह ‘शासन: आजादी’ नामक नए बोर्ड गेम को खेलने का सार है, जो कि 2019 में रिलीज हुए राजनीतिक योजना पर आधारित बोर्ड गेम ‘शासन’ का सीक्वल है और इसे भी गोवा स्थित सिनेमा व न्यू मीडिया स्टूडियो मेमेस्यस लैब के अभिषेक लाम्बा व जैन मेमन ने विकसित किया है।

पहले गेम में खिलाड़ी भारत, अमेरिका व प्राचीन रोम सहित अलग-अलग देशों में राजनीतिज्ञ था, जिसका उद्देश्य चुनाव जीतना था फंड्स, मीडिया आदि से अपने प्रभाव का विस्तार करके। दूसरे गेम में बोर्ड वही रहता है, लेकिन अलग डेक्स के जरिए तानाशाही के खिलाफ विद्रोह करना है, लोकतंत्र स्थापित करने के लिए।

इस गेम को दो से पांच व्यक्ति खेल सकते हैं। इस गेम का उद्देश्य खिलाड़ियों को अपने देश में मौलिक अधिकारों की स्थिति और जन कल्याण योजनाओं के बारे में जागरूक करना है कि वह सवाल कर सकें व वास्तविक संसार में नेताओं के व्यक्तिगत मोटिवेशन की समीक्षा कर सकें।

बोर्ड गेम्स हमेशा से ही मौजूद रहे हैं। महाभारत में मामा शकुनि ने बोर्ड गेम में ही चालबाजी करके पांडवों का अधिकार छीना था। यह बोर्ड गेम्स मनोरंजन के साथ दुनिया को बहुत करीब से देखने और बेहतर समझने का अवसर प्रदान करते हैं।

मोनोपोली, सांप-सीढ़ी, शतरंज आदि के बारे में तो आपको मालूम ही है; अब जो नए मेड-इन-इंडिया नए बोर्ड गेम्स बाजार में आए हैं, वह क्लाइमेट संकट, इकोलॉजी, पटरी से उतरते लोकतंत्रों आदि ज्वलंत विषयों को संबोधित करते हैं। ‘लक्षद्वीप’ में निर्माण कार्यों के कारण द्वीप खतरे में हैं।

‘बर्ड्स इन द सिटी’ में खिलाड़ियों को बंगलुरु में पक्षियों को बचाना है। ‘शासन: आजादी’ सवाल करता है कि आजादी के बाद अब क्या? किस पर विश्वास किया जाए? आप भी इन बोर्ड गेम्स में पासा फेंकें, उत्तर पाएं, ज्ञान बढ़ाएं और हां, भरपूर मनोरंजन भी करें। मोनोपोली का अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए आपमें थोड़ी-सी निर्ममता अवश्य होनी चाहिए, क्योंकि इस गेम को विकसित करने का एक कारण यह भी था।

इसे 1935 में अमेरिका में पेटेंट किया गया था। इसका जन्म भयंकर अवसाद के समय हुआ था ताकि जमींदारों के शोषण व लालच को उजागर किया जा सके। इसकी जड़ें लैंडलॉडर््स गेम में थीं, जो 1904 में बनाया गया था। अगर इससे पहले, प्राचीन संसार में जाया जाए तो बोर्ड गेम्स का प्रयोग जटिल वास्तविकताओं को समझने के लिए भी किया गया है।

मसलन, सांप-सीढ़ी से पहले एक भारतीय गेम मोक्ष पाटम था, जिसे धर्म व कर्म के विचारों को समझने के लिए डिजाइन किया गया था। अब नए बोर्ड गेम्स हमारे समय की हकीकत को प्रतिबिम्बित कर रहे हैं और वह भी दिलचस्प व अनोखे अंदाज में। बोर्ड गेम्स, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, हमेशा से ही रहे हैं, लेकिन कोविड महामारी व लॉकडाउन के दौरान इनका चलन अधिक बढ़ गया।

