इंग्लैंड के हाईकोर्ट में इस समय ब्रिटिश-स्वीडिश मल्टीनेशनल फर्मास्यूटिकल कंपनी एस्ट्राज़ेनेका के खिलाफ लगभग 51 मुक़दमे चल रहे हैं, जिनमें दावा किया गया है कि उसकी कोविड वैक्सीन की वजह से मौतें हुईं और गंभीर बीमारियां भी हुईं। पीड़ितों व विलाप कर रहे रिश्तेदारों ने कंपनी से मुआवज़े की मांग की है, जिसका अनुमान तकरीबन 100 मिलियन पाउंड्स है।
एस्ट्राज़ेनेका की कोविड वैक्सीन यूरोप में वैक्सज़ेवरिया के नाम से मार्केट की गई थी और भारत में इसे सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की पार्टनरशिप में कोविशील्ड के नाम से निर्मित व मार्केट किया गया था। भारत में लगभग 90 प्रतिशत लोगों (1.74 बिलियन खुराक से अधिक) ने कोविशील्ड की डबल डोज़ ली थी और तीसरी बूस्टर खुराक भी नागरिकों ने बड़ी संख्या ने ली थी ताकि कोविड-19 संक्रमण से सुरक्षित रहा जा सके।
हालांकि एस्ट्राज़ेनेका अपने विरुद्ध किए गए मुकदमों को लड़ रही है, लेकिन इस साल फरवरी में उसने हाईकोर्ट में जमा किए गए कानूनी कागज़ात में स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन से ‘अति दुर्लभ मामलों में’ थ्रोमबोटिक थ्रोमबोसाय्टोपेनिक सिंड्रोम (टीटीएस) हो सकता है, जोकि दुर्लभ व अति गंभीर कुप्रभाव (साइड इफेक्ट) है।
टीटीएस से व्यक्ति के खून में क्लोटिंग हो जाती है और उसे दिल का दौरा (कार्डियक अरेस्ट) पड़ सकता है या उसके दिमाग की नस फट (ब्रेन हैमरेज) सकती है, फलस्वरूप उसकी मौत हो सकती है या वह जीवनभर के लिए गंभीर रूप से बीमार हो सकता है। गौरतलब है कि 27 मई 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में कहा था- “टीटीएस अति दुर्लभ स्थिति है जो असामान्य इम्यून प्रतिक्रिया के कारण होती है।
हालांकि यह अनेक कारणों से हो सकती है, लेकिन इसका संबंध एडिनोवायरस वेक्टर वैक्सीन से भी है।” कोविशील्ड भी वायरल वेक्टर वैक्सीन है जिसे मॉडिफाइड चिंपांज़ी एडिनोवायरस (चएडओक्स1) का इस्तेमाल करके विकसित किया गया है। बहरहाल एस्ट्राज़ेनेका की फरवरी की स्वीकृति कि कोविशील्ड से टीटीएस हो सकता है, अब वायरल हुई है और भारत सहित पूरे संसार में तहलका मच गया है।
लोगों को वह मंज़र याद आने लगे हैं जिनमें जवान लोग भी चलते चलते अचानक गिर पड़े और फिर कभी न उठ सके। जिस आयु में हृदय रोग का खतरा अमूमन होता नहीं है, उसमें भी लोग दिल का दौरा पड़ने से अचानक मर रहे थे। यह चर्चा आम हो गई कि इन अचानक मौतों का कुछ संबंध कोविड वैक्सीन से अवश्य है। सरकारों ने इस ‘संबंध’ को अफवाह बताया, डाक्टरों ने भी कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है। अब एहसास होता है कि शायद पैनिक को रोकने के लिए यह खंडन जानबूझकर किए जा रहे थे।
लेकिन अब जो एस्ट्राज़ेनेका का क़ुबूलनामा प्रकाश में आया है, तो कोविशील्ड लगवाने वाला हर व्यक्ति दहशत में है कि कहीं अगला नंबर उसका तो नहीं। मेरी पत्नी भी घबराई हुई है, वह बार बार मुझसे सवाल कर रही है, “कोविशील्ड के साइड इफेक्ट्स की मैं तो शिकार नहीं होऊंगी? अगर हो गई तो मेरे बच्चों का क्या होगा? क्या तुम दूसरी शादी कर लोगे?” मेरी समझ में नहीं आया कि उसे साइड इफेक्ट्स की अधिक चिंता है या मेरी दूसरी शादी की? फिर भी मैंने उसे समझाया कि अगर कोविशील्ड के साइड इफेक्ट्स होने होते तो अब तक हो चुके होते, वैसे भी इस दौरान तुम्हें कई बार वायरल हो चुका है, जिसका अर्थ है कि तुम्हारे शरीर में कोविशील्ड का असर खत्म हो चुका है, जोकि वायरल रोकने की ही वैक्सीन थी, वर्ना वायरल न होता।
