उत्तराखंड में स्थित तीर्थ नगरी ऋषिकेश अपनी सुंदरता, योग, मंदिरों और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां देश विदेश से लोग घूमने, मंदिरों के दर्शन करने और एडवेंचर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाते आते हैं। यहां के हर मंदिर की अपनी मान्यता और इतिहास है।
जिस मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, वो मंदिर ऋषिकेश के आमबाग आईडीपीएल कॉलोनी वीरभद्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर का भी अपना एक रोचक इतिहास है। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने वीरभद्र का क्रोध शांत किया था और तभी से वीरभद्र शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। तभी से यह मंदिर वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है।
1300 साल पुराना मंदिर
इस यह मंदिर को लगभग 1300 वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर की बहुत मान्यता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरिद्वार में दक्ष प्रजापति का यज्ञ चल रहा था, जिसमें सभी देवी-देवता आमंत्रित थे, पर राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया।
भोलेनाथ के मना करने के बाद भी माता सती उस यज्ञ में चली गईं। माता सती का मानना था कि वह उन्हीं का घर है तो आमंत्रण कैसा। सती पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि वहां सभी देवी-देवता आमंत्रित थे और यज्ञ चल रहा था। यह देख मां सती राजा दक्ष से पूछ बैठी कि उन्हें आमंत्रण क्यों नहीं दिया गया।
यह सुन राजा दक्ष ने भगवान शिव के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया, जो सती सुन नहीं पाईं और हवन कुंड की अग्नि में खुद की आहुति दे दी। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए।
शिव के अवतार वीरभद्र
पद्मेश बताते हैं कि शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। फिर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। रास्ते में जो भी दिखता, वो उसका गला काट देते। जब वीरभद्र ऋषिकेश पहुंचे, तो वहां भगवान शिव ने उन्हें गले लगा लिया, जिसके बाद वो शांत हुए और वहीं शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए। तभी से इस क्षेत्र को वीरभद्र क्षेत्र और इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है।