फरवरी का आरंभ दुखद खबर से हुआ। एक फरवरी 2024 को श्रेयस रेड्डी बेनिगेरी के निधन की सूचना मिली। मृत्यु का कारण ‘अज्ञात प्राकृतिक कारण या आत्महत्या’ बताया गया। बिट्स पिलानी से मैकेनिकल इंजीनियर बेनिगेरी यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में बिज़नस स्टेटिस्टिक्स का अध्ययन कर रहे थे।
इसके चार दिन बाद यानी 5 फरवरी 2024 को खबर आई कि पडर्यू यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डाक्टरेट कर रहे समीर कामथ की गोली लगने से मृत्यु हो गई है। वह 2025 में पीएचडी ग्रेजुएट होने जा रहे थे। यह आत्महत्या थी या हत्या, फिलहाल कहना कठिन है। बहरहाल, इस साल अमेरिका में भारत के कुल पांच छात्रों की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हुई है। 16 जनवरी 2024 को अल्बामा यूनिवर्सिटी के छात्र विवेक सैनी के सिर में 50 बार हथोड़ा मार कर हत्या की गई थी।
20 जनवरी 2024 को इलेनॉइस यूनिवर्सिटी के छात्र अकुल धवन का शव बर्फ में जमा हुआ मिला और इसके आठ दिन बाद यानी 28 जनवरी 2024 पडर्यू यूनिवर्सिटी के छात्र नील आचार्य का शव भी इसी अवस्था में मिला। इसलिए यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या कुछ लोगों के लिए विख्यात अमेरिकन ड्रीम दुःस्वप्न बन गया है? लेकिन बात केवल इतनी सी नहीं है।
हालांकि अमेरिका में कुछ छात्रों की मौत के कारणों को समझाया जा सकता है, लेकिन कुछ के बारे में यह आरोप भी सही है कि नस्लीय भेदभाव की वजह से पुलिस ईमानदारी से जांच नहीं करती है, विशेषकर इसलिए कि इन हादसों को मीडिया में ‘पर्याप्त’ कवरेज नहीं मिलता है। अफसोस इस बात को लेकर भी है कि इंसाफ के लिए अमेरिका में भारतीय मूल के लोग अक्सर विरोध-प्रदर्शन भी नहीं करते हैं।
इलेनॉइस में 20 जनवरी 2024 को कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। रिपोर्ट की गई थी कि इलेनॉइस यूनिवर्सिटी का 18-वर्षीय छात्र अकुल धवन लापता है। इसके दस घंटे बाद उसका शव मिला, वहां से मात्र 400 फीट की दूरी पर जहां उसे कैंपस में अंतिम बार देखा गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में त्वचा में हाइपोथेरमिक परिवर्तन के साक्ष्य मिले।
अमेरिका में ठंड से मरने की घटनाएं अप्रत्याशित नहीं हैं और इस साल जनवरी का दूसरा पखवाड़ा इलेनॉइस व मध्यपश्चिम में वास्तव में बहुत अधिक ठंडा था कि ठंडी हवाओं के कारण तापमान माइनस 20 से गिरकर माइनस 30 डिग्री सेल्सियस हो गया था। लेकिन अकुल धवन की मौत भारतीय मूल के छात्रों के संदर्भ में कुछ चिंताजनक प्रश्न उत्पन्न करती है।
अकुल के पिता ईश धवन का कहना है, “यह वीभत्स है। बच्चा मात्र एक ब्लाक दूर, जहां एक मिनट में पहुंचा जा सकता था, ठंड से मर रहा था और उसे तलाश नहीं किया जा सका।” हालांकि अकुल के पेरेंट्स ने पुलिस अधिकारियों पर तलाश में लापरवाही करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया है, लेकिन अनेक भारतीय-अमेरिकन का मानना है कि अकुल का केस पैटर्न का ही हिस्सा है; अमेरिकी पुलिस भारतीय मूल के छात्रों के मामले में उदासीन रहती है, जाहिर है उनकी उपेक्षा करती है।
दरअसल, असल समस्या यह है कि भारतीय छात्रों व उनके परिवारों के लिए बोलने वाला कोई नहीं है। पुलिस कहती है ‘अरे, नहीं, किसी गड़बड़ी का कोई संदेह नहीं है’ और मामले को वहीं बंद कर दिया जाता है, केस बंद। ऐसा लवली वरुगीज का कहना है, जिनके बेटे प्रवीण वरुगीज को दस वर्ष पहले इलेनॉइस में लूटा व पीटा गया और वहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया।