मैंने अवैज्ञानिक तर्क से पत्नी को तो समझा दिया, लेकिन डर मुझमें भी समाया हुआ है। आखि़र मैंने भी तो कोविशील्ड की दो खुराक ली हैं! यह इस समय घर घर की कहानी है। इस पृष्ठभूमि में यह प्रश्न प्रासंगिक है कि कोविशील्ड से कैसा और कितना खतरा है? टीटीएस, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, ब्लड क्लॉट डिसऑर्डर है और इससे ब्लड प्लेटलेट काउंट भी कम हो जाता है। कोविशील्ड हानिरहित कोल्ड वायरस से बनी है, जोकि चिंपांज़ी से ली गई है और इसे एडिनोवायरस कहते हैं।
जब इस वायरस को जेनेटिकली मॉडिफाइड कर दिया जाता है या सार्स-कोव-2 (जिससे कोविड-19 होता है) से मैच करने के लिए इंजीनियर्ड कर दिया जाता है तो यह स्पाइक प्रोटीन पर काम करता है। इस तरह वैक्सीन एस स्पाइक प्रोटीन जेनेटिक सीक्वेंस के साथ निगमित हो जाती है। अब इससे टीटीएस का खतरा किस प्रकार से होता है? वैक्सीन को डेल्टोइड मसल में इंजेक्ट किया जाता है।
लेकिन कभी कभी केवल मांसपेशियों में जाने के साथ ही यह ब्लडस्ट्रीम में भी प्रवेश कर जाती है। एक बार ब्लडस्ट्रीम में प्रवेश करने पर वैक्सीन में मौजूद एडिनोवायरस चुंबक की तरह काम करने लगता है और इसकी खास दिलचस्पी एक प्रकार की प्रोटीन में होती है, जिसे प्लेटलेट फैक्टर 4 (पीएफ 4) कहते हैं।
आमतौर से शरीर पीएफ 4 का प्रयोग रक्त को गाढ़ा करने के लिए करता है, लेकिन दुर्लभ मामलों में शरीर का इम्यून सिस्टम इसे फॉरेन बॉडी या विदेशी घुसपैठिया समझ लेता है और इस पर हमला करने के लिए एंटीबॉडीज जारी करता है। इसे गलत पहचान कहते हैं। ऐसी एंटीबॉडीज फिर प्रतिक्रिया करती हैं और पीएफ 4 से जुड़ जाती हैं। फलस्वरूप ब्लड क्लोट्स बनते हैं, जिनका संबंध अब वैक्सीन से जोड़ा जा रहा है। यह क्लोट्स दिल व दिमाग में गंभीर बीमारियां उत्पन्न कर सकते हैं।
यह बात समझने के बाद सवाल फिर वही है कि क्या कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों को चिंता करनी चाहिए? वैक्सीन के कारण टीटीएस मामले इतने अति दुर्लभ हैं कि 50,000 में एक (0.002 प्रतिशत) ही मामला मिलेगा, लेकिन विशाल आबादी में यह संख्या बहुत बड़ी हो जाती है। दरअसल, अधिक कठिनाई यह है कि जटिलताएं स्वयं कोविड से हो रही हैं या लम्बे-कोविड से हो रही हैं या वैक्सीन से हो रही हैं, इसमें अंतर नहीं हो पा रहा है।
इस अंतर की पहचान न वैज्ञानिक समुदाय कर पा रहा है और न ही क़ानून के जानकर। इसलिए यह विवाद का विषय बना हुआ है। बहरहाल, विशेषज्ञों का अब भी यही कहना है कि जिन व्यक्तियों का टीकाकरण हो चुका है उन्हें कोविड से मौत का ओवरआल खतरा कम है और कोविड के बाद की जटिलताएं जैसे हार्ट अटैक व स्ट्रोक का खतरा भी उनको कम है। हालांकि वैक्सीन के अति गंभीर साइड इफेक्ट्स दुर्लभ हैं, लेकिन खतरों से अधिक उसके लाभ हैं। कोविड वैक्सीन ने लाखों लोगों को मौत से बचाया है।
मसलन, अमेरिका में 2,32,000-3,18,000 कोविड से केवल इसलिए मरे क्योंकि टीकाकरण के अनुचित डर से उन्होंने वैक्सीन लेने से इंकार कर दिया था। इसलिए इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जाना चाहिए कि कोरोना महामारी के बाद ऐसे बहुत से लोग हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक से अचानक मरे जो एकदम स्वस्थ थे। इन मौतों की जांच होनी चाहिए और अगर कारण वैक्सीन है तो आश्रितों को मुआवज़ा भी मिलना चाहिए। हमारे टीकाकरण प्रयासों में पारदर्शिता व जवाबदेही तो होनी ही चाहिए ताकि लोगों का विश्वास बना रहे।