Holi special : फिल्मी धुनों में थिरकती होली की मस्ती

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होली के मौके पर जितनी उमंग और मस्ती हमारे दिल से फूटती है, उससे कहीं ज्यादा मस्ती और उमंग का माहौल उन लोकप्रिय फिल्मी गीतों की धुनें भी बनाती हैं, जो होली के अगले दिन यानी धुलेंडी पर बजते हैं। बाॅलीवुड के यूं तो कई ऐसे आईकाॅनिक फिल्मी सोंग हैं जो दशकों से पूरे देश में बजते हैं, लेकिन हकीकत यह भी है कि जब से फिल्में बोलने वाली बननी शुरु हुई हैं।

तभी से फिल्मों में होली गीत खूब बज रहे हैं। लेकिन जिन कुछ गीतों की पंक्तियां होली के मौक पर हर तरफ सुनाई पड़ती हैं, उनमें फिल्म शोले का यह गीत सबसे खास है। जिसके शब्द हैं- होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं…। वैसे तो यह गाना शोले के लिए आनंद बख्शी ने लिखा, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ठीक ऐसा ही गाना सन 1946 में आयी पुरानी रंगीला राजा फिल्म में भी ऐसा गीत था।

जो अब गायब हो चुका है, लेकिन इसकी धुन और शब्द उसी से मिलते जुलते हैं। कुछ भी हो इस गाने में कई ऐसी कालजयी पंक्तियां हैं, जो सिर्फ त्योहार के मौके को ही खुशियों नहीं भरता बल्कि जीवन जीने का दर्शन भी देता है। मसलन- गिले, शिकवे भूलकर दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। इससे पहले फिल्म मदर इंडिया, का एक गीत भी बहुत मशहूर हुआ था, जो आज भी होली के मौके पर हर कहीं बजता है, ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे जरा बांसुरी…’।

सन 50 के दशक में फिल्म ‘जोगन’ का एक भजन गीत भी होली के मौके पर खूब बजता है, जिसके बोल हैं- ‘डारो रे रंग डारो रे रसिया’ इसे अल्हड़ उम्र की गीता दत्त ने इतने मीठे और रसभरे अंदाज में गाया है कि सुनकर भजन मंे भी मस्ती का नशा छा जाता है। इसे बुलो सी रानी ने संगीत दिया था।

संगीतकार अनिल विश्वास ने हिंदी फिल्मों में बंगाली व असमी लोकधुनों को मिलाकर होली की ऐसी मीठी धुनें तैयार की हैं, जो दशकों से आज भी होली के मौके पर लोगों को खुशी, प्यार और मस्ती में डूबो देती हैं। मसलन, 1953 की फिल्म ‘राही’ में उन्होंने प्रेम धवन के गीत ‘होली खेले नंदलाल ब्रज में’ को असम की लोकधुन पर बनाया था। इरा मजूमदार द्वारा गाया गया यह गीत सामान्य व परंपरागत होली गीतों से बहुत भिन्न है।

वैसे अब तो फिल्मों की नई शैली के चलन में होली गीतों का रिवाज कम हो गया है, लेकिन एक दौर ऐसा जरूर था, जब हर साल किसी न किसी फिल्म में कोई यादगार होली गीत रचा जाता था। सन पचास के दशक में ऐसे कई मशहूर होली गीत रचे गए जैसे फिल्म ‘पूजा’ (1954) का फिल्मी गीत ‘होली आई प्यारी प्यारी भर पिचकारी’।

इस गाने की खुमारी अभी उतरी भी न थी कि सन 1956 में फिल्म ‘दुर्गेशनंदिनी’ का एक और हिट होली गीत ‘मत मारो श्याम पिचकारी’ आ गया और लोगों को झूमने व नाचने पर मजबूर कर गया। इसी तरह इसी दशक में सन 1959 में फिल्म ‘नवरंग’ आई, जिसका होली गीत ‘अरे जा रे हट नटखट’ जबरदस्त हिट रहा रहा। एक खास बात इस गीत की यह रही कि पर्दे पर दोनों राधा व श्याम की भूमिका संध्या ने ही अदा की।

