एक सौ तीस सालों से भी ज्यादा समय से जानकारी में होने के बावजूद मेडिकल साइंस, अभी भी Malaria से पार नहीं पा सकी। आज भी पूरी दुनिया में मलेरिया बड़े पैमाने पर इंसानी जान के लिए खतरा बना हुआ है। हर साल आज भी 5 से 6 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण हो जाती है।
इसलिए हर साल मच्छरों के काटने से फैलने वाली इस बीमारी से बचाव के लिए पूरी दुनिया के विशेषज्ञ डाक्टर 25 अप्रेल को अपनी जानकारियों और इससे निपटने के साझा अनुभवों को एक दूसरों से साझा करते हैं ताकि इससे निपटा जा सके। चार्ल्स लुई अल्फोंस लावेरन नामक शख्स ने साल 1889 में मलेरिया परजीवी की खोज की थी, जिसके लिए इन्हें 1907 में नोबेल प्राइज भी मिला था।
हालांकि इससे पहले 1980 में ही यह पता चल गया था कि यकृत में छिपे रूप में मलेरिया परजीवी मौजूद रह सकता है। इसी से बाद यह गुत्थी सुलझी कि आखिर सालों पहले मलेरिया से उबरे मरीज फिर अचानक कैसे रोग ग्रस्त हो जाते हैं। वैसे मलेरिया सामान्य तौरपर बहुत मामूली लक्षणों के साथ प्रकट होता है।
मसलन लगातार सिरदर्द होता है, जी घबराता है , मितलियां आती हैं, कभी अचानक बहुत तेज बुखार हो जाता है, कभी बहुत तेज ठंड लगने लगती है, कई बार लगातार उल्टियां होती हैं, पेट में रह रहकर भयानक दर्द उठते हैं, बहुत ज्यादा पसीना आता है और शरीर में अचानक खून की कमी महसूस होती है। ये सारे लक्षण मलेरिया के हैं और इंसान इन लक्षणों वाली इस जानलेवा बीमारी से करीब 200 साल से परिचित है।
ऐसा भी नहीं है कि मलेरिया के संबंध में रिसर्च न हो रही हों और इसकी रोकथाम संबंधी खोज में निवेश न किया जा रहा हो, फिर भी मलेरिया दुनिया की उन गिनी चुनी बीमारियों में से है, जिस पर आजतक इंसान नियंत्रण नहीं पा सका और जो सामान्य लक्षणों से प्रकट होकर देखते ही देखते जानलेवा हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में दो साल पहले मलेरिया का टीका आर 21/मैट्रिक्स-एम का इंसानी परीक्षण शुरु हुआ और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रारंभिक परीक्षणों में यह 77 फीसदी तक प्रभावी पाया गया है।
लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा निर्मित इस टीके को पहली बार इंसानों पर अफ्रीकी देश घाना में इस्तेमाल किया गया है। घाना के फूड एंड ड्रग अथॉरिटी ने इस टीके को 5 से 36 महीनों तक के शिशुओं और किशोरों के इस्तेमाल की अनुमति दी है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों और डाक्टरों को उम्मीद है कि इस टीके के बाद मलेरिया से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी। क्योंकि हर साल यह करीब 25 करोड़ लोगों को संक्रमित करता है और इन 25 करोड़ लोगांे में से 6 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।
भारत दुनिया के उन 15 देशों में शामिल है, जो मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और अगर हिंदुस्तान में मलेरिया से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों की बात करें तो इनमें, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, मेघालय और उत्तरपूर्व के दूसरे राज्यों में भी मलेरिया एक बेहद संक्रामक बीमारी है।
जैसा कि हम जानते हैं मलेरिया प्रोटोजोआ या परजीवी से फैलता है और इसका सबसे खतरनाक वैरियंट फाल्सीपेरम परजीवी है। दरअसल यह परजीवी इंसान की लालरक्त कोशिकाओं को क्षति पहुंचाती है, इससे लालरक्त वाहिकाएं बंद हो जाती हैं नतीजतन हमारे दिमाग, किडनी और फेफड़ांे को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है। मलेरिया गरीबी से जुड़ी बीमारी भी है। यही वजह है कि अफ्रीका के कई देश इससे काफी ज्यादा प्रभावित है।
अफ्रीका के लिए मलेरिया सिर्फ इंसानों के मामले में ही जानलेवा नहीं है बल्कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक है। हर साल अफ्रीका में बड़े पैमाने पर मलेरिया फैलने के कारण कई करोड़ पर्यटक जो यहां पर्यटन के लिए आ सकते थे, नहीं आते।
इससे समझा जा सकता है कि इससे अफ्रीका को 12 से 15 मिलियन डालर का नुकसान होता है। हालांकि मलेरिया से होने वाली मौतों का जो रजिस्टर्ड आंकड़ा है वह करीब 6 लाख 30 हजार सालाना है, लेकिन हकीकत यह है कि इससे कई लाख ज्यादा लोग मरते हैं, क्योंकि बहुत से मरीज अस्पतालों की बजाय घर में ही दम तोड़ देते हैं और उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता।
इसलिए डब्ल्यूएचओ का मानना है कि इससे 7 से 27 लाख लोगों तक सालाना मौत हो सकती है और दुखद पहलू यह है कि इससे मरनेवालों में सबसे ज्यादा 75 फीसदी अफ्रीका के गरीब बच्चे और गर्भवती महिलाएं होती हैं।
दुनिया में सबसे ज्यादा मलेरिया से मौतें नाइजीरिया में होती हैं, लेकिन भारत में भी हर साल 2 लाख से ज्यादा लोग मलेरिया से दम तोड़ देते हैं।
मलेरिया से निपटने के लिए दुनियाभर के डाक्टर और विशेषज्ञ हर साल मलेरिया के खिलाफ जंग के लिए एक थीम का चुनाव करते हैं। इस साल की थीम है, ‘हेल्थ इक्वेलिटी, जेंडर एंड ह्यूमन राइट्स’। इससे पिछले साल यानी साल 2023 की थीम थी ‘शून्य मलेरिया पहुंचाने का समय, निवेश, नवाचार, कार्यान्वयन’।
वास्तव में हर साल एक नई थीम चुने जाने का मकसद यह है कि उस पूरे साल मलेरिया से संबंधित उस विषय विशेष पर फोकस किया जाए। इस लिहाज से देखें तो पूरी दुनिया के डाक्टर, अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक मलेरिया के विरुद्ध पूरे वेग से घमासान कर रहे हैं। बावजूद जैसा अपनी एक फिल्म में मशहूर अभिनेता नाना पाटेकर ने कहा था कि एक छोटा सा मच्छर, पूरी कौम को अपाहिज बना देता है। इसलिए इंसान के लिए सचमुच मलेरिया की 130 साल की खोज के बाद भी यह स्थिति डरावनी बनी हुई है। …और अभी भी मच्छर हमें बार बार चुनौती दे रहे हैं।
डा. माजिद अलीम