वह सवाल करती हुई बताती हैं, “भारतीयों के साथ अन्य समुदायों जैसा व्यवहार क्यों नहीं किया जाता? जब उनके बच्चे लापता होते हैं तो राष्ट्रीय खबर बन जाती है, हर जगह बस एक ही चर्चा रहती है, लेकिन जब हमारे बच्चों की बात आती है तो अगर खबर स्थानीय टीवी चैनल पर भी आ जाए तो खुद को किस्मत का धनी समझा जाए।” पिछले महीने भारतीय मूल के दो अन्य छात्रों की असमय मृत्यु में भी ठंडे मौसम की भूमिका हो सकती है।
कनेक्टिकट की सेक्रेड हार्ट यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के दो छात्रों- तेलंगाना के 22-वर्षीय गट्टू दिनेश व आंध्रप्रदेश के 22-वर्षीय आर निलेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हुई कि वह कार्बन मोनोऑक्साइड इनहेल करने से मरे, जो रूम हीटर से निकल रही थी। लेकिन इनसे अलग ऐसे केस भी हुए हैं, जिन्हें पुलिस ने जल्दी से बंद कर दिया बावजूद इसके कि उनमें अनेक प्रश्न अनुत्तरित थे।
मसलन, जनवरी 2024 में डबल मेजर कंप्यूटर साइंस व डाटा साइंस के छात्र नील आचार्य के केस को ही लें। सेंट मैरीज स्कूल, पुणे से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद नील पडर्यू यूनिवर्सिटी में अंडरग्रेजुएट छात्र थे। उबेर ड्राईवर ने उन्हें रात में कैंपस में ड्राप किया और अगले दिन उन्हें मृत पाया गया। हालांकि टोक्सोलोजी रिपोर्ट्स अभी आई नहीं हैं, लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए कि शरीर पर ट्रामा के चिह्न नहीं हैं किसी भी शरारत से इंकार कर दिया है। लवली वरुगीज इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं।
उनका कहना है, “नील का फोन कहीं मैदान में मिला था और उनका शव कैंपस में मिला था। इसलिए, मैं यह समझ नहीं पा रही हूं कि वह किसी शरारत से कैसे इंकार कर सकते हैं। यह तो मामूली समझ की बात है कि कोई मैदान में अपना फोन फेंकने के बाद कमरे में आकर कैसे मर जाएगा।” यह एकदम 2014 के प्रवीण वरुगीज के केस जैसा है। तब भी अधिकारियों ने कुछ नहीं किया था और वह आज भी कुछ नहीं कर रहे हैं।
19-वर्षीय प्रवीण की लाश 12 फरवरी 2014 को इलेनॉइस के कार्बनडेल जंगल में मिली थी। 23-वर्षीय गैगे बेथुन पर आरोप लगा कि उसने फरवरी की ठंडी रात में प्रवीण को अपनी बाइक पर लिफ्ट दी, उसे लूटा व पीटा और मरने के लिए छोड़ दिया। जूरी ने बेथुन को फस्र्ट-डिग्री हत्या का दोषी पाया, लेकिन बाद में न्यायाधीश ने इस फैसले को ठुकराते हुए उसे बांड पर रिहा कर दिया।
नील की मौत से बामुश्किल दो सप्ताह पहले 25-वर्षीय भारतीय छात्र विवेक सैनी की हत्या एक बेघर ड्रग एडिक्ट ने कर दी थी, जिसे अतीत में सैनी ने फूड व गर्म कपड़ों से मदद की थी। नशेड़ी ने सैनी के सिर पर लगभग 50-बार हथोड़ा मारा, जो लिथोनिया, जॉर्जिया के स्टोर के सीसीटीवी में कैद हुआ, जहां सैनी पार्ट-टाइम क्लर्क था। गौरतलब है कि 29 अक्टूबर 2023 को एक अन्य भारतीय छात्र वरुण राज पुचा की जिम में चाकू घोंपकर हत्या कर दी गई थी।
वह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में इंडिआना की वाल्परैसो यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री कर रहे थे। वैसे पिछले साल अन्य भारतीय छात्रों की भी हत्याएं हुई थीं- 26-वर्षीय आदित्य अदलखा, 21-वर्षीय जुड चाक्को और 21-वर्षीय वीरा की मौत की भी संतोषजनक जांच नहीं हुई है। एक दर्जन से भी अधिक मामले हैं जिनमें पहले दिन से ही फाइल को बंद मान लिया गया है।
इसके विरुद्ध भारतीय-अमेरिकियों ने कभी-कभी विरोध-प्रदर्शन भी किये हैं जैसे जनवरी 2022 में जहान्वी कंदुला की सीएटल में पुलिस पेट्रोल कार दुर्घटना में मृत्यु के बाद किया था, लेकिन तब कैमरा में एक पुलिसकर्मी को यह कहते हुए सुना गया, “या, 11,000 डालर का चेक दे दो, उस 26-वर्षीय छात्रा का कोई खास मूल्य नहीं है।” इससे अंदाज़ा हो जाता है कि भारतीय छात्रों का अमेरिकन ड्रीम क्यों दुःस्वप्न बन रहा है?
शाहिद ए चैधरी