होली से आम आदमी ही नहीं, राजा, महाराजा भी खूब आकर्षित रहे हैं। यही कारण है कि हिंदी फिल्मों में कई ऐसी धुनें और दृश्य हैं, जिनमें शाही होली फिल्माई गई है मसलन- साल 1960 की फिल्म ‘कोहिनूर’ में ट्रेजेडी किंग व क्वीन के रूप में विख्यात दिलीप कुमार व मीना कुमारी ने अपने गंभीर चोले को उतारकर खूब मस्ती की थी, यह गाते हुए ‘तन रंग लो जी आज मन रंग लो’।

होली के गीतों के जरिये हिंदी फिल्मों ने समाज की कुरीतियों को भी दूर करने का भी प्रयास किया है। परंपरागत रूप से एक विधवा को होली के रंगों से दूर रखा जाता है क्योंकि होली प्रेम व मिलन का प्रतीक है और इसमें विधवा की उपस्थिति को अशुभ माना गया है। लेकिन यह एक सामाजिक कुरीति है जिस पर विराम लगना चाहिए। इस समस्या पर मुख्यरूप से तीन फिल्मों में चोट की गई है। सन 1966 में आई फिल्म ‘फूल और पत्थर’ जिसमें धर्मेंद्र हीरो थे। इस फिल्म में मीना कुमारी विधवा की भूमिका में थीं, जिनसे धर्मेंद्र को प्यार है और वह फिल्म की एक होली सिक्वेशन पर गाते हैं ‘लाई है हजारों रंग होली’।

इसी तरह फिल्म ‘कटी पतंग’ में राजेश खन्ना, विधवा आशा पारेख के लिए गाते हैं- ‘आज न छोड़ेंगे हमजोली, खेलेंगे हम होली…’ जबकि फिल्म शोले में गब्बर सिंह की भूमिका कर रहे अमजद खान का यह डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर है, ‘होली कब है…कब है होली’। जैसे ही वह ये डायलॉग बोलते हैं तो पर्दे पर होली की मस्ती छा जाती है और गांव वालों के साथ मिलकर धर्मेंद्र व हेमा मालनी ‘होली के दिन’ गीत गाने लगते हैं।

लेकिन इस गीत का मुख्य पहलू यह है कि विधवा बनी जया भादुड़ी व अमिताभ बच्चन के बीच इशारों ही इशारों में एक दूसरे के लिए प्रेम की अभिव्यक्ति हो जाती है। होली की तरंग में व्यक्ति के मन की बात, जिसे वह छुपाना चाहता है, भी खुलकर सामने आ जाती है। इस ख्याल को भी फिल्मों में व्यक्त किया गया है। 1981 की फिल्म ‘सिलसिला’ में अमिताभ बच्चन को अपनी प्रेमिका रेखा को छोड़कर जया भादुड़ी से विवाह करना पड़ जाता है और रेखा की शादी संजीव कुमार से हो जाती है।

संयोग से होली के अवसर पर चारों एक जगह होते हैं और अमिताभ बच्चन ‘सामाजिक लोक लाज’ को भूलते हुए अपनी पत्नी व पूर्व प्रेमिका के पति के सामने ही अपनी पूर्व प्रेमिका से ‘रंग बरसे भीगी चुनर वाली’ गीत गाकर फ्लर्ट करने लगते हैं।

होली के कुछ और यादगार गीत हैं- ‘फागुन आयो रे’ (फागुन, 1973), ‘होली आई, होली आई’ (मशाल, 1984), ‘अंग से अंग लगाना’ (डर, 1993), ‘होली खेलें रघुवीरा अवध में’ (बागबान, 2003), ‘डू मी अ फेवर लेट्स प्ले होली’ (वक्त, 2005), ‘बलम पिचकारी’ (ये जवानी है दिवानी, 2013), ‘लहू मुंह लग गया’ (रामलीला, 2014), आदि हैं।

कैलाश सिंह

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