भारतीय प्रकाशक ऐसे बोर्ड गेम्स रिलीज कर रहे हैं, जिनमें खिलाड़ियों के समक्ष चुनौती है कि लक्षद्वीप में विकास व इकोलॉजी को कैसे संतुलित किया जाए; अति विकसित महानगर पालिकाओं में पक्षियों को फरार होने से कैसे रोका जाए, चाय की व्यस्त दुकान को कैसे चलाया जाए, लोकतंत्र को कैसे बचाया जाए।

इनके अतिरिक्त स्थानीय इतिहास से संबंधित गेम्स भी हैं-विजयनगर शासन के दौरान हम्पी में गांवों व मंदिरों को कैसे बनाया जाए, ताजमहल कैसे बनाया जाए, उदारवाद से पहले के भारत में व्यापार कैसे चलाया जाए। लक्षद्वीप गेम में, वास्तविक संसार की तरह, निर्माण कार्य प्रत्येक छोटे द्वीप के लिए खतरा बन रहा है।

इस गेम में खिलाड़ी हर नए होटल, फिशरी या ऐसे अन्य कारण से कुछ संसाधन खो देता है। ‘बर्ड्स इन द सिटी’ को बंग्लुरु में सेट किया गया है, इसमें खिलाड़ियों को ध्यानपूर्वक फीडर्स आदि से पक्षियों की संख्या को बचाने का प्रयास करते हैं, जिन पर नए एयरपोर्ट या खदान की घोषणा के कारण खतरा मंडराने लगता है।

‘लक्षद्वीप’ गेम को बनाने वाली लुमा वर्ल्ड के सह-संस्थापक वेंकट अय्यर का कहना है, “लक्षद्वीप में एक द्वीप को स्थिर रखने के लिए जो योजना व भाग्य के मिश्रण की आवश्यकता है, वह वास्तविकता में जो होता है, उसे प्रतिविम्बित करता है, जहां आप अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए भरपूर प्रयास करते हैं, लेकिन नीति, इंफ्रास्ट्रक्चर व क्लाइमेट में परिवर्तन आपकी योजनाओं को ध्वस्त कर देते हैं या कि लालच हावी हो जाता है।”

इस प्रकार की नैरेटिव वाले गेम्स का बाजार क्या है? गेम निर्माता व प्रकाशक कहते हैं कि वह मीपलेकॉन (भारत का पहला बोर्ड गेम कन्वेंशन) जैसे कार्यक्रमों से उत्साहित हैं। यह 2017 में मुंबई में लांच हुआ था, 30 गेम्स को ट्राई करने के लिए लगभग 350 लोगों ने हिस्सा लिया था।

2023 के सत्र में 10,000 से अधिक लोग आए और 200 से ज्यादा बोर्ड गेम्स थे। लेकिन मीपलेकॉन दुर्लभ स्पेस है। उन प्लेटफॉर्म्स की कमी है, जहां नए गेम्स को पेश किया जा सके। इस वजह से यह सेक्टर संभावनाओं के अनुरूप बढ़ नहीं पा रहा है। कुछ प्रकाशक अपने तौर पर प्रयास अवश्य कर रहे हैं।

मसलन, चाय गर्म और कारीगर-ए-ताज के निर्माता मोजैक गेम्स ने 6-7 जनवरी 2024 को दो दिन का कार्यक्रम बंगलुरु में आयोजित किया। यह कंपनी बोर्ड गेम्स बाज़ार भी चलाती है, जो कि स्टोर व अनुभव स्पेस है, जिसे पिछले साल लांच किया गया था।

पुणे स्थित बोर्ड गेम कंपनी स्टोर में जो 400 से अधिक बोर्ड गेम्स ऑफर पर हैं, उनमें लगभग 100 भारत निर्मित हैं। आधुनिक बोर्ड गेम्स में हक़ीक़त व अफसाने का अंतर मिट जाता है- युद्ध योजना शतरंज बन जाती है।,छोटा द्वीप ब्लू टाइल बन जाता है, काग़ज़ के पक्षियों को बचाते हुए नया एयरपोर्ट अधिक करीब आ जाता है। पक्षियों की सुरक्षा तय करती है कि आप गेम जीतते हैं, हारते हैं या एग्जिट कर जाते हैं।

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