संपादकीय : नोटों की महिमा

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जीवन में धन की अपनी ताकत होती है। किंवदंतियों में धन को ‘बल’ बताया गया है। जहां धन बल का जोर चलता है, वहां अच्छे-अच्छे बल कमजोर पड़ जाते हैं। कलयुग में तो धन की महिमा अपरंपार है। आज जिसके पास प्रचुर धन है, वही सही अर्थों में सक्षम और सर्वगुण संपन्न है। यदा-कदा केंद्रीय जांच एजेंसियां छापेमारी करती हैं तो अक्सर नोटों के ढेर दिखाए जाते हैं।

ऐसे नोटों के ढेर तो समय के साथ भुला दिए जाते हैं, लेकिन चुनावी भाषणों में फिर इन्हीं नोटों के ढेर खासी सुर्खियां भी बटोरते हैं। देश में इन दिनों चुनाव चल रहे हैं। सात चरणों में प्रस्तावित मतदान के दो चरण पूरे हो चुके हैं और मंगलवार को तीसरे चरण का मतदान होना है। ठीक इससे पहले झारखंड की राजधानी रांची में प्रवर्तन निदेशालय को एक छापेमारी में करारे नोटों के ऐसे ही ढेर मिले हैं।

झारखंड सरकार में एक ताकतवर नेता हैं, जिनका नाम है आलमगीर आलम। इन्हीं आलमगीर आलम के निजी सहायक संजीव कुमार और उनके एक घरेलू सहायक के घरों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी चल रही है। शुरुआती तौर पर मात्र 5-10 करोड़ रुपए मिलने का अनुमान लगाया जा रहा था। लेकिन दिन चढ़ने के साथ-साथ नोटों की गिनती 40 करोड़ तक जा पहुंची।

बताते हैं कि छापेमारी के बाद बैंकों से मंगवाई गई नोट गिनने की मशीनें भी लगातार नोट गिनकर हांफने लगीं हैं। लिहाजा नोटों की गिनती की रफ्तार रह-रहकर धीमी पड़ रही है। पता चला है कि मंत्री के निजी सहायक संजीव कुमार के एक दूसरे करीबी मुन्ना के पास से भी ईडी ने तीन करोड़ रुपए कैश बरामद किया है। यह पूरा मामला झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग से जुड़ा बताया जा रहा है।

याद दिला दें कि ईडी की टीम ने फरवरी 2023 में ग्रामीण विकास विभाग के पूर्व चीफ इंजीनियर वीरेंद्र राम के ठिकानों पर मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में छापेमारी की थी और उन्हें गिरफ्तार किया था। वीरेंद्र राम अभी भी जेल में बंद हैं। यह ताजा छापेमारी उसी मामले की जांच का विस्तार बताया जा रहा है।

अब देखिए मतदान के तीसरे चरण से ऐन पहले मिले नोटों के इतने सारे बंडल क्या चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के भाषणों का हिस्सा नहीं होंगे? जरूर होंगे। होना भी चाहिए। आज जब भ्रष्टाचार मुक्त शासन के नारों की बाढ़ आई हुई है, ऐसी घटनाओं का जिक्र होना बनता है। ऐसे चेहरे बेनकाब होने ही चाहिए।

एक गरीब और पिछड़े कहे जाने वाले प्रांत में जब नेताओं से जुड़े करीबियों के घरों से नोटों का तहखाना जब-जब खुले, तब-तब ऐसी कहानियों का बखान तो होना ही चाहिए। रहा सवाल टाइमिंग का तो कहते हैं ना कि जंग और मोहब्बत में सब जायज होता है। फिर सियासत से जुड़े बड़े-बड़े चेहरों से मुखौटे तो देर-सवेर उतरने ही चाहिए, इसमें गलत क्या है?

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